अपने हड़ताल पर कविता ~ कुमार मंगलम रणवीर

 अपने हड़ताल पर

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मंजिल की दौड़ में

भागते हुये;

अवसादों से घिरे 

आदमी को चाहिये

साथ आदमी का

पशु का पक्षी का, 

समय की लताड़

से पछाड़ खाकर

गिरा आदमी;

समय से लड़ उठे

या निंदा करें भाग्य

का या तमाम

कोलाहल से उत्पन्न

विस्फोटों के बीच

कर आये खुद को 

स्वाहा,

आपाधापी के बीच

फंसा गर्दन और 

खंगाला ठंडक की

आस में स्मृति रूपी

बोरसी की आग को

तभी छिटकी दो

चिंगारी,

निकली थी अभी एक

भूले-बिसरे मित्रों से

संवाद पर...,

दूसरे नशे में बोली-

ओ माई बेस्ट फ्रेंड

कुर्बान सौ जान तेरे

एक जान पर...,

शुक्रगुजार दोनों का

जब वृक्षों सा रहे अपने 

हड़ताल पर,

तब ऑक्सिजन सिलेंडर

सा छोड़ गये प्रभाव मेरे

सांस पर...।

कुमार मंगलम रणवीर

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