प्रेम को परिभाषित करना कठिन है (लेख) ~ कार्तिकेय शुक्ल
प्रेम को परिभाषित करना उतना ही कठिन है जितना कि ब्रह्मांड की माप लेना। हम जानते हैं कि वह बहुत बड़ा है शायद अनंत। लेकिन वास्तव में कितना बड़ा ये कहना मुश्किल है। हम उसकी उपस्थिति का अनुमान तो लगा सकते हैं लेकिन उसकी चौहद्दी या फैलाव पर ठीक - ठीक कुछ नहीं कह सकते। उसे एक ज्यामितीय या दूसरे गणितीय अथवा वैज्ञानिक पैमाने के सहारे जता तो सकते हैं। लेकिन सही मायने में उसकी सीमा का निर्धारण नहीं कर सकते। जैसे कि हम शून्य लिख सकते हैं या चाहें तो देख सकते हैं लेकिन छू नहीं सकते। अर्थात् जिसका होना प्रमाणित है किंतु उसका सही फ़ॉर्म नहीं पता है फिर भी अभी तक के ज्ञान के आधार पर ही हम उसे अपने हिसाब से अंकित करते आ रहे हैं। जबकि ये होने की पूरी संभावना है कि आगे कभी उसका फ़ॉर्म बदल भी जाए।
प्रेम भी ठीक ब्रह्मांड और शून्य के जैसे ही अनंत और नगण्य के बीच का एक मसला है। हमें किसी से प्रेम है। इसे हम उसे बता कर या एहसास दिला कर जता सकते हैं। हमारी इस अवस्था को देख कर कुछेक दूसरे लोगों को भी ये लगने लगे कि हमें किसी से प्रेम है लेकिन जैसे कि वे ये नहीं बता सकते कि सही मायने में कितना प्रेम है वैसे ही हमें भी इसका आभास नहीं होता। हम भले किसी को प्रेम करें लेकिन कितना करें इस पर हमारा अधिकार नहीं रह जाता और जब करने पर अधिकार नहीं रह जाता फिर ये लाज़िम है कि कितना प्रेम है इसका अनुमान लगाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। शब्दों की एक सीमा है। बहुत सारी बातें जो हमारे दिमाग़ और ज़ेहन में चल रही होती हैं उन्हें यदि हम ठीक वैसे ही कहना चाहें या लिखना तो मुश्किल है।
इसे आप ख़ुद आज़मा के देख सकते हैं। इसे ऐसे समझें कि हम जितना सोचते हैं उतना कभी कर नहीं पाते। प्रेम भी कुछ यही जताता है। वह कहता है कि सोचो नहीं बल्कि करो। सोचोगे तो फिर कर नहीं पाओगे। जितना लगाव बड़े और सम्पन्न लोग पैसे या अन्य क़ीमती चीज़ों से महसूस नहीं कर सकते उससे कहीं ज़्यादा छोटे और ग़रीब लोग अपनी किसी पशु या खेत के एक टुकड़े से करते हैं। अब इसके पीछे के लॉजिक पर जाएं तो बहुत कुछ कहना पड़ेगा और शायद ये भी हो कि उनका यहाँ कोई अर्थ ही न निकले। इसलिए अभी सिर्फ़ इतना ही कहना सही रहेगा कि प्रेम या लगाव का कारण अच्छी या क़ीमती चीज़ों की मौजूदगी नहीं बल्कि उनकी हमारी ज़िंदगी में अहमियत पर टिकी होती है। बड़े लोग एक चीज़ के खो जाने या न रहने पर दूसरी चीज़ें आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।
लेकिन क्या यह ग़रीब लोगों के लिए संभव है कि उनकी कोई चीज़ न रहे और फिर उन्हें वह या उस जैसी कोई दूसरी चीज़ आसानी से मिल जाए? शायद नहीं। और फिर इसी आधार पर यह कहा जा सकता है प्रेम के मामले में भी ऐसा ही होता है। जिन्हें कई लोगों का प्रेम मिलता है उनके लिए किसी एक के प्रेम का कोई मायने नहीं रह जाता। वहीं कोई एक से प्रेम करता है या पाता है तो उसके लिए उसकी अहमियत कभी कम नहीं होती। आज कि जैसी दुनिया है उसमें ये सामान्य - सी बातें हैं कि कोई एक कईयों से प्रेम कर सकता है या पा सकता है। लेकिन क्या सही मायने में इसे प्रेम कहना उचित होगा? न्याय के तकाज़े पर उसे क़सा जाए तो क्या वह ख़रा उतरेगा? शायद नहीं। बेशक़ प्रेम करने की चीज़ है लेकिन एक साथ कईयों से नहीं और तब तो बिलकुल नहीं जब आपको एक से...
करते समय दूसरे को अंधकार में रखना पड़े। संभवतः कुछ लोग एक साथ दो या तीन लोगों से प्रेम कर सकते हैं। क्योंकि इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है। फिर भी उनसे इतनी ईमानदारी की गुंज़ाइश ज़रूर बनती है कि वे एक को धोखा में रख कर ऐसा न करें। यदि उन्हें एक के रहते दूसरे के प्रति लगाव महसूस होता है तो उन्हें चाहिए कि पहले वाले को उसके बारे में बताएं। यह उसका अधिकार है। उसे हर हाल में यह जानना चाहिए। फिर वह क्या करता है या कहता है इस आधार पर आप निर्णय लें। लेकिन ये नहीं कि एक को बिन बताए आप दूसरे के साथ आ जाएं। प्रेम बहुत ही महीन धागे से जुड़ा हुआ रिश्ता है। यदि एक बार धागा टूट गया तो फिर जोड़ने में कठिनाई होगी और जुड़ भी गया तो गांठ पड़ने की पूरी संभावना भी होगी। इसलिए जो भी करें आपसी सहमति...
