मैं आदमी नहीं हूं (कविता) 1 ~मलखान सिंह
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मैं नहीं हूं स्साब
जानवर हूं
दो पाया जानवर
जिसकी पीठ नंगी है
कंधों पर...
मैला है
गट्ठर है
मवेशी का ठठठर है
हाथों में...
रांपी सुतारी है
कन्नी बसूली है
सांचा है या
मछली पकड़ने का फांसा है
बगल में...
मूंज है–मुंगरी है
तसला है–खुरपी है
छेनी है –हथौड़ी है
झाड़ू है–रंदा है या
बूट पॉलिश का धंधा है।
खाने को जूठन है।
पोखर का पानी है
फूस का बिछौना है
चेहरे पर –
मरघट का रोना है
आंखों में भय
मुंह में लगाम
गर्दन का रस्सा
जिसे हम तोड़ते हैं
मुंह फटता है और
बंधे रहने पर
दम घुटता है।
मलखान सिंह, सुनो ब्राह्मण, रश्मि प्रकाशन, लखनऊ
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