लोग कविता ~ मेवालाल
लोग
सोचता था पहले मैं
था जब बारहवीं में
है यहां कर्तव्य की भावना
है यहां ईमानदारी का महत्व
अपना पराया भाव छोड़
लेते है सब सत्य का पक्ष
और लेते रहेंगे।
जब आती होगी देश की बात
छोड़ देते होंगे अपना स्वार्थ
पर ऐसा नहीं है।
यहां सब कुछ ठीक है
अपनी मातृभूमि
अपने देश पर गर्व करना चाहिए।
अपना देश बहुत सुंदर है।
अपनी जन्मभूमि भी यहीं
अपनी कर्मभूमि भी यहीं
यहां सब ठीक क्या सब सही ?
क्या कहूं इनको :
प्रतिदिन तीन हजार
हर भारतीय
जा रहे बसने
विदेशों में
छोड़ रहे है अपनी नागरिकता ?
आदर्श नहीं,यथार्थ की बातें करो
बिलकिस बानो एक प्रतीक
इंद्र मेघवाल
मिथक कहूं या नागरिक
कितना आदर्श गढ़ोगे ?
देखकर मोह भंग हो जाता है
गढ़ा गया विचार
रोज हो रहे अपराध
जवाबदेह नहीं सरकार
ऐसा मत लिखो
तनाव पैदा होगा
विवाद बढ़ेगा।
नहीं भाई
अगर सच है तो
सच को होना चाहिए पारदर्शी
लिखो और बोलो सच
शायद कुछ हल निकले।
शोध के लिए
प्रवेश पाने के लिए
उच्च शिक्षण संस्थाओं में
नहीं मिलते प्रवेश
पढ़ने के लिए
तब मैने जाना
जो मैं सोचता हूं गलत है।
बहुत जटिल है समाज
अगर जिंदगी नहीं
तो न्याय किस काम का
अगर सम्मान नहीं
तो जिंदगी किस काम की ?
मैं पहले जनता था
सब कोई आदर करता है देश का
देश की लोगों की सेवा
मन लगा करते है
अपना कर्तव्य
कमजोर लोगों की मदद
बिना सोचे करते है।
साहब ऐसा नहीं है
दुख है मुझे
मदद जाति और कैटेगरी
देखकर की जाती है।
मैंने देखा
यहां पढ़े लिखे लोग भी
जाति
लैंगिकता
नस्ल की प्रैक्टिस करते है
तर्क देते है और
इसे उचित ठहराते है।
देश का आदर लाभवश करते है।
जयकारे की नारे
लालचवश लगाते
भाइयों और बहनों
देश के लोगों की सेवा
उनका मदद और उनका काम
क्या आपको है पता
की जाती है
देखकर
अपनी निजी उपयोगिता
जाना मैंने यहीं
यदा कदा
व्यतीत कर लो जिंदगी
और
यहां से प्रस्थान (परलोक गमन ) करो।
विधायिका, कार्यपालिका
न्यायपालिका , पत्रकारिता
सबका है अच्छा हाल
चल रहा है अमृतकाल
चलने दो ;
लोगों को अपने जैसा बना लो
पर सच मत बोलो
इसलिए कि
गरीबों का अर्थव्यवस्था में
होता है योगदान
वे भी नागरिक है
अपने देश के
प्रवासी नहीं है।
ज्यादा मत बोलो
क्योंकि
ज्यादा बोलोगे
या लिखोगे
तो पीटे जाओगे
मारे जाओगे
कहा ना
उनके बारे में
मत करो शोध।
– मेवालाल, शोधार्थी, हिंदी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय 7753019742
गजब मेवा ब्रो.
ReplyDeleteबेहतरीन
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