मुझे याद आता है, जब मैं प्रायमरी स्कूल जाने की उम्र में था, तब हमारी पाठशाला में गणपति की स्थापना की जाती थी। हम बड़े आनन्द से श्री की प्रतिष्ठापना करते थे। नाचते थे, गुलाल उछालते थे। प्रतिदिन विधिवत् श्री की पूजा हुआ करती थी। दिन बड़े ठाठबाट से गुजर जाते थे। प्रतिमा का विसर्जन भी बड़ी शान से हुआ करता था। जब मैं उन दिनों की याद करता रहता हूँ तब मेरी बेटी मेरे बाहों में उगे सफेद बालों को तोड़ा करती है। पत्नी कहती, 'जाने दो, पूरा सिर ही पक गया है। सफेद बालों को उखाड़ देने से बुढ़ापा छिप तो नहीं जायेगा।' लेकिन बेटी बड़ी लगन से सफेद बालों को ढूंढती रहती है। मिलने पर उखाड़ देती है। मुझे इस बात की खुशी होती है कि बालों को उखाड़ने के लिए ही क्यों न हो, वह मेरे पास तो है। घर के बाहर चौराहे पर गणपति की स्थापना हो चुकी है। चाहे गणपति हो, देवी हो, राम या कृष्ण हो, महादेव हो, हिन्दुओं के इन देवताओं के हाथों में हथियार अवश्य होता है। वे आक्रामक लगते हैं। मैं उनके हाथोंके हथियारों से डरता हूँ। गणपति के हाथ में भी शस्त्र है। वह हैं तो विघ्नहर्ता किन्तु जब आते हैं तो विघ्नों को लेकर ही आते है...
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