सोनचिरैया कविता ~ नन्दलाल भारती
सोनचिरैया
लूट रही उम्मीदें,
टूट रहे सपने
मर रही
आत्मा की आवाज
जाति-पाति में बंटा बूढ़ा संसार,
दुनिया को राह दिखाने वाला
ढो रहा
भ्रष्टाचार -अत्याचार
सत्य भयभीत यहां
आतंकित वंचित इंसान
दुश्मन देश का बना
जातिवाद भ्रष्टाचार
सुधार की ना कोशिशें पुरजोर
कुचलो को कुचलने की साजिशें,
अग्नि पथ पर निकल पड़ो
भय मिटाने को
जातिवाद -भ्रष्टाचार,
वक्त की नब्ज को
अब तो समझो
जातिभेद तज दो
भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र कर दो
राष्ट्रधर्म को सुर दो
बाकी हैं सम्भावनायें
बूढ़े भारत यानि सोन चिरैया को
नव रंग दो........ नव रंग दो।
~ नन्दलाल भारती
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