आत्मशक्ति कविता ~ अनुपम ठाकुर

 मैंने कभी कोई कमी नहीं की।

सत्कार में, विचार में, व्यवहार में

तत्परता से, कुशलता से , चतुरता से

मैंने अपने हिस्से की ज़मीर को नमी नहीं की।

अर्पण से , तर्पण से, समर्पण से

इजहार में, प्यार में, य्यार में,

कभी बंजर नहीं किया दिल को ज़मीं की।

मैं हमेशा दौड़ता ही रहा

रात में, बात में, साथ में

मैं ढूंढता रहा 

आँखों में, शाखों पे , ताखों पे

मैं हमेशा जूझता रहा

वर्तमान से , ज़ुबान से, बेईमान से

@अनुपम ठाकुर 

    युवा कवि

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