उदासी भरे दिनों में कविता ~ सुमित चौधरी
"उदासी भरे दिनों में"
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कितना कुछ कहना चाहता हूं तुमसे
कि कोई रंग नहीं चढ़ता मेरे ऊपर
कोई मुलायम बात नहीं भाती मुझे
न ही अब मेरा चेहरा मुझे सुहाता है|
कितने उदास हैं दिन
कि बुझ नहीं पाती है सच की लौ मेरे भीतर
मैं चाह कर भी नहीं बचा पाता अपने लोगों को
वे आहत हो जाते हैं, मेरे कटु वचनों से
और विमुख हो जाते हैं
इन उदासी भरे दिनों में|
मैं सच कह रहा हूं
"मैं किसी फिल्म का नायक नहीं
जो ढाई घंटे बाद खुश हो जाऊं"
और कहूं कि सब कुछ ठीक हो गया
जबकि 'मैं ठीक नहीं हूं'
कितनी आधी-अधूरी बातें तुमसे कहकर
पूरा करना चाहता हूं|
सच है यह
पर कह नहीं पाता |
यह उदासी का आलम
कितना निर्जीव बना दिया है मुझे
कि तुम्हारे साथ होने के बाद भी
तुम पर खीज जाता हूं|
और तुम शांत-चुप होकर
पूरी शालीनता से सुनती जाती हो
'मुझे माफ करना
इसमें तुम्हारा दोष नहीं
यह उदासी भरे दिन का मामला है
जिसमें तुम्हारा प्रेम भी
मुझे ऊर्जा नहीं दे पाता'
~सुमित चौधरी, जेएनयू
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