Posts

Showing posts from June, 2023

मंगलकामना कविता ~ नंदलाल भारती

मंगलकामना बंटवारे में विषमता मिली मुझे विरासत में तुम्हें क्या दूं। विधान, संविधान के पुष्प से सुगंध फैल जाये, हृदयदीप को ज्योतिर्पुंज मिल जाए। आशा की कली को  समानता का मिल जाए उजास धन धरती से बेदखल देने को बस सद्भावना का नैवेद्य है मेरे पास ग्रहण करो। बुद्ध जीवन वीणा के, बने रहे सहारे, चाहता हूं तुम जग को कोई नई ज्योति दो नयन तारे। तुम्हीं बताओ  शोषण, उत्पीडन का विष पीकर साधनारत जीवन को  आधार क्या दूं। बंटवारे में मिली विषमता मुझे तुम्हें मंगलकामना के अतिरिक्त और क्या दूं। नन्दलाल भारती

भाषा का सत्ता विमर्श (आलोचना) ~ डॉ. किंगसन सिंह पटेल

                        भाषा का सत्ता विमर्श                        डॉ. किंगसन सिंह पटेल             एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, बीएचयू                 ईमेल– kingjnu@gmail.com भाषा के उद्भव उसके अर्थ व्यापार और अर्थ ग्रहण का समाजशास्त्रीय विश्लेषण करें तो पाएंगे की भाषा का अपने समाज और उसके विकास से गहरा संबंध है। समाज के विकास के साथ भाषा भी विकसित और संस्कार ग्रहण कर रही है। जैसे-जैसे मनुष्य कबीला शाही से जनतंत्र की ओर बढ़ा वैसे वैसे भाषा भी चित्र लिपि से वर्णिक लिपि में विकसित हुई। लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि भाषा का विकास अपने समाज की संरचना और सत्ता विमर्श से गहरा तालमेल बनाकर होता है। भाषा की संरचना और अर्थ का गहरा संबंध समाज की संरचना और सत्ता विमर्श से होता है। वंदना टेटे का यह कहना बिल्कुल सही है कि “लिंग जाति और वर्ग आधारित संरचना वाले समाज की भाषा निरपेक्ष नहीं होती। प्रमुख भारत...

झाड़ू वाली अम्मा (कहानी) नंदलाल भारती

 झाड़ू वाली अम्मा  जून का महीना तप रहा था। पहली बारिश से धरती आग उगल रही थी। दोपहर के एक बज रहे होंगे।बस की खिड़कियों से आने वाली हवा चेहरा झुलसा देने वाली थी। ग्वालियर से बस रात में निकली थी। मुकुंद का बहुत बूरा हाल हो गया था। उसका पूरा शरीर टूट और दर्द कर रहा था। बस की यात्रा हड्डियां झकझोर देने वाली थी। यात्रा हनुमान की पूंछ जैसी लग रही थी। इसी बीच कण्डकटर ने दहाड़ मारा,इंडोटेल मैनर हाऊस आ गया। फटाफट उतर जाओ जिसको उतरना है। मुकुन्द भी लोहे का बक्सा लेकर उतर गया। बस स्टाप से दफ्तर पहुंचने के लिए कोई साधन नहीं मिल रहा। लू के थपेड़े सहता मुकुंद इंतजार कर रहा था। इतने में ठेले वाला आया। ठेले वाले शरीफ इंसान ने मुकुंद का सामान ठेले पर रख कर जैसे दौड़ लगा दिया और मुकुन्द ठेले वाले के पीछे हो लिया। दस मिनट में ठेला दफ्तर के सामने। ठेला खड़ा होते ही नीम की छांव में खड़ी बूढ़ी महिला दौड़कर और बोली साहब ग्वालियर से आ रहे हैं।आप मुकुंद बाबू हैं। जी बाई जी मुकुंद बोला। बाई नहीं। मैं झाड़ू वाली अम्मा हूं। बड़े साहब भी अम्मा कहते हैं। आप भी आज से अम्मा बोलिएगा । हमारे यहां बाई अच्छा न...

प्रेमचंद का घर (फोटो) ~ मेवालाल

Image
 

अपने हड़ताल पर कविता ~ कुमार मंगलम रणवीर

 अपने हड़ताल पर ------------------------ मंजिल की दौड़ में भागते हुये; अवसादों से घिरे  आदमी को चाहिये साथ आदमी का पशु का पक्षी का,  समय की लताड़ से पछाड़ खाकर गिरा आदमी; समय से लड़ उठे या निंदा करें भाग्य का या तमाम कोलाहल से उत्पन्न विस्फोटों के बीच कर आये खुद को  स्वाहा, आपाधापी के बीच फंसा गर्दन और  खंगाला ठंडक की आस में स्मृति रूपी बोरसी की आग को तभी छिटकी दो चिंगारी, निकली थी अभी एक भूले-बिसरे मित्रों से संवाद पर..., दूसरे नशे में बोली- ओ माई बेस्ट फ्रेंड कुर्बान सौ जान तेरे एक जान पर..., शुक्रगुजार दोनों का जब वृक्षों सा रहे अपने  हड़ताल पर, तब ऑक्सिजन सिलेंडर सा छोड़ गये प्रभाव मेरे सांस पर...। कुमार मंगलम रणवीर

आदर्श पुरुष लघुकथा नन्दलाल भारती

आदर्श पुरुष मुकुल के पिता खेतिहर मजदूर थे,आय जरुरत से कम थी। कमाई का दूसरा कोई पुख्ता जरिया नहीं था। उपर से जातिवाद का दंश था जीवन मुश्किलों से लबालब था।  मुकुल को बचपन से आर्थिक और सामाजिक मुश्किलों का भयंकर सामना करना पड़ा था । माता -पिता के आशीर्वाद से और वजीफे की पतवार से स्नातक की परीक्षा पास कर नौकरी की तलाश में शहर की ओर कूच किया। शहर में उसने अपनों को पराया होते देखा। जातिवाद के उत्पीड़न को झेला। आखिरकार लम्बी बेरोजगारी के बाद एक लिमिटेड कम्पनी में नौकरी मिल गई।  नौकरी तो मिल गई पर नौकरी करना और मुश्किल था। चपरासी से लेकर अधिकारी तक सभी उच्च वर्णिक थे, भेदभाव का नंगा प्रदर्शन होता था।  चपरासी रईस की इज्जत मुकुल को चाय पानी देने में घट जाती थी । कई तो चाय की कप ऐसे पटकता आधी चाय टेबल पर झलक जाती थी। रईस बार-बार विद्रोह करता, फाइलें टेबल पर पटक कर रखता। मुकुल का हर काम करने में रईस का धर्म भ्रष्ट होता । उपर से भी उसे सह मिली हुई थी। मुकुल था कि उसको तरक्की का जनून था और जातिवादी घटिया सोच वाले रईस को नफ़रत फैलाने का शौक था ।  मुकुल दिन में नौकरी और रात में...