...से करें। हाँ, इसके बाद यदि ये लगे कि ये ग़लत निर्णय था तो उससे निकलें भी। ये नहीं कि वहाँ फँस जाएँ। जीवन एक उपक्रम है। आप यहाँ हमेशा सही हों यह ज़रूरी नहीं। कई बार जाने - अनजाने में हमसे ग़लतियाँ होती रहती हैं। इसलिए बिना किसी पश्चाताप के यदि हो सके तो बिन तल्ख़ियों के रिश्ते से बाहर आ जाएँ। क्योंकि ये मानने के कई कारण हैं कि आप किसी के कर्ज़दार हैं। इसलिए यदि सामने वाला कुछ बुरा -भला भी कहता है तो चुपचाप सुन लें। क्योंकि इसके बाद उसके पास कुछ न रहेगा। यहाँ तक कि आप भी नहीं फिर इतना तो कर ही सकते हैं। हम कैसे भूल सकते हैं कि आपकी ज़ुबान ने किसी के बदन का नमक खाया है। आप को उन लोगों में अपनी गिनती कराने की कोशिश करनी चाहिए जो प्रेम किए हुए शख़्स को ताउम्र याद रखते हैं न कि भूल जाते हैं।
साथ ही ये भी ध्यान रहे कि प्रेम करने या पाने वाला शख़्स ज़रा समझदार भी हो। इसे एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। एक लड़का जब एक लड़की से प्रेम करता है तो वह उसे सर्वस्व समर्पण कर देता है। यहाँ तक कि उसके लिए वह लड़की सब कुछ हो जाती है। फिर वह कभी प्रेम से या गुस्से से कुछ कह भी देता है तो लड़की उसे सहजता से लेती है। कुछ लड़के अपनी प्रेमिका को माँ से भी बड़ा दर्ज़ा देते हैं। वहीं कुछ बेहतरीन गाइड या गुरु से भी उसकी तुलना करते हैं। और यह लड़की के लिए बड़ी बात होती है। लेकिन जब एक लड़की वास्तव में प्रेम में नहीं होती तब उसे इन बातों से कुछ ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता। उसको हमेशा अच्छा सुनना चाहिए होता है। आप कभी हँसी में उसे बहन कह दें तो वह मुंह फूला लेगी। चुड़ैल कहने पर तो ब्लॉक भी कर दे।
फिर तब क्या करें? क्या उसके सामने सफ़ाई पेश करें अथवा छोड़ दें? यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है तो यही कहना उपयुक्त होगा कि फ़िलहाल के लिए उसे उसके साथ छोड़ दें। क्योंकि आप उसके साथ थे, वह नहीं। उसके पास कई ऑप्शन थे, हैं और रहेंगे। कुछ लड़कियों को अटेंशन पाने का बड़ा शौक़ होता है। इसलिए वे सबसे वही चाहती हैं इसलिए सही उपाय यही है कि आप उन्हें उनके साथ छोड़ दें। जैसे कि प्रत्येक फूल को देव मूर्तियों या प्रतिमाओं पर नहीं चढ़ाया जाता, वैसे ही प्रत्येक स्त्री को प्रेम नहीं किया जा सकता। जिनके लिए शरीर साधन हो। वे प्रेम की हक़दार तो कदापि नहीं हो सकतीं। जिनके लिए आपके इमोशन का कोई अर्थ नहीं उनके पीछे पड़ने का कोई मतलब नहीं। प्रेमिका ऐसी होनी चाहिए जो सिर्फ़ आप के शब्दों को ही नहीं बल्कि उसके...
...पीछे के भाव के निहितार्थ को भी समझे। यह नहीं कि आप उसे माँ कह दें तो वह अपने को आपके पिता की पत्नी समझ कर रूष्ट हो जाए या बहन कह देने पर गंदा सोचने लगे। बहन का मतलब एक ऐसे दोस्त से भी लगाया जा सकता है या जाता है जिसके साथ आपका प्रेम भरा मार - पीट या उठा बैठक चलता हो। दरअसल हमउम्र भाई - बहन एक - दूसरे के बहुत क़रीब होते हैं। उनकी आपसी समझदारी बहुत अच्छी होती है। जब वे अपनी कोई बात माता - पिता से ख़ुद नहीं कह पाते तो अक्सर एक - दूसरे का सहारा लेते हैं। इसलिए एक प्रेमी जोड़े को भी भाई बहन के जैसे ही रिश्ते की अहमियत को तरज़ीह देने की ज़रूरत होती है। ताकि उनके बीच के रिश्ते को मज़बूती मिलती रहे और वे एक - साथ होकर दूसरी अन्य समस्याओं का सामना कर सकें। न कि ख़ुद ही का सिर फोड़ते रहें।
~ कार्तिकेय शुक्ल, शोधार्थी, हैदराबाद विश्वविद्यालय
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