दो कवियों का मिलन (कविता) ~ डॉ प्रभाकर सिंह सर

 अक्सर मैं सोचता हूं

जब रहीम तुलसी से

मिलने चित्रकूट गए होंगे

महान अकबर से कहा होगा

‘ जहांपनाह कवि से मिलने जा रहा हूं।

जिसके जमीन का कद इन महलों के 

कंगूरों की ऊंचाई से 

और 

दरबारो की शान से 

कहीं ज्यादा बड़ा है।’

दो महान कवियों के मिलन के साक्षी

वह पेड़, पौधे , नदी, गुल्म और हवाएं

क्या सोचती होंगी,कैसे प्रेम से

निहार रही होंगी दोनों को

तुलसी से मिल रहीम

अवधी पर रीझे होंगे

रहीम से मिल तुलसी का 

मन ब्रज से दीप्त हो गया होगा

तुलसी के राम, राम से 

गरीबनवाज बन जाते है

तुलसी के राम पर आसक्त हो

रहीम के दोहों में रघुवीर समा जाते है

तुलसी के महान स्मृति में महान

अकबर ने ‘सियाराम मय सब जग जानी’ का सिक्का 

ढलवाया 

वह सिक्का जिस टकसाल में ढला

वह भाषा की साझी विरासत का सबसे खूबसूरत 

टकसाल था।


               ~ डॉ प्रभाकर सिंह सर , प्रोफेसर, हिंदी विभाग बीएचयू 

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