दलित कविता ~ कार्तिकेय शुक्ल

 #दलित 

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मुझे शब्दों से लगाव था

लेकिन शब्द मिट गए

भाव भी विलुप्त हो गए

और प्रेम तो बिक ही गया


मेरे पास पैसे नहीं थे

मैं अमीर बाप का बेटा न था

मैं लूटा तो नहीं गया 

लेकिन अछूता भी न रहा


जहां सभी को 

शब्दों ने शक्ति दी

भावों ने अपनत्व 

और प्रेम ने साहस 

वहां मुझे इनमें से किसी ने भी

नहीं दिया कुछ भी


न चाह कर भी

त्याज्यता का शिकार हो

सामान्य से हो जाना पड़ा

मुझे दलित


              कार्तिकेय शुक्ल, शोधार्थी हैदराबाद विश्वविद्यालय

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