बिकाऊ है! ( कहानी ) ~ कार्तिकेय शुक्ल

 


सिटी हॉस्पिटल के ICU वार्ड में पड़ा हुआ विवेक जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा था।चौबीसों घंटे डॉक्टरों और नर्सों के निगरानी में उसका एक-एक पल कट रहा था।ऐसा जैसे कि ये उसे सबसे ज्यादा चाहते हों।जैसे पहले के राजकुमार अपनी राजकुमारियों की निगहबानी करते हों।लगातार उस पर पर मशीनों पर नज़र रखी जा रही थी।प्रत्येक 3-3 घण्टे के अंतराल पर डॉक्टर आते और उसके हालत को देखते और चले जाते थे।लेकिन उन्हें एक बात सुकून दे रही थी कि विवेक जी सकता है।क्योंकि उसके द्वारा किये जा रही कुछ ऐसी क्रियाएँ जिन्हें मेडिकल साइंस में एक चमत्कार के रूप में माना जाता है।उनसे पता चल रहा था कि विवेक अपने तरफ से पूरी कोशिश कर रहा है कि वो जिंदा हो सके।बस यही एक उम्मीद थी जिसने डॉक्टरों के साथ विवेक के घरवालों और चाहनेवालों के लिए भी संजीवनी का काम कर रही थी।नहीं तो सबने ये मान लिया था कि अब विवेक फिर कभी न मिलेगा।हम उसे खो देंगे।किन्तु इधर कुछ दिनों से अब सबके सांस में सांस आई थी।

                                दिनभर में बस एक बार विवेक के माता-पिता और कुछ ख़ास लोगों को उससे मिलने दिया जाता।इसे मिलना न कह के देखना कहें तो ही सही होगा।प्रत्येक दिन शाम को 6 बजे कुछ ही लोग ICU वार्ड में जा पाते और उसे देखते।जिनमें कुछ परिजन,रिश्तेदार और मित्र भी होते।उसके दादी,मम्मी और बहन को तो डॉक्टरों ने साफ मना कर दिया था।क्योंकि जब वे विवेक को देखतीं तो चिल्ला-चिल्ला कर रोने लगती थीं।उसकी बहन तो 2-2 बार बेहोश भी हो गई थी।इसलिए इनके जाने पर शख़्त मनाही थी।ये तीनों यदि कभी हॉस्पिटल आती भी थीं तो बाहर से ही काँच के उस पार खड़े होकर देख पाती थीं।जो कि डॉक्टरों के हिसाब से विवेक के लिए अच्छा और इसी एक बात के कारण इन तीनों के जाने पर रोक लगा दी गई।

                              पर इन सब बातों से बेपरवाह होकर विवेक पिछले 18 दिनों से एक ही बिस्तर पर पड़ा था।उसे क्या पता कि बाहरी दुनिया में क्या हो रहा है?कौन उसके प्रति संवेदना व्यक्त कर रहा है और कौन आँसू बहा रहा है।वो तो इन सब चीजों से बेफ़िक्र हो चैन की नींद सो रहा था।जैसे कई महीनों से उसकी नींद पूरी नहीं हुई हो।लेकिन लगातार 18 दिनों के ईलाज के बाद भी कोई ख़ास फ़ायदा नहीं दिखा तो डॉक्टरों को कुछ सन्देह हुआ और उन्होंने तब विवेक के घरवालों से विवेक के कल पर बात करने की कोशिश की।जब डॉक्टरों को विवेक के घरवालों ने बताया कि ऐसा कुछ नहीं हुआ था।जिससे कि विवेक डिप्रेशन में चले जाय।हम लोग तो कभी भी उस पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डालते थे।वो पढ़ाई में भी अव्वल था।फिर न जाने अचानक क्या होगा?और विवेक इन हालातों में पहुँच गया।

                                   ये सारी बातें जब डॉक्टरों ने डॉक्टर बिरला को बताया तो वे ये मानने को तैयार ही नहीं थे।क्योंकि उनके अनुसार विवेक एक ख़ास सिंड्रोम से पीड़ित था।जिसके बार उसके मस्तिष्क में ब्लड और ऑक्सीजन का प्रवाह कम हो गया था।इसका मतलब डॉo बिरला यही निकाले कि कोई ऐसी बात जरूर है।जिसके कारण विवेक ने काफी सोचा होगा और धीरे-धीरे डिप्रेशन में जाने के कारण वो इस सिंड्रोम के गिरफ़्त में आया होगा।बस इसी बात को जानने के लिए उन्होंने विवेक के घरवालों से कहा कि आप विवेक के दोस्तों को बुलाइये।मैं उनसे कुछ बात करना चाहता हूँ।चूँकि डॉo बिरला सीनियर डॉक्टर थे और बाहर से आये थे।इसलिए उनके द्वारा कही गई बातों को स्वीकार करना बहुत जरूरी था।कुछ दोस्त तो हमेशा हॉस्पिटल आते थे और बहुत देर तक रहते थे।और इस बात को जानने के बाद कि डॉo बिरला ने बुलाया है।कुछ और मित्र भी जल्द ही उपस्थित हो गए।

