अपना माटी कविता ~ नंदलाल भारती


गांव आज भी है

रहेगा भी

आज का गांव वो गांव नहीं

घर के सामने नीम का पेड़

गोबर माटी से लीपापोता चबूतरा 

छांव में खटिया

और

धान की पुआल से बने मोंढो पर

दुनियादारी के ज्ञान बांटते लोग

जाड़े का दिन तो था जन्नत

कौड़ा तापने का सुख

बुजुर्गो की बतकही

विसर जाते थे दुःख

बचपन का भी असीम आनंद

मां गरम कर देती बासी खाना

कौड़े की आग पर 

बासी खाना हो जाता था सोंधा

खुश हो जाता था बच्चा

कोड़े को घेरे लोग

गर्म होकर करते थे

नरम-नरम बातें,

बड़े -बड़े मसले सलट जाते थे

कौड़ा तापते

सात-जन्म तक के रिश्ते तय हो जाते थे 

समय क्या बदला ?

सब कुछ बदल गया 

गांव भी

गांव की फिजा में शहरीपन

समा गया 

सुबह गुड़ दाना खाकर, 

ठण्डा पानी पीकर ढकार मारने 

हुक्का गुड़गुड़ाने वाले 

चाय पी- पीकर

खट्टी डकार मारने लगे है

नीम की दातून गांव से

शहर की ओर चल पड़ी है

नीम का चबूतरा ना रहा

और ना वो तम्बू जैसी नीम भी 

ना मोंढे पर बैठ कर

दुःख दर्द बांटने वाले लोग

बूढ़े मकान में लटके तालों को

जंग चाट रहे 

गांव की प्रकृति को शहर

गांव से अब शहर की ओर

दौड़ की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है

लोग फूट रहे हैं, विस्थापित हो रहे हैं

बूढ़े मकानों में लटके जंग खाये ताले

अपनी तबाही पर आंसू बहा रहे

हल खूंटी से भी गायब हो गये हैं

गाय-बैल-भैस की सुरीली घंटियों का

मधुर स्वर गांव की फिजा से

खो चुके हैं

किसान के दरवाजे की शान

बैल

दरवाजे से नदारद हैं 

अंवारा हांक दिये गये 

या

ठीहे पर पहुंच गए

गांव की शानोशौकत में

पश्चिमी और शहरीकरण की मदहोशी घुल रही

अपना गांव धरती का स्वर्ग विलुप्त हो रहा

काश गांव में 

अच्छी शिक्षा, चिकित्सा ,

रोजगार के साधन होते 

गांव का दुश्मन

एक और सबसे बड़ी सामाजिक बीमारी 

जातिवाद का विषधर ना होता तो 

गांव ना बेगाना ना पराया होता

सिमट गई है दुनिया अब

गांव के उत्थान का आगाज़ करें

सत्ता को भेजें संदेश

मिटा दो जातिवाद,

गांव को को दें कृषि आधारित

मिल- कारखानों की सौगात 

विकसित होगा जब गांव-गांव

तब विकास गुरु होगा देश महान 

नक्शे से ना गुम जाये गांव

बची रहे गांव के माटी की सुगंध 

अब तो दो गांव को

आर्थिक और सामाजिक उत्थान का

हर्षित सम्मान

चल पड़े गांव की ओर

नये दौर के 

चहुंमुखी विकास की बयार

दुनिया में हो अपनी माटी की

जय जय जयकार।

                        ~नन्दलाल भारती

Comments

Popular posts from this blog

मानुष प्रेम भएउ बैकुंठी (आलोचना) ~ अवधेश प्रधान

महामना मदनमोहन मालवीय और बाबा साहेब आंबेडकर के बीच का संवाद ~ सं. मेवालाल

मार्क्सवादी मनोविश्लेषण आलोचना ~ मेवालाल