आकस्मिक मृत्यु पर ~ मेवालाल

 

                         स्व.  विजय बहादुर सर  


हिंदी विभाग के प्रधानाचार्य और कला संकाय के प्रमुख आदरणीय विजय बहादुर सिंह की हृदयाघात के कारण हो गई। यह अकस्मात और चौकाने वाला घटना है। एक चलते फिरते आदमी का अचानक यूं चले जाना एक पूंजीवाद की तरफ इशारा करता है जो व्याप्त व्यवस्था से हटकर अलग व्यवस्था की मांग भी करता है। पूंजीवाद ने सबसे पहले पर्यावरण को विकास के नाम पर नष्ट किया। ऐसा विकास किया कि उसने हमारे मूल जमीन से काट दिया । मानव को श्रम से दूर कर दिया । ऐसी ऐसी बिलासी चीजे बनाई कि आदमी उसका अनुसरण करता गया है और अपने मूल स्वभाव यानी शारीरिक श्रम को भी छोड़ दिया। बाजार में कोई एक भी  पदार्थ शुद्ध रूप में उपलब्ध नहीं है। सब कुछ स्वाद देखकर बनाया गया है ना की स्वास्थ देखकर। इसने शारीरिक ताकत को नष्ट किया। और व्यस्तता ने अपने लिए लोगो को समय निकालने का मौका नहीं दिया। स्मार्टफोन ने मानव से दूर , एक मानव के लिए एक अलग आभासी दुनिया बनाई। इस आभासी दुनिया से व्यक्ति दूर नहीं होना चाहता।  ऐसे में व्यक्ति अकेला होकर मानसिक रूप से कमजोर हो गया।  जब आदमी दोनो रूपो में कमजोर हुआ तब शरीर रोगग्रस्त हुआ। ऐसे में असामयिक मृत्यु आम हो गई। अगर कोई यह कहता है कि अचानक व्यक्ति की मृत्यु हो गई। जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है तो वह अपनी समकालीन चल रही परिस्थितियों से अनजान है। ये गंभीर मुद्दा है कि लगभग सारे बीमारी का इलाज उपलब्ध है फिर भी हम आदमी को नहीं बचा पा रहे है।   

                                  ~ मेवालाल  09/04/2023

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