बिक्रेता बनकर ~ कुमार मंगलम रणवीर

 बिक्रेता बनकर...


दो चुटकी सिंदूर

बॉस का मड़वा

कलसुप,ओखली

है लुप्त होने के कगार

पर,है भी तो उन

असभ्यों के बीच...!!

पर सभ्य धंसे हैं डी.जे

की धुनों में मोछ पर

ताव देते हुये शौक के 

लिये पुश्तों की श्रम से

उपजे थाती की बिक्रेता

बनकर...!!

               कुमार मंगलम रणवीर

Comments

Popular posts from this blog

मानुष प्रेम भएउ बैकुंठी (आलोचना) ~ अवधेश प्रधान

महामना मदनमोहन मालवीय और बाबा साहेब आंबेडकर के बीच का संवाद ~ सं. मेवालाल

मार्क्सवादी मनोविश्लेषण आलोचना ~ मेवालाल