दक्षिण वाम आंकड़ों का हेर फेर है ( संपादकीय लेख) ~ मेवालाल
*आंकड़ा जानकारी का वह भाग होता है जो शब्दों में, अंकों में, चित्र रूप में, ऑडियो वीडियो के रूप में हो सकता है। इस लेख में आंकड़ों को विचारों के रूप, जानकारी तथ्यों का ब्यौरा के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
उत्तर आधुनिकता की एक परिभाषिक शब्द है – साइमलक्रम जिसका अर्थ है एक ऐसी कॉपी जिसकी मूल कॉपी खो गई है।(मतलब जो भी ज्ञान है वह नकल का नकल है) एक दूसरा शब्द भी है – पेश्टीज जिसकी विशेषता है कि पाठ से कर्ता गायब है। (नई साहित्यिक सांस्कृतिक सैद्धांतिकी सुधीश पचौरी पृष्ठ 310, 311) इस उत्तर औद्योगिक युग में लेखक विशिष्ट शैली से वंचित है। मौलिकता नष्ट हो चुकी है। ज्ञान नष्ट हो गया है। बुद्धिमत्ता को मशीनों ने चुनौती दी है। लेखक की मृत्यु हो चुकी है। मात्र जानकारी ही बची है। लोग जानकारी पर विश्वास कर रहे है और यथार्थ और सत्य पीछे छूट गया है। दक्षिण पंथ श्रेणीबध्यता, सत्ता व्यवस्था, परंपरा, राष्ट्रवाद आदि में विश्वास करता है। जबकि वामपंथ, स्वतंत्रता समानता बंधुत्व, अधिकार , उन्नति, परिवर्तन तथा अंतर्राष्ट्रीयतावाद में विश्वास करता है। दोनों समाज तथा सामाजिक संस्थाओं या अवधारणाओं को देखने का दृष्टिकोण है। दक्षिणपंथ ने अपने विचारों का विकास अपनी आवश्यकतानुसार किया। और दक्षिणपंथी विचारधारा को पलटने के लिए वामपंथ तैयार हुआ। वामपंथ भी एक राजनीतिक अवधारणा है। इसने अपने विचारों का विकास जनहित में किया पर इसमें व्यक्ति हित कहीं पीछे छूट गया। अब तक दोनों ने जिस ढंग से समाज को देखा वह एक दूसरे के विचारों को दबाकर देखा। दोनों में एक दूसरे के दृष्टिकोण का अभाव है। दोनों का दृष्टिकोण चयनात्मक रहा ।
कांग्रेस , कम्युनिस्ट पार्टी और भाजपा उपरोक्त दोनों विचारों से प्रभावित है। इनके जो अपने अपने नायक है । उनमें भी एक दूसरे का अभाव है। एक नायक को अपनाते है तो दूसरे को छोड़ते भी है। यहां भी आंकड़ों का हेर फेर है।
सरकार किसी भी मुद्दों पर अपने कामों को प्रकाशित करती है। उसकी व्याख्या पक्ष वाले समर्थन में करते है जबकि विपक्ष वाले आलोचना करते है। दोनों का दृष्टिकोण कुल सामग्री का एक निश्चित सामग्री होता है। जनता ही मीडिया के माध्यम से ही सरकार को समझती है। ऐसे में शुद्ध आंकड़ा जनता तक नहीं पहुंच पाता है। शुद्ध आंकड़ा या जानकारी के प्राप्ति के लिए लोगों को स्वयं खोज करना पड़ेगी, पर लोग तो खोज करना जानते ही नहीं है, और वे अनुयाई बनकर रह जाते हैं।
आंकड़ों के हेर फेर में दो चीजों का महत्वपूर्ण योगदान है । पहला है बुद्धिजीवी दूसरा है मीडिया। ये दोनों भी दक्षिण वाम विचारों से , पार्टी से या सत्ता से जुड़े होते है। और हालांकि मीडिया को बुद्धिजीवी ही चलाते है। बुद्धिजीवी वर्ग एक निश्चित दृष्टिकोण से दुनिया समाज को देखते है। मीडिया समाचार का प्रसारण ही नहीं करती बल्कि विचारधारा भी फैलती है। दोनो चयनात्मक दृष्टिकोण अपनाकर जनता को नियंत्रित करते है। दोनों सत्ता द्वारा नियंत्रित होते है। ये दोनों जो सत्ता चाहती है वही ये दोनो चाहते है। न कि जो जनता चाहती है वह ये दोनों चाहते है। सामान्य जनता को यह समस्या नहीं दिखाई देती क्योंकि जनता की चित्तवृत्ति का स्वाभाविक विकास पीछे चलने को हुआ है।
