प्रेम में पत्थर हो जाना (कविता) ~ डॉ. प्रभाकर सिंह

 प्रेम में पत्थर हो जाना


प्रेम में पड़ा व्यक्ति आसमान जमीन पर ला सकता है,

चांद तारे तोड़ सकता है, जमीन को गहरे खोदकर

पानी निकाल सकता है

प्रेम में पड़ा व्यक्ति बरसों भूखे प्यासे रहकर अपने 

साथी का इंतजार कर सकता है, प्रेम में पड़ा व्यक्ति 

प्रेमी के लिए अपने घर बार को छोड़कर

अपनों को छोड़ सकता है।

पर यह सब करते हुए व्यक्ति प्रेम निभाता है

जीता नहीं

प्रेम करना प्रेम में पत्थर हो जाना है, प्रेम में पड़ा 

व्यक्ति जब पत्थर हो जाता है, तब वह प्रेम का 

रुपाकर हो जाता है, प्रेम में पत्थर हो जाना 

संवेदनहीन होना नहीं न हीं कठोर होना है,

प्रेम में पत्थर होना मानो

लहरों में तराशी हुई आकृति हो जाना है, प्रेम में पत्थर 

होना, किसी मकान की नींव बन जाना है, जिस पर 

प्रेम की इमारत खड़ी होती है,

प्रेम में पत्थर हो जाना किसी के गाढ़े बखत पर 

अडिग होकर खड़े हो जाना है, प्रेम में पत्थर होना,

प्रेम में पहाड़ हो जाना है जिसके हृदय में नदी का

सोता फूटता है


                             डॉ. प्रभाकर सिंह हिन्दी विभाग बीएचयू 



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