अयप्पा मंदिर पर कविता ~ मेवालाल

           अयप्पा मंदिर पर

प्रवेश के पहले:—

एक जैसी संरचना अपनी

एक  जैसा क्रियाकलाप  है।

किस बाट से तुम तौलोगे

बताओ तुम्हारे पास क्या नाप है?


मुझसे ही सृष्टि उपजी है

नारी से विकसित होता नर है।

किस मुख से विरोध करोगे ?

रक्त तो सबके अंदर है।


कुदरत की अनोखी धरा पर

सब दो पल के मेहमान हैं।

मानवता का घर नहीं बसा

यहाँ सबके अंदर भगवान है?


बुद्धि तो कुबुद्धि में बदली

घाव को दोबारा गहरा किया।

उससे ही पैदा होकर  कैसे

उसने अपवित्र ठहरा दिया ?


प्रवेश के बाद :–

घर से भी नाता छोड़ चुकी हूं

अब मौत ही आखिरी क्षण होगा।

अयप्पा से तो शुरुवात हुई है

अब कुरुक्षेत्र में  भी रण होगा।


भोग त्याग बहुत हो चुका

बहुत हो चुकी निगरानी।

संग्राम तो अब निश्चित है

तूफान चले या आए पानी।


सदियों की बेडिया टूटेंगीं 

वक्ष लेगी चैन की सांसे।

सज धजना ही कहर बनेगी

जी भर देखेगी  प्यासी आंखें।

                                                —मेवालाल


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