18 मई 2023 का आदरणीय अवधेश प्रधान सर का एकल व्याख्यान हुआ । सर ने 1.5 घंटे तक बोला। प्रेम भयउ बैकुंठी इसका सीधा मतलब है मनुष्य का प्रेम स्वर्गीय होता है । दिव्य होता है। जब रत्नसेन पद्मावती के लिए श्रीलंका जाते है। तब एक पहाड़ी पर रुकते है और वहां पर एक नाद सुनाई देता है – मानुष प्रेम भएउ बैकुंठी। महोदय ने बताया हे रतनसेन तू सही रास्ते पर है। संसार में अनेक कुंठाए है। प्रेम की शक्ति से मनुष्य कुंठा मुक्त हो जाता है। अनेक रूढ़ियों को तोड़ता है। संसार में रहते हुए संसार से मुक्त की कामना करता है।’ वास्तव में प्रेम ही एक ( अनेक नहीं) कुंठा है। और अभिव्यक्ति पर वह मिट जाती है। प्रेम में लोग संसार से मुक्त की कामना क्यों करते है क्योंकि संसार में रूढ़ियां बहुत है। नियम कायदे बहुत है। ऐसे में प्रेम का आध्यात्मिक हो जाना स्वाभाविक है। अगर ये रूढ़ियां न होती तो प्रेम इहलौकिक होता और कल्याणकारी होता । और प्रेम का रूप कितना सुंदर होता। शायद ही कोई समय निकाल कर सोचे। और अवधेश प्रधान सर का मतलब इन्ही रूढ़ियों से मुक्त हो जाना और आध्यात्मिक हो जाना कुंठा से मुक्ति है। मतलब प्रेम स्वर्ग प्राप...
हिन्दू संहिता विधेयक पर 14 दिसंबर, 1950 से खंडवार चर्चा प्रारंभ हुई थी। काफी लंबी चर्चा के बाद कुछ खंडों का स्पष्टीकरण हुआ। कुछ सदस्यों के असहमति को प्रकट करते और हिन्दू संहिता विधेयक का सकारात्मक असर न देख बाबा साहेब ने 27 अक्टूबर, 1951 को इस्तीफा दे दिया था। इसी चर्चा के सिलसिले में महामना मदनमोहन मालवीय और बाबा साहेब आंबेडकर के बीच हुई संवाद को प्रस्तुत किया गया है। हिन्दू संहिता विधेयक में 6 खंड थे। हिन्दू धार्मिक कानून के तहत नहीं बल्कि एक समान संवैधानिक कानून से शासित होंगे। यह उस समय का सुधारवाद और भारत को आधुनिक बनाने की प्रक्रिया थी। भाग एक में यह बताया गया कि किसे हिंदू माना जाएगा और जाति व्यवस्था को खत्म कर दिया गया। गौरतलब है कि यह निर्धारित करता है कि हिंदू संहिता किसी भी व्यक्ति पर लागू होगी जो मुस्लिम, पारसी , ईसाई या यहूदी नहीं है, और जोर देकर कहा कि सभी हिंदुओं पर एक समान कानून के तहत शासन किया जाएगा। बिल का भाग दो विवाह से संबंधित था; भाग तीन दत्तक ग्रहण; भाग चार, संरक्षकता ; भाग पांच संयुक्त परिवार की संपत्ति पर नीति, [ ...
– मार्क्सवादी मनोविश्लेषण – मैंने जेएनयू से परा स्नातक (2018–2020) किया। जब नामवर सिंह की मृत्यु ( 2019) हुई थी तब मैं जेएनयू में था। उनके देहावसान पर हिंदी के प्रोफेसर्स ने दुख व्यक्त किया और उनके साहित्यिक योगदान को सराहा । मुझे लगा कि हां सचमुच वो बड़े आलोचक थे। वे मार्क्सवादी आलोचक थे। मेरा भी मन पढ़ने का बहुत शौकीन था। मैं पुस्तकालय में बैठकर मार्क्सवाद से संबंधित सारी किताब पढ़ डाली। फिर मैंने सोचा जो मुझे ज्ञान प्राप्त हुआ है उसका प्रयोग कहां किया जाय। तो मुझे दलित साहित्य से बेहतर कोई रास्ता न दिखाई दिया। मैं एमए के बाद पीएचडी भी करने का सोच रहा था तो मैंने मार्क्सवाद का दलित साहित्य में प्रयोग करने को सोचा। इसी पर मैंने शोध प्रस्तावना बनाया। इसी बीच करोना ने भी दस्तक दी। विश्वविद्यालय में सीट भी कम आई। और दो तीन जगह कोशिश करने पर भी एडमिशन नहीं हुआ। मैने सोचा मेरा विषय गलत है। फिर मैंने मनोविश्लेषण पढ़ना शुरू किया ताकि अज्ञेय की कहानियों में उसका प्रयोग कर सकूं और नया शोध प्रस्ताव तैयार कर सकूं। तब मुझे दोन...
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