                                उन सबको डॉo बिरला के केबिन में ले जाया गया।जहाँ वे लोग बैठे और डॉo बिरला के आने का इंतजार करने लगे।जब डॉक्टर आये तो आते ही उन्होंने सबका अभिवादन किया और कॉफी के लिए पूछा।कुछ ने कहा कि वे लेंगे और कुछ ने विनम्रता पूर्वक मना कर दिया।कुल जमा 8 लोग थे इसलिए परिचय में ज्यादा समय नहीं लगा।परिचय में उपरांत डॉo बिरला ने आकाश से पूछा कि विवेक को कौन-सा खेल पसन्द था?आकाश का उत्तर था शतरंज।मोहित से उन्होंने पूछा कि वो क्लास करता था तो मोहित ने बताया कि जी हाँ वो हमेशा क्लास करता था।जब सलोनी से उन्होंने पूछा कि आप उसकी गर्ल फ्रेंड हैं तो उसने शर्माते हुए न कहा।फिर सलोनी से ही उन्होंने पूछा कि क्या उसकी कोई गर्ल फ्रेंड है?तो सलोनी ने कहा कि अभी तो नहीं है लेकिन कुछ दिन पहले तक थी।अच्छा और अब कोई नहीं है ऐसा क्यों डॉक्टर ने पुनः एक सवाल दाग दिया।तब सलोनी के पास कोई जवाब नहीं था।सलोनी बोली कि मुझे नहीं पता क्योंकि विवेक ये सब बातें कभी किसी से शेयर नहीं करता था।

                               डॉक्टर साहब को तो कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि आज का लड़का अपने अफ़ेयर के बारे में किसी से बात नहीं करता था।लेकिन जब उन्होंने ने पूछा कि उस लड़की का क्या नाम था तो रोहन बोला राधिका।नाम तो बहुत अच्छा है क्यों?सबने सहमति में सर हिलाया।फिर राधिका के बारे में जब डॉक्टर ने पूछना शुरू किया तो एक-एक बातें अपने-आप खुलकर सामने आने लगीं।जो लोग कुछ न जानते थे वही लोग कुछ-कुछ कर के बहुत कुछ बताने लगे।किसी ने उसके क्लास तो किसी ने उसके स्मार्टनेस तो किसी से उसके पढ़ाई के बारे में बताना शुरू कर दिया।जब डॉक्टर बिरला ने पूछा कि ये दोनों कब से एक साथ थे तब इसका जवाब किसी के पास नहीं था।क्योंकि विवेक और राधिक के रिलेशन के बारे में किसी को ज्यादा जानकारी नहीं थी।इसलिए किसी ने कुछ नहीं बोला।इन सबके ख़ामोशी ने डॉक्टर को सोचने पर मजबूर कर दिया।क्योंकि राधिका से इस बारे में बात करना उचित नहीं था और वो फ़िलहाल यहाँ थी भी नहीं।इसलिए ये विषय यहीं पर बन्द हो गया।लेकिन डॉक्टर बिरला जाने-माने सैकोजिस्ट थे इसलिए वे इतने जल्दी हार नहीं मानने वाले थे।क्योंकि किसी के जिंदगी का सवाल था।

                               इसी कारण उन्होंने सबको रिलैक्स होने को कहा और TV ऑन कर के समाचार देखने लगे।शाम का समय था सो विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होना लाज़िमी था।आज तक पर "देश में देश" विषय पर चर्चा हो रहा था।सभी वक्ता अपनी-अपनी बात रख रहे थे।कोई कह रहा था कि जिसे देश में नहीं रहना है वो यहाँ से चला जाए तो कोई कह रहा था कि ये हमारा भी देश है।हमें संविधान से आज़ादी मिली है।जो मन करेगा वो करेंगे।बस यही कहना था कि दक्षिणपंथी वक्ता ने सवाल फेंक दिया कि क्या तुम कहीं भी गन्दा करोगे और चुप बैठेंगे?ये बात विपक्षी वक्ता को बुरा लग गया और उसने कहा कि जबान सम्भालकर बोलो नहीं तो मुँह तोड़ दूँगा।बस इसी बात पर बात बिगड़ गई और शो का सत्यानाश हो गया।माईक के साथ बहुत कुछ टूटा और मुँह से क्या-क्या फूटा?उस पर बात न की जाए तो ही मुनासिब होगा।

