अभिमन्यु की मौत कविता ~ नन्दलाल भारती
अभिमन्यु की मौत।
सब्र की खेती उम्मीदों पर पाथर पानी
बस यही है,
हाशिए के आदमी के जीवन की कहानी
सूखने लगे अभ उम्मीदों के सोते
वज्रपात......कल होगा कैसा ?
सदियों पुराना खौफ डरा रहा
डर डर कर जीने में
आज हो रहा विरान
जहर पीकर कैसे जीये अदना
कैसे सींचे जीवन सपना
भेद भरे जहां में, बड़े दर्द पाये हैं
दर्द में जीना आंसू पीना
नसीब बन गया है।।
तकलीफों के दंगल में,
तालीम से मंगल की उम्मीद
वह भी छली गई
श्रेष्ठता के दंगल में
छल बल के सहारे
अदना कोई क्या आजमायें जोर
जीने और आगे बढ़ने का जनून
बेचैन पर मौन गिर गिर कर उठता
श्रम के सहारे।
नहीं मिलता भरे जहां में कोई
आंसू का मोल समझने वाला
श्रम सपनों की आशा
खड़ी भौंहें,कुचल जाती
ऐसा है भेदभाव भरा जहां प्यारे
स्वहित में पराई आंखों के सपने जाते हैं मारे।
ईसा-बुध्द, महावीर और भी पूज्य हुए इंसान
कारण वही जो आज भी है जवान
भेदभाव,दुःख दरिद्रता, जीवदया
परपीड़ा से उपजे दर्द को खुद का माना
किये काम महान
दुनिया कहती उन्हें भगवान।
वक्त का ढर्रा वहीं,बस बदल गया है इंसान
कमजोर के दमन में ढूंढ रहा स्वहित,
आज इंसान
दबंग के हाथों कमजोर के सपनों का कत्ल
अभिमन्यु की मौत समान।
आओ खायें कसम, बनेंगे सच्चे इंसान
ना बोयेगे विष ना कमजोर का,
हक छिनेगे
मानवहित राष्ट्रहित को समर्पित होगा
जीवन अपना,
ना होगी अब अभिमन्यु की मौत
परमार्थ होगा अपने जीवन का
सपना............
नन्दलाल भारती
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