तीसरी पर खेती कविता ~ नंदलाल भारती

 

तीसरी पर खेती क्या लाभ ?

बंधुआ मजदूर के शोषण का

नया अवतार 

लाचारी-बेचारी,खेत वहीं

मालिक वहीं

बंधुआ मजदूर का बदल गया

नाम 

तीसरी पर खेती करने वाला

बंधुआ मजदूर था

तब खटता सुबह-रात

कोल्हू के बैल समान

तब भी थी सैकड़ों छेद वाली

बंडी, घुटने तक फटी लुंगी 

अब भी

तब मिलता था खरमेटाव में

लोटा भर रस,

मुट्ठी भर चबैना

दिन भर की दो 

और आधा दिन की 

सेर भर अनाज की 

तब थी मजदूरी 

अब भी है मजबूरी 

बड़ी उपज का नन्हा हिस्सा 

तीसरी की खेती पूरे परिवार को काम

क्या रात, क्या सुबह क्या शाम ?

शोषण का पूरा इंतजाम 

क्या नया क्या पुराना ज़माना ?

खेतिहर मजदूर

कल भी करता था

आंसू से रोटी होती गिली

और आज भी

तब भी खेत मालिक डूबे होते 

जश्न में

और आज भी वही हाल

मजदूर बेहाल

मालिक का खेत में नहीं पड़ता पांव

फोड़ता हाड़ मजदूर

खेत का विहसता महल की छांव 

मजदूर के माथे से झराझर पसीना,

छिलते,पकते नंगे पांव

उपज का एक भाग मजदूर के हिस्से

तीन हिस्सा खेत मालिक के,

ढो-ढो कर भरता मजदूर

मालिक का गोदाम

पूरा परिवार करें बेगारी

भाग्य में खिस्से के हजार छेद

उपर से बन डंसता जाति भेद

तीसरी की खेती थूक चटाकर

चूहिया जीलाना है 

मजबूरी है क्या करें 

खेतिहर कहां जाये ?

कोई सरकार को दो सुझाव

खेतिहर मजदूर खेत मालिक बन जाये

गांव समाज की जमीन,

मुक्त हो जाये

ये सब गांव समाज की जमीन

भूमिहीन-खेतिहर मजदूरों में बंट जाये

सदियों से शोषित पीड़ित भूमिहीन 

खेत मालिक बन जाये

वह भी अन्नदाता 

दुर्भाग्यवश वह खेतिहर मजदूर कहाता

कब तक और क्यों 

मजबूरी -बेगारी ?

अब तो शोषण के जाल से छुडाओ

 ठगी नसीब को मुक्त तो कराओ

भूमिहीनता के अभिशाप से

अब तो बचाओ

तीसरी की खेती, मजदूर के परिवार की,

बेगारी समझो

अपनी जहां वालों भूमिहीनता के खिलाफ

आवाज तो उठाओ

अब तक मालिकों के खेत में

डूब मरी कितनी पीढियां

सरकार को सुझावों

तीसरी पर खेती शोषण है

मेहनतकश भूमिहीन मजदूर को

खेत मालिक बनाने की

मुहिम तो चलाओ।

                       ~ नन्दलाल भारती

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