कार्ल मार्क्स की एक प्रसिद्ध कविता


 इतनी चमक दमक

के बावजूद तुम्हारे दिन

तुम्हारे जीवन को

सजीव बना देने के

इतने सवालों के बावजूद

तुम इतने अकेले क्यों हो

मेरे दोस्त?


जिस नौजवान को

कविताएं लिखने और

बहसों में शामिल रहना था

वो आज सडकों पर

लोगों से एक सवाल

पूछता फिर रहा है

कि महाशय आपके पास

क्या मेरे लिए कोई काम है?


वो नवयुवती जिसके हक में

जिंदगी की सारी खुशियां होनी चाहिए थी

वो इतनी सहमी-सहमी

और नाराज क्यों है?


अदम्य रौशनी के

बाकी विचार भी

जब अँधेरे बादलों

से आच्छादित है

जवाब मेरे दोस्त

हवाओं में तैर रहे हैं


जैसे हर किसी को

रोज खाना चाहिए

नारी को चाहिए

अपना अधिकार

कलाकार को चाहिए

रंग और तूलिका

उसी तरह

हमारे समय के संकट को चाहिए

एक विचार और आह्वान


अंतहीन संघर्षों,

अनंत उत्तेजनाओं,

सपनों में बंधे

मत ढलो यथास्थिति के अनुसार

मोड़ो दुनिया को अपनी ओर

समा लो अपने भीतर समस्त ज्ञान

घुटनों के बल मत रेंगो

उठो! गीत, कला और सच्चाई की

तमाम गहराइयों की थाह लो.

                                        कार्ल मार्क्स 

                                   credit : otheraspect.org

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