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प्रेम में पत्थर हो जाना (कविता) ~ डॉ. प्रभाकर सिंह

 प्रेम में पत्थर हो जाना प्रेम में पड़ा व्यक्ति आसमान जमीन पर ला सकता है, चांद तारे तोड़ सकता है, जमीन को गहरे खोदकर पानी निकाल सकता है प्रेम में पड़ा व्यक्ति बरसों भूखे प्यासे रहकर अपने  साथी का इंतजार कर सकता है, प्रेम में पड़ा व्यक्ति  प्रेमी के लिए अपने घर बार को छोड़कर अपनों को छोड़ सकता है। पर यह सब करते हुए व्यक्ति प्रेम निभाता है जीता नहीं प्रेम करना प्रेम में पत्थर हो जाना है, प्रेम में पड़ा  व्यक्ति जब पत्थर हो जाता है, तब वह प्रेम का  रुपाकर हो जाता है, प्रेम में पत्थर हो जाना  संवेदनहीन होना नहीं न हीं कठोर होना है, प्रेम में पत्थर होना मानो लहरों में तराशी हुई आकृति हो जाना है, प्रेम में पत्थर  होना, किसी मकान की नींव बन जाना है, जिस पर  प्रेम की इमारत खड़ी होती है, प्रेम में पत्थर हो जाना किसी के गाढ़े बखत पर  अडिग होकर खड़े हो जाना है, प्रेम में पत्थर होना, प्रेम में पहाड़ हो जाना है जिसके हृदय में नदी का सोता फूटता है                              डॉ. प्...

बिकाऊ है! ( कहानी ) ~ कार्तिकेय शुक्ल

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  सिटी हॉस्पिटल के ICU वार्ड में पड़ा हुआ विवेक जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा था।चौबीसों घंटे डॉक्टरों और नर्सों के निगरानी में उसका एक-एक पल कट रहा था।ऐसा जैसे कि ये उसे सबसे ज्यादा चाहते हों।जैसे पहले के राजकुमार अपनी राजकुमारियों की निगहबानी करते हों।लगातार उस पर पर मशीनों पर नज़र रखी जा रही थी।प्रत्येक 3-3 घण्टे के अंतराल पर डॉक्टर आते और उसके हालत को देखते और चले जाते थे।लेकिन उन्हें एक बात सुकून दे रही थी कि विवेक जी सकता है।क्योंकि उसके द्वारा किये जा रही कुछ ऐसी क्रियाएँ जिन्हें मेडिकल साइंस में एक चमत्कार के रूप में माना जाता है।उनसे पता चल रहा था कि विवेक अपने तरफ से पूरी कोशिश कर रहा है कि वो जिंदा हो सके।बस यही एक उम्मीद थी जिसने डॉक्टरों के साथ विवेक के घरवालों और चाहनेवालों के लिए भी संजीवनी का काम कर रही थी।नहीं तो सबने ये मान लिया था कि अब विवेक फिर कभी न मिलेगा।हम उसे खो देंगे।किन्तु इधर कुछ दिनों से अब सबके सांस में सांस आई थी।                                 दिनभर में बस एक बार विवेक के...