अखबार में मैं भी
6 मई 2023 को हम सभी सामूहिक रूप से हिंदी विभाग से जय शंकर प्रसाद के घर गए। यह एक औपचारिक मेला जैसे था। वहां जाकर एक नया एहसास मिला। प्रसाद जी अच्छे घराने से थे। उनकी नई पीढ़ी में कविता जी से बात हुई और मैंने प्रसाद जी के पहनावे पर पूंछा तब पता चला कि उनका परिवार उस समय जमींदार था। घर का सुपरस्ट्रक्चर देखकर लगा कि वे आर्थिक रूप से संपन्न थे। मकान पक्के थे। उजाले की पर्याप्त व्यवस्था रही होगी। पढ़ने के लिए माहोल रहा होगा। लिखने के लिए उस समय उनके पास मेज जैसे कुछ चीजे रही होंगी। उनको विरासत में आर्थिक असुरक्षा नहीं मिली थी। चारो तरफ से सब व्यवस्थित था। खाने पीने की कमी नहीं थी। वे श्रम से सीधे नहीं जुड़े थे। घर का काम करने के लिए या घर की व्यवस्था देखने के लिए नौकर चाकर भी रहे होंगे। आय का स्त्रोत निश्चित और गठित था। उनको किसी चीज की यहां तक कि जीविका की चिंता नहीं करनी थी। समाज में उनका काफी सम्मान रहा होगा। इस सब चीजों ने उन्हें ज्ञान पर अधिकार दिलाया। उनकी द्वारा बोली गई बाते समाज में सुनी जाती रही होगी। यही सब चीजों ने उन्हें साहित्य का प्रसाद बनाया। मेवालाल
(उपर्युक्त तश्वीर बहुत कुछ बोलती है पर मैंने मात्र मुख्य बातों को लिया)
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