जातिवाद का पहाड़ लघुकथा ~ नंदलाल भारती

जातिवाद का पहाड़ (लघुकथा)

कौन सी याद में खोये हो मुकुन्द?

यादें ही तो बीता हुआ जीवन हैं, कोई हंसाती है, कोई रुलाती है, कोई हौशला बढ़ाती हैं, कोई जज्बा जगाती है, कोई कहती है आगे बढ़ो तरक्की करो मुकुल भाई।

सब तो सही है पर दोस्त रुलाने वाली यादों पर मांटी डाल दो मुकुल भाई बोले।

कैसे भूला दूं ,चपरासी बार-बार अपमान किया मुकुन्द बोले?


मुझे भी याद है,रईस चपरासी होकर भी तुमसे वरिष्ठ बनता था, चाय-पानी नहीं देता था।फाईल तुम्हारी टेबल पर पटक कर रखता। कहता था मैं मुकुन्द से पहले कम्पनी में आया हूं। मैं वरिष्ठ हूं ,भला रईस चपरासी एक क्लर्क से वरिष्ठ कैसे हो सकता है? सबको तुम्हारे खिलाफ भड़काता था कहता सवर्णों के बीच अछूत कहां से आ गया ।


मुकुल भाई मेरा दर्द तुम ढो रहे हो, इतने गहरे घाव उस रईस ने दिये हैं कैसे भूल जाऊं।भला हो खान साहब का जिसने रईस के जातिवादी नजरिए पर लगाम लगाया वरना नौकरी करना मुश्किल हो जाता मुकुंद बोले।

तुम्हारे साथ भेदभाव रईस बंद तो कभी नहीं किया। दोस्त अच्छे लोगों को याद रखो और अच्छी यादों में जीओ ।रईस और उस जैसे दुष्टों की यादों पर मांटी डाल दो मुकुल बोले।


कोशिश तो जारी है दोस्त। जातिवाद के सुलगते निशान कहा धूलने दे रहे है रईस जैसे जातिवादी और जाति-धर्म के ठेकेदार मुकुन्द बोला।


दोस्त जातिवादियो को सोच बदलना चाहिए तभी जातिवाद के कैंसर से समाज सभ्य समाज और देश का विकास सम्भव होगा मुकुल बोला।

मुकुंद बोला -आओ चलें ।

मुकुल पूछा - कहां?

जातिवाद का पहाड़ ढहाने !


नन्दलाल भारती

29/05/2023

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