                            अचानक डॉo बिरला ने मोहित से पूछा कि Mr. मोहित एक बात बताओ विवेक आप लोगों से किन मुद्दों पर बातचीत करता था।ये सवाल तो बहुत ही उलझा हुआ था लेकिन जवाब देना था सो मोहित को बोलना पड़ा कि आजकल अक्सर वो लड़कियों पर बात करता था।उससे 4-5 मिनट बात कीजिये तो पता न कहाँ से उसमें लड़कियों का ज़िक्र करने लगता था।जो कुछ अलग-अलग सा लगता था।वो कभी-कभी तो लड़कियों को अपशब्द भी बोल देता था।अपशब्द... क्या कहा तुमने विवेक लड़कियों को अपशब्द भी बोलता था।हाँ सर वे बहुत ही बुरे शब्द होते थे।सलोनी ने भी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा।सलोनी तुमसे भी विवेक ऐसी बातें करता था।जी बिल्कुल मैं तो कभी-कभी खीझ जाती थी।जब वो हम लड़कियों को माल,बाजारू और भी बहुत कुछ कहता था।हद तो तब हो जाती थी जब वो ये कहता कि सबकी-सब बिकाऊ हैं।जब उसने ये कहा कि तू भी बिकाऊ है तो मेरा खून खौल गया।पैसा दो और रंग भरो।लेकिन मैं ये सब सुन लेती थी क्योंकि वो मेरा दोस्त है।

                                    इस एक बात ने विवेक के बारे डॉo बिरला की उत्सुकता बढ़ा दी।वे सबसे इस विषय पर बताने के लिए बोले और ख़ुद सुनने लगे।इस प्रकार एक नई ही कहानी उभड़कर सामने आई।जो परत-दर-परत नए आयाम में खुल रही थी।जब उन लोगों ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से वो परेशान रहने लगा था और तभी से ये सब बातें कर रहा था।हमें तो लगता था कि ऐसे ही ये कर रहा है किंतु बाद में पता चला कि राधिका के कारण ये सब हुआ।क्योंकि पहले तो राधिका इसके साथ रहती थी लेकिन इधर कुछ दिनों से ये अकेला ही रह रहा था।उसी के बाद इसका व्यवहार बदल गया था।इसी कड़ी को पकड़कर डॉo बिरला ने कई बातें जान लीं जो राधिका और विवेक से सम्बंधित थीं।रोहित ने जब बताया कि एक बार जब वो राधिका को कॉफी पीने के लिए बुलाया तो आई लेकिन अपने सहेली के साथ और कुछ ही देर में चली भी गई।जिसके कारण वो बहुत ही नाराज़ हुआ था।और कहा कि ये लड़कियाँ हमारे क़ाबिल नहीं हैं।समझती क्या हैं अपने आप को?आज मैं कहता हूँ तो कॉफी तक नहीं पीती है और अभी कोई IIT का लड़का आ जाए तो रासलीला करने लगेंगी।यदि कोहली आकर कह दे तो उसको देने के लिए दौड़ पड़ेंगी।मैं तंग आ चुका हूँ इनकी हरकतों से।

                            इन सारी बातों को डॉक्टर साहब बड़े इत्मीनान से सुन रहे थे और इसी विषय पर और सुनना चाहते थे।और मज़े की बात ये थी कि सुनाने वाले भी आज अपनी भड़ास निकाल रहे थे।क्योंकि वे लोग भी कुछ ऐसे ही परिस्थितियों से गुज़रे थे और गुज़र रहे थे। जब आँचल ने कहा कि डॉक्टर एक बार तो मैं उसको चाँटा मार दी होती।क्योंकि उसने लड़कियों के लिए जिन अल्फ़ाज़ों का प्रयोग किया था उसे मैं बता भी नहीं सकती।बोलो बेटा आज तुम अपने लिए न सही विवेक के लिए बोलो यदि तुमलोग चाहते हो कि विवेक बच जाए तो सारी बातें खुलकर बोलो।जब डॉक्टर बिरला ने ये कहा तो न चाहते हुए भी आँचल बोल पड़ी।हम दोनों फैकल्टी में बैठे थे तभी राधिका उधर से निकली और हमें देखते हुए भी इग्नोर करके चलती बनी।ये बात विवेक को बहुत बुरा लगा और वो कह उठा कि "यदि यही हालात रहे तो आने वाले दिनों में प्रयोगशालाओं में लड़कियाँ तैयार की जाएँगी और उन्हें थोक के भाव में बेचा जाएगा।"जिसका तुम लोगों को बहुत गुमान है न उसको लड़के बिस्तर पर रोज कई बार रौंदेंगे।और ये कहते-कहते आँचल रोने लगी।किसी तरह उसे सबने चुप कराया।पूरा केबिन बिल्कुल शांत था।किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर हो क्या रहा है?

