एमएसपी के बहाने (संपादकीय) ~ मेवालाल
1950–51 में देश की अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान 55% था वहीं द्वितीयक क्षेत्र का योगदान 15% था और तृतीय क्षेत्र का योगदान 30 प्रतिशत था पर 2020–21 में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान घट कर 18 प्रतिशत हो गया । द्वितीयक क्षेत्र का योगदान 27 प्रतिशत हो गया और तृतीयक क्षेत्र का योगदान बढ़कर 55% हो गया । इस प्रकार हम देखते है कि प्राथमिक क्षेत्र का योगदान घट रहा है। जिसके अंतर्गत कृषि पशुपालन आदि आता है । कृषि क्षेत्र अधिकतम जनसंख्या की जीविका रोजगार का साधन ही नहीं बल्कि द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र क्रमशा औद्योगिक और सेवा क्षेत्र – कच्चा उत्पाद का क्षेत्र भी है जो प्राथमिक क्षेत्र पर निर्भर है। जहां विनिर्माण सेवा औद्योगिक क्षेत्र बढ़ रहे हो और प्राथमिक क्षेत्र घट रहे हो , सरकार भी उस क्षेत्र पर ध्यान न दें रही हो, ऐसे में आने वाला समय किसानों के लिए और बदतर होगा। इसी बदहाली से बचने के लिए किसान नाराज है। एमएसपी पर हर फसल पर की कीमत तय करने को कह रहे है।
किसान एमएसपी के जरिए गरीबी से बाहर आना चाहते है वे भी अधिक कमाई वाला इंसान बनना चाहते है जैसे उद्योगपतियों के कमाई के कई क्षेत्र है वैसे ही कुछ किसानों के पास कृषि के साथ पशुपालन मुर्गीपालन मत्स्य पालन के क्षेत्र है कई जगह तो उद्योगपतियों को छूट दी जाती है तो किसानों को क्यों नहीं। सरकार के साथ अर्थशास्त्री नहीं उद्योगपति है और जो अर्थशास्त्री है उनका कृषि से कोई रिश्ता नहीं है ऐसे लोग कानून बनाकर किसानों को नहीं उबर पाएंगे। अब तक विकास उद्योगपतियों के अनुसार हुआ है जिसमे किसान की स्थिति बदतर हो चुकी है। खाद कीटनाशक दवाई और कृषि संबंधी यंत्र की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है इसलिए बढ़ रही है कि इसकी लागत बढ़ रही है। अब कृषि संबंधी चीजों को खरीदने के सामान की कीमत बढ़ रही है पर फसल की कीमत स्थिर है जबकि इन दोनों के बीच किसान के श्रम की कीमत तो उपेक्षित है।
अब बाजार और फसल की कीमत देखिए। किसान जो भी फसल जैसे गेंहू, टमाटर, सेव आदि बेचते है उनको कौड़ियों के भाव खरीदा जाता है जबकि उन्हीं चीजों की कीमत बाजार में ऊंचा होता है। हर किसान हर चीज नहीं उगा सकता उसे बाजार से बहुत कुछ खरीदना पड़ता है जैसे हल्दी धनिया आदि मशाला, तेल साबुन कंघा आदि, कपड़े आदि इन सब की कीमत आए दिन बढ़ती ही रहती है। कहीं कहीं तो दुकान पर समान एमआरपी से भी ज्यादा मिल जाता है जबकि उस सामान को एमआरपी से कम में ही मिलना चाहिए। किसानों के से कम होते है तथा खर्च ज्यादा होता है वह शिक्षा स्वस्थ कपड़ा आवास पर खर्च करता है इसकी कीमत भी लगातार बढ़ती जाती है अब किसान कंगाली के हालात में ही जायेगा । अब जागरूक किसान गरीबी से बाहर आने के लिए विरोध तो करेगे ही।
अब सवाल उठ सकता है कि जो किसान विरोध कर रहे है उनके पास तीन करोड़ की ट्रैक्टर है बुलडोजर है क्या वे गरीब है ? हा वे गरीब तो नही है पर शेष सभी गरीब है और वे उन्हीं लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे है।
आज तक के प्रसिद्ध एंकर सुधीर चौधरी ने अनुमान लगाया कि एमएसपी तय होने से महंगाई बढ़ जाएगी? मैं उनके रिसर्च मैथेडोलॉजी पर सवाल नहीं उठा रहा हूं। पर ऐसा बिल्कुल संभव है क्योंकि भारतीय व्यवस्था उद्योगपतियों और सरकार के साठगांठ से चल रही है जो करोड़ों रुपया सरकार या पार्टी को चंदा से सकता है यदि वह बढ़े कीमत पर कच्चा उत्पाद किसान से खरीदेगा तो उससे बना सामान और अधिक कीमत पर क्या नहीं बेचेगा ? जिससे किसान ही नही पूरे मध्यवर्ग की स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
आयकर घट रहा है, तरह तरह की छूट दी जा रही है। अमीर लोग बैंको को लूट कर विदेश भाग जा रहे है। जब आयकर दाता को कर में छूट मिल सकती है तो किसान जो वास्तव में कर्ज को चुकाने के हालात में नहीं है तो उनको छुट क्यों नहीं मिल सकता है? चाहे जो हो नए भारत में नए किसान पर विचार विमर्श करना चाहिए।
बाजार उनके आय को प्रभावित कर रहा है। कृषि के आधुनिकीकरण के साथ बाजार में भी सुधार करने की जरूरत है। एक बात और किसान चाहे जितना विरोध कर ले उसका असर इस वर्ष के चुनाव पर पड़ने वाला नही है ।
~ मेवालाल, शोधार्थी बीएचयू
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