जीप की रैगिंग (व्यंग्य) ~ मेवालाल
धरती पर अनोखा चीज देखकर जिज्ञासा का जन्म होता है। यह जिज्ञासा कोई चीज वास्तव में क्या है ? ’ को समझने के लिए व्यक्ति के मन में उत्साह भरता है ।
यह मोरचा युक्त कार के दर्शन सामाजिक विज्ञान या हिंदी विभाग आते हुए आप लोगों ने किया होगा । आप लोगों ने इसके बारे में विचार विमर्श करने की कोशिश भी नहीं की होगी। समझ में नहीं आ रहा है कि यह हिन्दी विभाग की शोभा बढ़ा रहा है या सामाजिक विज्ञान विभाग की ? इसकी गद्दी ठीक नहीं है । इंजन गायब है। हैंडल उखड़ा हुआ है। दरवाजा नहीं है। टायर इसका साथ छोड़ चुका है। जर्जर अवस्था में पड़ा है यह कार। पूछता है भारत कि यह प्रश्न विमर्श का मुद्दा अभी तक क्यों नहीं बन पाया है।
वाहन स्टैंड का बेकार में जगह कवर करके रखा है। अगर सामाजिक विज्ञान विभाग इंजिनियरिंग विभाग होता तो समझ में आता कि ठीक है कि इसके हैंडल पर, इंजन पर पहिए पर शोध काम होता होगा और चारों तरफ से घेरा रहता कि ‘संरक्षित क्षेत्र में प्रवेश न करे।’ पर यह ठहरा सामाजिक विज्ञान विभाग।
इसे बेचा जा रहा था पर कबाड़ी वाला कमियां लिकालकर कम कीमत लगा रहा था इस प्रकार क्रेता विक्रेता का हिसाब किताब नहीं बैठा और यह यही पर पुनर्जीवन की आस में खड़ा रहा गया।
बेचारा अपने दिल का दुख किससे कहे कि लोग उसे बुरी निगाह से देखते है। इसको इसलिए नहीं फेंकवाया गया क्योंकि यह व्यक्ति विशेष कि विरासत है । जनता की भावना इससे जुड़ी हुई है। इसको देख देख कर हम उनके कर्मों को याद करते है और प्रेरणा ग्रहण करते हैं। दुख की बात यह है कि यह औपचारिक रूप से लिखा हुआ कहीं नहीं दिखाई देता है।
यह अपने अंदर सांस्कृतिक पहलू को समेटे हुए है। हमारी संस्कृति की एक विशेषता है कि कोई भी काम करने से पहले शुभ दिन और शुभ समय देखा जाता है अगर यह काम पहले न हो तो कुछ भविष्य में अशुभ घटेगा । फिर सबका नुकसान ही होगा। अब तक प्रशासन अपने कामों में व्यस्त हैं कि वह इसके लिए समय नहीं निकाल पाया है और शुभ मुहूर्त के अभाव में यह यहीं पड़ा रह गया ।
~ मेवालाल
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