                                अच्छा रोहन तुम कुछ बताओ विवेक के बारे में जो इन लोगों ने नहीं बताया हो,डॉक्टर फिर से पूछ बैठे।रोहन तो पहले सकपकाया परन्तु डरते-डरते बोला कि एक बार मैं और विवेक लाइब्रेरी जा रहे थे तभी विवेक लड़कियों की बात करने लगा और मैं जी हुजूरी।उसने लड़कियों को कई कैटगरी में बाँटा जिनमें से 3 कैटगरी में वे लड़कियाँ आती थीं।जिन्हें कुछ इधर उधर करके पाया जा सकता है।डॉक्टर बिरला बोल पड़े अच्छा ये बात है ज़रा उनका नाम तो बताओ।रोहन बोला कि पहली कैटगरी में वे लड़कियाँ हैं जो लड़कों के ऑनर्स,फैकल्टी और अंग्रेजी बोलने पर रीझ जाती हैं।दूसरे कैटगरी में वे लड़कियाँ हैं जो अपाची या पल्सर बाइक पर दीवानी हो जाती हैं।इन्हें बाइक पर बैठाओ और जहाँ चाहो वहाँ ले जाओ।और तीसरे कैटगरी में वे लड़कियाँ हैं जिनको पटाने के लिए चारपहिया की जरूरत पड़ती है।महीने भर में 7 से 10000 हजार रुपये खर्च करो और हँसते-हँसते जन्नत की मजा लो।और तो और उसने इनके लिए एक स्पेशल कैटगरी भी बनाई थी।जिसमें हीरो,क्रिकेटर और IAS आते हैं।वो कहता था कि आज कोई IAS इनके कंधे पर हाथ रख दे तो ये अपने बाप तक को भूल जाएँ।अच्छा-अच्छा ये बात है मैं सब समझ गया डॉo बिरला कुर्सी पर से उठते हुए कहे।अंत में उन्होंने बस इतना ही कहा कि मुझे तरस आती है कि विवेक जैसे होनहार लड़के भी इन सबके चक्कर में पड़कर अपने वर्तमान और भविष्य को गवाँ बैठते हैं।अब आप लोग जाओ इतना समय देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!

                                रात में डाइनिंग टेबल पर डॉक्टर बिरला ने ये सारी बातें Mrs. बिरला को बताया तो वे बोलीं कि आजकल के बच्चे भी न...।जब वे पूछीं कि अब आप क्या करेंगे तो डॉक्टर साहब ने कहा वही जो विवेक को चाहिए।अगले सुबह से विवेक के वार्ड में सिर्फ लेडीज़ डॉक्टर ही जाती थीं और नर्सों को सफेद कपड़े पहनकर जाने पर रोक लगा दी गई।हैरानी तो तब हुई जब विवेक के साथ रात में एक लड़की को सुलाया गया।जिसे कोई कॉल गर्ल थी और उसे पैसा देकर लाया गया था।सिटी हॉस्पिटल के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा था लेकिन ख़ैर कि बात ये थी कि इसे बहुत ही गोपनीय रखा गया।बहुत लोगों को इसके बारे में नहीं पता था कि विवेक को लेकर एक नया प्रयोग किया जा रहा है।क्योंकि यदि ये बात किसी बाहरी को पता चल जाती तो विवेक के साथ-साथ उसके घरवालों, डॉक्टर और हॉस्पिटल सबकी बदनामी होती।इसलिए इसे अत्यंत गोपनीय रखा गया।हैरत तो तब हुआ तब विवेक के लगातार सुधार आने लगा।जो काम पिछले 18-19 दिनों से दवा नहीं कर रहा था वो काम कॉल गर्ल और नर्सों ने कर दिखाया।अब विवेक धीरे-धीरे ठीक होने लगा था और एक दिन ऐसा भी आया जब विवेक को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया।

                            आज पूरे 1 महीने बाद वो क्लास में गया था।जिसको देखकर सभी स्टूडेंट्स ख़ुश थे। हाँ ये अलग बात थी कि विवेक के सिवा और कोई नहीं जानता था कि वो कैसे ठीक हुआ?लेकिन विवेक भी ये बात किसी को नहीं बताया।क्योंकि वो जान गया था कि यहाँ प्रत्येक चीज़ बिकाऊ है!बस जरूरत है सही क़ीमत की सब बिकेंगी चाहे वो अपने पापाजी की परी हों या मम्मी की लाडली।आप पैसा फेंको और तमाशा देखो।कुछ ख़ुशी-ख़ुशी चली आएँगी तो कुछ बिस्तर पर ख़ुश हो जाएँगी।

                  ~ कार्तिकेय शुक्ल, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, सी एच यू 

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