गज़ल ~ सत्यम भारती

 

ग़ज़ल- 01


बिखर रहा विश्वास आजकल

आम-जनों की आस आजकल 


गांवों के सपने सलीब पर

शहरों में उल्लास आजकल  


बहू रोज डिस्को जाती है 

वृद्धाश्रम में सास आजकल 


जनता के हिस्से बस जुमले, 

प्रतिनिधि का मधुमास आजकल 


दिल्ली खून-पसीना पीती

नहीं बुझ रही प्यास आजकल


कविगण मिल कोरस गाते हैं

कविता है परिहास आजकल


देख मंच की हालत 'सत्यम'

गदहों में उल्लास आजकल



ग़ज़ल-02


तोड़कर अब पाँव की हर बेड़ियाँ 

चाँद को छूने लगी हैं बेटियाँ


ढूँढता फिरता है वो भी खामियाँ

कर रहा है रात दिन जो गलतियाँ 


आजकल महफूज दिखती हैं कहाँ

रक्स करती शाख की वो तितलियाँ


चार दिन के बाद ही मांगे बहू

मालकिन हूँ दे दो घर की चाबियाँ  


वक़्त से पहले सयानी हो गयीं

जाल में फँसती कहाँ हैं मछलियाँ





ग़ज़ल-03


प्यार और तकरार तुम्हीं से

फिर-फिर है मनुहार तुम्हीं से


पतझड़ मन का दूर करे जो 

गुलशन और बहार तुम्हीं से


तुम तक ही मेरी कविताएँ 

ग़ज़लों का विस्तार तुम्हीं से


सारी दुनियाँ तुममें दिखती

मेरा है संसार तुम्हीं से  


सपने, ख़ुशबू, बादल, जुगनू

सबका कारोबार तुम्हीं से




ग़ज़ल-04


क़दम-क़दम दो चार आदमी

दिखते हैं लाचार आदमी 


जो आता है छल कर जाता

किसे कहूँ मक्कार आदमी 


नफ़रत-हिंसा में घिरकर अब

बन बैठा अख़बार आदमी  


बिक जाते हैं दो कौड़ी में 

बिकने को तैयार आदमी


हक़ से वंचित दिखता है

जिसका था हक़दार आदमी



ग़ज़ल-05


मर-मरकर यों जीना क्या

रोज ज़हर यूँ पीना क्या 


घायल हर दिन होना है, 

चाक जिगर फिर सीना क्या


रोटी में ही उलझे हम

मक्का और मदीना क्या


सबके हिस्से दुखड़ा है

रानी, मोनू, रीना क्या


तुझसे बढ़कर जीवन में

कोई और नगीना क्या



© सत्यम भारती

सम्प्रति :-

सत्यम भारती

प्रवक्ता, हिंदी साहित्य

राजकीय माडल इंटर कॉलेज, 

नैथला हसनपुर, बुलंदशहर,

उत्तरप्रदेश, 201002

मो. 8677056002

प्रकाशित कृतियाँ-

* सुनो सदानीरा (ग़ज़ल-संग्रह) 

* बिखर रहे प्रतिमान

 (दोहा-संग्रह) 





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