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हिन्दी विभाग, बीएचयू

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  24,25 oct, 2024, चाटुकारों को phd के गाइड पहले मिल गए, जो देर से आए उन्हें बचे खुचे प्रोफेसर मिले। जिनके शरण में वे जाना नहीं चाहते थे। विद्यार्थी इसलिए कतराते है कि उनके शरण में जाने से काम बहुत करना पड़ेगा। विषय ज्ञान और वक्ता  एक कवि जायसी के अवधी पर बीच बीच में ठीक हो जाता है 

ढिबरी जल रही है (कविता) ~ ओमप्रकाश वाल्मीकि

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एक ढिबरी जल रही है उस छोटे से मकान में जहां कई सांसे जाग रही हैं एक साथ । जबकि, बड़ी इमारत में जगमगाती दूधिया रोशनी में लोग सो चुके हैं सिर्फ पहरेदार कर रहा है रखवाली। सुबह होने तक ढिबरी बुझ जायेगी। अपने आसपास काली पर्तें बिखेरकर मुझे ढिबरी तक जाना है अपनी उंगलियों पर लिपटे खुरदरेपन का हाल जानने । दूधिया रोशनी आंखों में चुभती है दारुण उदासी भर देती है रग-रग में। ढिबरी बुझने से पहले मुझे वहां पहुँचना है दहशत भरे दौर की कहानी सुनने । कहानी : जो हमें बताती है उस जानवर के बारे में जो आज भी मंडरा रहा है हमारे आसपास ।      ~ ओमप्रकाश वाल्मीकि, दर्द का दस्तावेज , श्री नटराज प्रकाशन, पृ. 76

उपोत्पाद (कविता) ~ ओम प्रकाश वाल्मीकि

 पैदा हुए वैसे ही जैसे होते हैं पैदा गलियों में कुत्ते बिल्ली पैदा हुए वैसे ही जैसे होती है खेत में पैदा खर पतवार हरी दूब झाड़-झंखाड़ । पैदा हुए, वैसे ही जैसे खांड बनाने की प्रक्रिया से पैदा होता है शीरा पैट्रोल से तारकोल । पैदा हुए, वैसे ही जैसे जंगल में उगते हैं पेड़ पहाड़ पर पत्थर नदी में रेत, रेत में सीपियां सीप में मोती । मोती से बनती है माला जिसे गले में डालकर बैठते हैं वे राज सिहासन पर और, हम खो जाते हैं अंधेरे में वैसे ही जैसे पैदा हुए गुमनाम उपोत्पाद की तरह ।                   ओमप्रकाश वाल्मीकि, दर्द का दस्तावेज श्री नटराज प्रकाशन, पृ. 73.74