उपोत्पाद (कविता) ~ ओम प्रकाश वाल्मीकि
पैदा हुए वैसे ही
जैसे होते हैं पैदा
गलियों में कुत्ते बिल्ली
पैदा हुए वैसे ही
जैसे होती है खेत में पैदा
खर पतवार
हरी दूब झाड़-झंखाड़ ।
पैदा
हुए,
वैसे ही
जैसे खांड बनाने की प्रक्रिया से
पैदा होता है शीरा
पैट्रोल से तारकोल ।
पैदा हुए, वैसे ही
जैसे जंगल में उगते हैं पेड़
पहाड़ पर पत्थर
नदी में रेत,
रेत में सीपियां
सीप में मोती ।
मोती से बनती है माला
जिसे गले में डालकर
बैठते हैं वे राज सिहासन पर
और, हम
खो जाते हैं
अंधेरे में वैसे ही
जैसे पैदा हुए
गुमनाम
उपोत्पाद की तरह ।
ओमप्रकाश वाल्मीकि, दर्द का दस्तावेज श्री नटराज प्रकाशन, पृ. 73.74
Comments
Post a Comment