गजल 1 आशीर्वाद त्रिपाठी

 जिस तरह उस व्यथा का वहन हो रहा है।।

क्या बताऊँ की कैसे सहन हो रहा है।


मांग थी जिनको सिद्दत से जनतंत्र की।

भूख से आज उनका दमन हो रहा है।।


थी जरूरत अयोध्या को अभिषेक की।

किन्तु रघुवर का वन को गमन हो रहा है।।


कल खड़े थे सड़क पर जो मत मांगते।

आज संसद में उनका शयन हो रहा है।।


लिप्त थे वे अभी तक भजन कर्म में।

अब व्यभिचार का अनुगमन हो रहा है।।


जिस जगह पर रावण दहन कल हुआ।

आज वहीं पर ही सीताहरन हो रहा है।।


                 ~आशीर्वाद त्रिपाठी बीएचयू

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