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Showing posts from January, 2023

कलयुग में दुनिया के रूप ~ अमित कुमार

  एक बार की बात है नारद मुनि पृथ्वी लोक में विचरण कर रहे थे कि  तभी उन्होंने अपने व्हाट्सएप में पढ़ा कि एक पुजारी शिक्षा मंदिर में पूजा कर रहा था कि तभी एक सांप आया !!और पुजारी पीछे हटा और वह सांप फिर बंदर बन गया और पुजारी बेहोश होगया फिर होश में आया तो उसने देवी का रूप लेकर कहा कि अब कलयुग में बहुत पाप बढ़ गया है और अति शीघ्र ही इन पापियो का अंत करूँगी!! और जो इस संदेश को 10 लोगों के पास भेजेगा उसे घर में उपहार मिलेगा और जो नहीं भेजेगा उसका नाश हो जाएगा ;; नारद जी ने इतना ही पढ़ा था और बह नारायण नारायण  कहते हुए बेहोश होकर धरती में आ गिरे  और जब उन्हें चेतना आई तो अपनी चिंता के लिए प्रासंगिक विचार करना शुरू किया और मिट्टी से सांप बना कर कैलाश परबत की ओर फेक दिया !! ये संकेत पाकर शिवजी का प्रिये तक्षत नाग अति वेग से फुफकारता हुआ उनकी ओर उपस्थिति हुआ।🐍🐍🐍 और उसने मुनि से कहा हे मुनिवर किस कारण मुझे यहां उपस्थित होने का आदेश दिया गया है हे मुनिवर क्या आपको यहां कोई असुर परेशानी दे रहा है?? कहा हे हलाहल विशधारी  ये आप विष्णु पुराण और शिव पुराण को असत्य क्यों सिद्...

जूते पर जीभ कविता विवेक कुमार तिवारी

 जूते पर जीभ करबद्ध नतग्रीव रीढ़हीन तुम क्या करने आये हो? हर बात में हाँ विचारशून्य क्षुद्रबुद्धि तर्कहीन तुम क्या बनने आये हो? किसी अकेली रात में हांथ को माथे पर रख कोई मुक़म्मल ख़्वाब नही देखा क्या? हरी-भरी रंग-बिरंगी वादियों में बाहों को फैलाकर  कभी उड़ना नहीं चाहा क्या? तब तो यार तुम सब बहुत बड़े चमर चट्टू हो बेवकूफ वजीरों के  भाड़े के टट्टू हो। फिर तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता कितना भी सहलाओ यार तुम्हारा जी नहीं भर सकता तुम सब के सब सार्वजनिक स्थल का वह कोना हो जहाँ कोई थूक जाए बिना पेनी के दोना हो जो कहीं लुढ़क जाए देखो यार फिर मेरी बात मानो भले बुरा लग रहा हो तुम्हारा अस्तित्व  किसी वेश्या की बेडशीट और शौचालय की सीट से ज्यादा नहीं है। खैर तुम सब एक हीं प्रजाति के लकड़बग्घे हो अपना दुःख-सुख बांटते रहो वो थूकते रहें तुम चाटते रहो। विवेक कुमार तिवारी शोध छात्र, हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

कचरा कविता ~ मेवालाल

     कचरा  मैं कचरा नहीं हूं मुझे फेंको मत कचरा मत समझो अगर है क्षमता तुममें रिसाइकिल करो उपयोगी बनाओ जो लोगों के काम आए तुम मानव हो तुम्हारे पास सोचने की क्षमता है तुम्हारे पास रचनात्मकता है                                              ~मेवालाल             

अयप्पा मंदिर पर कविता ~ मेवालाल

           अयप्पा मंदिर पर प्रवेश के पहले:— एक जैसी संरचना अपनी एक  जैसा क्रियाकलाप  है। किस बाट से तुम तौलोगे बताओ तुम्हारे पास क्या नाप है? मुझसे ही सृष्टि उपजी है नारी से विकसित होता नर है। किस मुख से विरोध करोगे ? रक्त तो सबके अंदर है। कुदरत की अनोखी धरा पर सब दो पल के मेहमान हैं। मानवता का घर नहीं बसा यहाँ सबके अंदर भगवान है? बुद्धि तो कुबुद्धि में बदली घाव को दोबारा गहरा किया। उससे ही पैदा होकर  कैसे उसने अपवित्र ठहरा दिया ? प्रवेश के बाद :– घर से भी नाता छोड़ चुकी हूं अब मौत ही आखिरी क्षण होगा। अयप्पा से तो शुरुवात हुई है अब कुरुक्षेत्र में  भी रण होगा। भोग त्याग बहुत हो चुका बहुत हो चुकी निगरानी। संग्राम तो अब निश्चित है तूफान चले या आए पानी। सदियों की बेडिया टूटेंगीं  वक्ष लेगी चैन की सांसे। सज धजना ही कहर बनेगी जी भर देखेगी  प्यासी आंखें।                                                 —मेवालाल ...

शिशु कविता ~रेखा मौर्य

     शिशु आया है तू कौन देश से,  ये बता मुझको। तेरे आने से फैलती रौनक, घर भर होता उजियार। काम छोड़कर सब भागते तेरे पीछे, देते तुम्हें पुचकार । आया है तुम कौन देश से, ये बता मुझको। नन्हें कदमों से चलना जब सीखा माँ करती फरियाद। इसी तरह तुम आगे बढ़ना होगा जीवन सफल साकार। आया है तू कौन है देश से,     ये बता मुझको। प्रस्फुटित हुई कंठ से जब ध्वनि तुमने बोला माँ । आयी उसके अंतरंग से एक ध्वनि तुम्हें मिला जीवन अपार। आया है तू कौन देश से,  ये बता मुझको।                                                                                                         – रेखा मौर्या शोधार्थी का. हि. वि.

रक्षाबंधन कविता ~ मेवालाल

         रक्षाबंधन “यह रक्षाबंधन बनाती है रिश्ता एक भाई बहन की जोड़ती अनुराग पर चलाती। निर्मित होती मानवता जन की । इस धरा पर पूर्णता नहीं असक्त असहाय सब पड़ते है मदद से मदद मिलेगा बंधु यह बाते धर्म व ईश्वर की । सहयोग करें जो संकट में कमी न होगी मूल्य जीवन की बहादुर शाह आक्रमण को आ रहा बहन पुकारती लिए बंधन प्यार की। कर्मवती पत्नी राणा सांगा, चित्तौड़ की।” चिट्ठी की बातें सुनते ही खडग हाथ का डोला। जैसे पढ़कर बंद हुई भाई उत्साह से उठकर बोला । हुमायु: बहन की रक्षा सम्राट करेगा        शाह की किस्मत कर रही कुचाल है।        चित्तौड़ वह नहीं जीत पाएगा        समझो उसका विजय की काल है। स्थगित करता बंगाल अभिमान मदद हैं प्राथमिकता हमारी। बहन अविलंब मैं आता हूं छोड़ दे अब संकोच सारी । महामंत्री: इतनी जल्दी इतनी हैरानी दिख रहे हो अजीब भले। बिना किसी तैयारी के हे शहंशाह तुम कहां चले। भूल गए हों तुम शायद काफिर की रक्षा हेतु जाते हो । कुछ पैगंबर का ख्याल करो शत्रु की ओर क्यों हाथ बढ़ाते हो। हुमायूं:...