नामवर जी की स्मृति (कविता) ~ डॉ. प्रभाकर सिंह

 उनका बोलना भारतीय संगीत के

मध्यम राग का धीरे धीरे बजना 

सधा हुआ कदम जैसे

परंपरा और आधुनिकता की संगत

हाथों की थिरकन मानों

निर्गुण सगुण की भक्ति कविता

बातों में बतरस और

बतरस  में आलोचना

आंखो की चमक

जैसे आकाश में ध्रुव

निगाहों से आंक लेने का 

गजब का हुनर

विचार में विश्व दृष्टि

विवेचन में भारतीय सौंदर्य

उनके साथ होना

अनगिनत किस्सो कहानियों

कविताओं से भर जाना

उनकी स्मृति का आना

मानो साहित्य के कानन में 

पंख पसारे मयूर को देखना

                                 डॉ. प्रभाकर सिंह हिंदी विभाग बीएचयू 

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