प्रेमालाप 2 ~ राहुल कुमार सहाय

 लगाव 

बुरी वस्तु है 

बेहद अमानवीय, 

बेहद क्रूर, तड़पाता है 

हृदय जलता है, सिसकता 

न ही ठीक मार्ग मार्ग पर जाता है? 

प्रकृति प्रेमी रहा मैं, अब केवल तुम्हारा 

मुझको चाहे स्वीकार करो तुम या करो किनारा

निकल चुका हूँ, पथ पर एकल सोचा तुमको भी लेलूँ

राह कठिन है, मार्ग है असंभव, जीवन बीता जाता फिर भी

मैं जीवन जगत का पंछी, सावन भादों जानूं अगर मिलोगी तुम

मेरी नैय्या पार लगाओ, तुम ही दैवीय प्रेरणा हो आखिर 

या मुझको साध लो तुम, साधन जो हो सो ले लो

मति नास, बुद्धि नास, नास नास जीवन ढैय्या

मै तो जीवन का पापी खोजूं अपनी नैय्या

राह कठिन है, मार्ग है कष्टमय

न प्रकाश न पुंज है आओ 

मुझे संभालो तुम

केवल तुम

तुम।


राहुल कुमार सहाय शोधार्थी बीएचयू 

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