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Showing posts from October, 2023

जीवन बताओ (कविता ) ~ नंदलाल भारती

मेरा घर अब मेरा ही नहीं रहा अब कुछ पंक्षियो का,  बसेरा भी हो गया है मेरा घर, यह अपना गांव का, पैतृक माटी का महल तो नहीं है जिस माटी के महल के,  स्थायी निवासी गौरैया हुआ करती थी मुंडेर पर भांति -भांति के परिंदे , जश्न मनाया करते थे, अगवारे -पिछवारे के पेड़-पौधों पर लगे फल-फूल खाकर  कौवे का बोलना पाती हुआ करता था तब मेहमान के आने की पूर्व सूचना अ-लिखित थी  सच भी हो जाता था। गांवों की पहचान माटी के घर माटी में मिल चुके हैं ईंट- पत्थरों के दो-तीन या अधिक तलों के, बिल्डिंग खड़े होने लगे हैं, बचे -खुचे माटी के घर ढह रहे हैं या घरों में, लटके ताले सड़ रहे हैं। खुशी की बात है  गांव की खूशबू अभी बाकी है खेत की सोंधी गमक अभी ताजी है पेड़ -पौधे बंसवारी भी सांस भर रही है, शहर जैसे हालात तो नहीं है शहर की एक बस्ती में हजारों मकान हैं पेड़ नदारद, कौवा और परिन्दो को जगह कहां ? हवा में धूल -धुआं और जहरीली गैसें भरी पड़ी है शहर में एक अच्छी शुरुआत हो चुकी है गमलों में जंगल पनपने लगे हैं छतों पर और मेरी छत पर भी  पत्नी और बेटे ने बना दिया है बगीचा और सब्जियों की क्यारी भी छ...

ट्रांसफर (कहानी) ~ नन्दलाल भारती

चमारिया के ट्रांसफर का आर्डर तुरंत निकालो मि. शेखावत। जी आप बिल्कुल सही पढ़ रहे हैं। चमारिया ही लिखा है। ये शब्द क्लास वन आफिसर डॉ विजय प्रताप सिंह के है जो एक बड़े विभाग में निदेशक थे। हुआ यों था कि कम्पनी के रिप्रेजेंटेटिव जनरल बाडी के चुनाव होने वाले थे जो हर तीन साल में होते थे। कम्पनी के हेडक्वार्टर से चुनाव की अधिसूचना जारी होते सभी छोटे -बड़े दफ्तरों में हलचल बढ़ गई थी। मालवगढ़ दफ्तर राज्य का भले हो एरिया आफिस था पर राज्य का बिजनेस इसी दफ्तर से होता था। इस दफ्तर के अन्तर्गत चुनाव के लिए छः:सौ से अधिक समितियां रही होगी। चुनाव की घोषणा होते ही मुख्यालय से चुनाव में सहभागिता करने वाली सभी समितियों के उच्च अधिकारियों के नाम,और समिति के विस्तृत पते की सूची सभी सम्बंधित दफ्तरों को अंग्रेजी में भेज दिया गया। मालवगढ़ दफ्तर से सम्बंधित सूची वरिष्ठ क्षेत्रीय प्रबंधक,मि. काम प्रवेश सिंह को प्राप्त हो गई। मि.काम प्रवेश ने अपने सजातीय विपणन सहायक की सूची पर कांपते हाथो से दसख्त कर कालबेल घनघना दिये। चपरासी रईस हांफता हुआ हाजिर हुआ था। मि.काम प्रवेश -ये सहकारी समितियों की सूची के बण्डल ह...

किसान जीवन की संघर्ष गाथा को चित्रित करती विमल राय द्वारा निर्देशित फिल्म: दो बीघा जमीन ~ अमृता राव

 शोध सार -'दो बीघा जमीन' फिल्म किसानों के संघर्ष और उनके दुख- दर्द को केंद्र में रखकर बनाई गई एक सामाजिक यथार्थवादी फिल्म हैं। एक किसान द्वारा अपनी जमीन बचाने की जद्दोजहद है और लाख कोशिशों के बावजूद अंत में अपनी जमीन ना बचाने की टीस है।प्रेमचंद के 'गोदान' उपन्यास में होरी ने कहा है- "जैजात किसी से छोड़ी नहीं जाती हैं …खेतों में जो मरजाद है वह नौकरी में तो नहीं है।"फिल्म के नायक शंभू महतो के लिए यह जैजात उसकी मां के समान है। मां को बेचने या सौदा करने की बात तो सपने में भी नहीं सोच सकता।लेकिन प्रेमचंद की कहानी 'सवा सेर गेहूं' के जैसा साहूकार यहां भी जमीदार के रूप में है जो शंभू के पाई पाई को तो जोड़ लेता है लेकिन अपने द्वारा गुलामी करवाए गए कार्यों का कोई हिसाब नहीं रखता।मिल खड़ा करने के लिए,शंभू के जमीन देने से इनकार करने पर जमीन हथियाने के लिए बहीखाते का हथकंडा अपनाता है। शंभू तीन महीने की मोहलत में अपना जी जा- जान लगाने पर भी जमीदार का कर्जा नहीं उतर पाता और परिस्थितिवश किसान से मजदूर बनने पर विवश हो जाता है। बीज शब्द- किसान,सिनेमा,संघर्ष,जमींदार,...