ढिबरी जल रही है (कविता) ~ ओमप्रकाश वाल्मीकि



एक ढिबरी जल रही है

उस छोटे से मकान में

जहां कई सांसे जाग रही हैं एक साथ ।

जबकि,

बड़ी इमारत में

जगमगाती दूधिया रोशनी में

लोग सो चुके हैं

सिर्फ पहरेदार कर रहा है रखवाली।

सुबह होने तक ढिबरी बुझ

जायेगी।

अपने आसपास काली पर्तें बिखेरकर

मुझे ढिबरी तक जाना है

अपनी उंगलियों पर लिपटे

खुरदरेपन का हाल जानने ।

दूधिया रोशनी आंखों में चुभती है

दारुण उदासी भर देती है रग-रग में।

ढिबरी बुझने से पहले

मुझे वहां पहुँचना है

दहशत भरे दौर की कहानी सुनने ।

कहानी : जो हमें बताती है

उस जानवर के बारे में

जो आज भी मंडरा रहा है

हमारे आसपास ।

     ~ ओमप्रकाश वाल्मीकि, दर्द का दस्तावेज , श्री नटराज प्रकाशन, पृ. 76

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