मंगलकामना कविता ~ नंदलाल भारती

मंगलकामना


बंटवारे में विषमता मिली मुझे

विरासत में तुम्हें क्या दूं।

विधान, संविधान के पुष्प से

सुगंध फैल जाये,

हृदयदीप को ज्योतिर्पुंज मिल जाए।

आशा की कली को 

समानता का मिल जाए उजास

धन धरती से बेदखल

देने को बस सद्भावना का

नैवेद्य है मेरे पास

ग्रहण करो।

बुद्ध जीवन वीणा के,

बने रहे सहारे,

चाहता हूं तुम

जग को कोई नई ज्योति दो

नयन तारे।

तुम्हीं बताओ

 शोषण, उत्पीडन का विष पीकर

साधनारत जीवन को 

आधार क्या दूं।

बंटवारे में मिली विषमता मुझे

तुम्हें

मंगलकामना के अतिरिक्त

और

क्या दूं।


नन्दलाल भारती

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