नई राह ~राहुल कुमार सहाय जी

 तथ्य की कमी थी आपके और मेरे पास

वाद विवाद होता खैर झगड़ा हो गया

सब्र की कमी थी तुम्हारे पास मेरे पास

फिर देखो बात क्या, गली में हल्ला हो गया

 क्या मेरी जमीन मुझसे रूठ गयी है

या मिल्कियत कहीं मेरा छूट गया है

आमने कभी सामने मेरे भोंकता कुत्ता

 लपकता कभी झपकता मुझे दौडता कुत्ता

ये जो राष्ट्रवाद के बीज देखो बोए है मैंने

अपने ही सगे संबंधित इसमें खोए है मैंने

रोउं गाउँ कहाँ जाउं खोया कैसे पाऊँ मैं

मित्रता, प्रेम और सोहाद्र कैसे पाऊँ मैं

ये जो नवजीवन का भ्रम अच्छा पाला है मैंने 

ये जो शिक्षित संसार कोईअपना डाला है मैने, 

कोई मार्ग,वीथी या गलियारा नहीं सूझता अब, 

और संबंध ये वैमनस्य का भी नहीं टूटता अब

 जरा हाथ से मेरे छूट गया है पगला पागलपन, 

जाने कौन राह चलेगा अब अलबेला पगला मन ।


~ राहुल कुमार सहाय 

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