प्रेम प्रवृत्ति ~ राहुल कुमार सहाय
प्रेम सर्वत्र है
आकार है, साकार है
प्रकृति का उपहार है
जाने बहार है
गुलिस्ताँ है विचार है
जगत तो मिथ्याचार है
आने वाला कल और भी बेकार है
जीवन का सरोकार है
व्यभिचार का आचार नहीं
पावन है सुन्दर है मदमस्त
केवल पैबंद नहीं
~ राहुल कुमार सहाय शोधार्थी बीएचयू
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