प्रेम कविता ~ कार्तिकेय शुक्ल

 प्रेम कविता

___________________________


मैं लिखना चाहता हूँ

एक अच्छी प्रेम कविता

पर आड़े आ जाता है तुम्हारा प्रेम


तुम्हारा प्रेम

यानी कि जो सिर्फ़ मेरा और मेरा है

जिस पर सिर्फ़ मेरा अधिकार है


अब तुम्हीं बताओ

तुम्हारे प्रेम की अनुभूति को

सबके सामने कैसे बयाँ करूँ


क्या अब भी लिखूँ 

प्रेम कविता 

या छोड़ दूं।


            कार्तिकेय शुक्ल, शोधार्थी, हैदराबाद विश्वविद्यालय

Comments

Popular posts from this blog

मानुष प्रेम भएउ बैकुंठी (आलोचना) ~ अवधेश प्रधान

महामना मदनमोहन मालवीय और बाबा साहेब आंबेडकर के बीच का संवाद ~ सं. मेवालाल

मार्क्सवादी मनोविश्लेषण आलोचना ~ मेवालाल