नागरिक कविता डॉ. प्रभाकर सिंह

 मैं सामान्य नागरिक

देश के बारे में नहीं जानता

भूख के बारे में जानता हूं

मैं कम होते जंगल के बारे

में चिंतित होता हूं 

मैं पत्तियों पर पड़ी बूंदों को

देर तक निहारता हूं

भोजन लादे बिलों में जाती

चिटियों को देखना पसंद है मुझे

मेरे घर का दरवाजा 

हरदम खुला रहता है

वहां पक्षियों को आते 

डर नहीं लगता

मेरा खुलापन देख कर

आकाश मुझसे रक्स करता है

मैं नदी में अपने पूर्वजों का

चेहरा देख सकता हूं

और देर तक नदी के साथ

समय बिता सकता हूं

एक सामान्य नागरिक को

भला और क्या चाहिए ?

                             डॉ. प्रभाकर सिंह, प्रोफेसर हिन्दी विभाग बीएचयू


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