हुक्मरान कविता ~ सुरेश जिनागल
हुक्मरान
उसने शब्दों के अर्थों को अपकर्षित कर
अपना व्याकरण बनाया है–
उसके लिए
लोकतंत्र एक चुटकुला है
जिससे देश का मनोरंजन करता है
देश हत्याओं की जागीर है
जहां लाशों की हड्डियों पर बैठकर वह ख़ुद हंसता है
बलात्कार आंसू बहाने का ज़रिया है
जिससे अपना विरेचन करता है
भाषण उन्मादी भीड़ के लिए
सभ्यताओं को नंगा करने के उपदेश हैं
उसके व्याकरण में जो मिसफिट हैं
वे या तो बागी हैं
या फिर अपनी मौत के इंतज़ार में हैं
सुरेश जिनागल, शोधार्थी बीएचयू
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