बुद्धिजीवी वर्ग और मीडिया अपने विचारो के प्रचार प्रसार में लगे होते है। दोनों व्यक्ति की परिस्थितियों को नहीं देखते । वे उसकी जरूरत को नहीं देखते बल्कि अपनी विचारधारा की ही परवाह करते है। दोनों अपने विचारधारा में लोगों को बांधते है। इससे व्यक्ति का महत्व घट जाता है। उसकी स्वतंत्रता सीमित हो जाति है। सरकार चाहे जिसकी हो, मीडिया पर सत्ता नियंत्रण रखती है यह उसकी रणनीति है। जबकि यह जनता के साथ विश्वासघात है।
एक शिक्षण संस्थानों का उदाहरण लेते है। अध्यापक जिस तरह से किसी पाठ की व्याख्या करते है वे किसी न किसी संगठन से जुड़े होते है वह संगठन राजनीतिक पार्टी से जुड़ी होती है। वे मात्र पाठ की व्याख्या नहीं कर रहे होते है बल्कि अपने पीछे की संस्था के विचारो का प्रसार कर रहे होते है। विद्यार्थी उन्हीं के अनुसार पढ़ता है। वह उन्हीं विचारों को सीखता है जो संस्थाएं चाहती हैं। विद्यार्थी उन्हीं के हेर फेर में पड़ जाता है। वह स्वायत्त होकर बिलकुल नहीं सोच पाता है। उसकी स्वतंत्रता भी सीमित रहती है। इसके अभाव में अपने व्यक्तित्व और प्रतिभा का विकास नहीं कर पाता है। आंकड़ों के इस हेरफेर में समाज का चौरन्नाबे प्रतिशत फंसा है।
हर पाठ के एक निश्चित श्रोता होते है उन्हीं श्रोताओं में से एक वक्ता निकलता है। वह उन श्रोताओं के अनुसार चयनात्मक दृष्टिकोण से सामग्री का चयन करता है तथा उसका विश्लेषण करता है । सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बातों को अपने अनुयायियों तक पहुंचते है। सोशल मीडिया का रिकमेंडेशन सिस्टम निश्चित श्रोताओं के विचारो को बदल नहीं पाता है वरन बढ़ावा देता है। इससे उनके अंदर का किसी विचार को लेकर पूर्वाग्रह नहीं टूटता है यह व्यक्ति को उनके विचारो को लेकर कट्टर बनाता है।
हर आदमी आज सोशल मीडिया पर एक ग्रुप से जुड़ा हुआ है। यह ग्रुप धार्मिक, जातिगत तथा सांप्रदायिक होते है। यह एक अभियान के तहत बनाया जाता है। इस ग्रुप में शीर्षक रहित संदर्भ रहित पाठ होता है। वह किसी अज्ञात लेखक द्वारा लिखा गया होता है। जो काफी हेर फेर से युक्त होता है। उसको लोग पढ़ते है विश्वास भी करते है और फॉरवर्ड भी करते है। इसमें इष्ट समुदाय की पसंद के की पाठ होते है। उनको बताया जाता है कि तुम यह हो, वह नहीं हो। उस समुदाय को महानता से जोड़ा जाता है। इससे अन्य समुदाय से अलगाव की भावना फैलती है। एक समुदाय दूसरे समुदाय से स्वयं को श्रेष्ठ समझने लगता है। इससे दूसरे समाज या समुदाय के प्रति घृणा फैलती है। यहीं चयनात्मक पसंद, श्रेष्ठता, घृणा, समाज में हिंसा का रूप फलित होता है।
इन सब अलगावो से जनता दो भागों में बटती जा रही है – दक्षिण और वाम पंथ में। इसका आधार विचार है। और यह विचार हेर फेर से युक्त है। वे एक दूसरे को बार बार आंकड़ों को हेर फेर करके, हराने में, तोड़ने में लगे है।
माइकल फुको ने कहा था कि आसपास की शक्ति हमारे इच्छा शक्ति को संचालित करती है। अता ज्ञान के लिए अनुवांशिक होना चाहिए। ( उत्तर आधुनिक विमर्श और साहित्य चिंतन – सुधीश पचौरी) सरल शब्दों में इसका मतलब यह है कि अगर आप आंकड़ों के हेर फेर के प्रभाव से बचना चाहते है तो ज्ञान के लिए अपने स्वभाव को समझना होगा। जो हमारे स्वभाव में है वही ज्ञान है। वही सही है । वही समझने योग्य है। जो हमारे स्वभाव में नहीं है वह वास्तव में नहीं है। यह फूको का वैचारिकी से मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण स्थापना है ।
~ मेवालाल शोधार्थी बीएचयू
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