राहुल गांधी के ‘संविधान बचाओ’ अभियान का निहितार्थ (संपादकीय) ~ मेवालाल


लोकसभा चुनाव 2024 में दो प्रमुख गठबंधन पहला NDA का नारा था अबकी बार चार सौ पार दूसरा प्रमुख दल इंडिया के का नारा था संविधान बचाओ और लोकतंत्र बचाओ। इससे पहले लोकसभा चुनाव 2019 में सबका साथ सबका विकास, सबका विश्वास सबका प्रयास नारा दे चुकी थी। विकास की पहुंच उन्हीं दरवाजों तक है जिनके पास पैसा है। जो विकास में पीछे छूट जा रहे थे उनके साथ कांग्रेस खड़ी थी संविधान बचाओ और लोकतंत्र बचाओ का नारा लेकर। ताकि भाजपा की बहुमत की तानाशाही और देश का धन जो एक जगह केंद्रित हो रहा है उसको रोका जा सके। 2024 चुनाव में राहुल गांधी कितना सफल हो पाते है।  जबकि उन्होंने  पिछले दशक से ही कांग्रेस के किसी पद पर रहना स्वीकार नहीं किया है।

23 अगस्त 2018 दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में उन्होंने संविधान बचाओ की शुरुवात की थी। यह दलितों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ था। राहुल गांधी का उद्देश्य दलितों के मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर ऊंचा उठाना था।

उसके बाद चंद्रशेखर आजाद रावण 2024 में यूपी के सिद्धार्थ नगर से संविधान बचाओ का अभियान की शुरुआत की थी। उसके बाद यह रैली हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश में हुआ।

दलित स्वतंत्र भारत के आजाद नागरिक है। उनका जाति के आधार पर वैसे ही आज भी शोषण हो रहा है जैसे आजादी के पहले हुआ करता था। वे आरक्षण का लाभ लेने में समर्थ नहीं है। जो पढ़ने लायक है उनको नौकरी में समान अवसर नहीं मिल पा रहा है।

संविधान बचाओ का तात्पर्य नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना। लोगों और संविधान के बीच सामंजस्य बिठाना है विशेषकर बेरोजगारी मंहगाई और अधिकारों को दबाने के क्षेत्र में।

गांधी परिवार ने तो भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी। महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। जबकि इस स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कोई योगदान नहीं था। आजादी के बाद नेहरू चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनते है और उन्होंने भारत के लोगों के लिए आजादी को संजो के रखा। अगर उनके स्थान पर  संघ का कोई आदमी  होता तो शायद सेना और संस्थाओं का उपयोगकर राजा बना रह जाता। और सबको प्रजा बनाता तथा चुनाव आदि बंद करवा देता। संविधान नहीं बल्कि मनुस्मृति के अनुसार शासन चलता। पर नेहरू ने ऐसा नहीं किया। नई पीढ़ियां उन्हें इस रूप में याद करेगी।

मूल संविधान में धर्म निरपेक्षता शब्द नहीं था। यह शब्द 1976 में ज्यादा गया इसे जोड़ने का मतलब यह दिखाना था राज्य या सरकार धार्मिक मामलों में तटस्थ है। वह सभी धर्मों का सम्मान करता है आंतरिक मामलों में भी और बाह्य मामलों में भी। अगर हम ऐतिहासिक रूप में देखे तो धर्म निरपेक्षता के तत्व सम्राट अशोक के समय में दिखाई देता है। राज्य बौद्ध धर्म से जुड़ा था पर वह सभी विश्वासों का सम्मान करता था। उसके 12 वे शिलालेख में सभी विचारों के सम्मान का उल्लेख है।। मध्यकाल में सम्राट अकबर ने इबादत खाना की स्थापना करता है जहां विभिन्न धार्मिक संवाद होते थे जिसमें हिन्दू मुसलमान ईसाई तथा आस्तिक समुदाय भाग लेते थे जिसका परिणाम यह निकलता था कि सभी रास्ते एक ईश्वर तक जाते हैं। सभी धर्मों का लक्ष्य एक है।

आधुनिक काल में देखे तो पाते है कि 1919 में खिलाफत आंदोलन के अध्यक्ष महात्मा गांधी थे। गांधी जी के प्रार्थना सभा में सभी धर्म ग्रंथों के अंश पढ़े जाते थे। गांधी जी सर्व धर्म समभाव में विश्वास करते थे। इस प्रकार भारतीय विरासत  बहुलतावाद को सुरक्षित रखा है। संविधान के भाग चार में वर्णित मौलिक कर्तव्यों में यह भी एक कर्तव्य है कि लोग समासिक संस्कृति का सम्मान करे। 

अगर पिछले दशक में देखा जाए तो स्पष्ट होता है कि जातिवाद और सांप्रदायिकता बढ़ा है। हिंदू धर्म ने अपनी राजनीतिक सत्ता स्थापित कर प्रतिक्रिया स्वरूप खुद को कट्टर भी बनाया है। हिंदुओं की पहचान उनकी उदारता से भी होती है। समानता और बंधुत्व भी संविधान की आत्मा है।

किसान बिल का बिना बहस के पास हुआ। कृषि राज्य सूची का विषय है पर केन्द्र सरकार ने कानून बनाया। अडानी, नीरव मोदी, और मेहुल चौकसी पर लगातार सवाल उठा रहे राहुल गांधी की सदस्यता रद्द हुई। महुआ मोइत्रा की सदस्यता रद्द हुई। पूर्वोत्तर में अफ्सपा हटाने की मांग को लेकर 33 लोकसभा से 45 राजसभा से कुल 78 सदस्यों की सदस्यता रद्द की गई।

तेलंगाना चुनाव में प्रियंका गांधी ने जनता से अपील की थी एक जगह धन केंद्रित मत होने दीजिए। संभल सांप्रदायिक तनाव में वे संविधान लेकर जाते है पर उन्हें वहां नहीं जाने दिया जाता है।

वर्तमान में भय और नफरत का माहौल है। कागज और कलम पर पहरा है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पहरा है। आप सरकार की खुलकर आलोचना नहीं कर सकते।  राइट तो लाइफ नहीं है। स्वस्थ और बीमा पर टैक्स लग रहा है। लगातार महंगाई बढ़ रही है। यह महंगाई नहीं बल्कि मुद्रा स्फीति है। इसकी मार कम कमाई वाले ही झेलते है।  यह अमीरों का विषय नहीं है। और गरीब इसके खिलाफ बोलना ही नहीं जानते और अगर बोलना भी जानते तो स्थिति में परिवर्तन नहीं हो सकता है। यह सरकार और उद्यमियों के बीच षडयंत्र है।जिसे क्रोनी कैपिटलिज्म कहा जा सकता है। यह लोगों को गरीब बनाने का एक तरीका है। 

महंगाई बेरोजगारी और बोलो तो अभिव्यक्ति के अधिकार का दमन। शिक्षण संस्थाओं की न केवल फीस बढ़ी है बल्कि भोजन वस्त्र और रियल एस्टेट ट्रांसपोर्टेशन की कीमत भी बढ़ी है। महंगाई बढ़ी और मंहगाई पर जीएसटी लगा तो मंहगाई और बढ़ी अब बताइए कि यह विद्यार्थी के स्वप्न पर टैक्स नहीं तो क्या है? कितने विद्यार्थियों ने पिछले साल स्कूल छोड़ है? उच्च शिक्षा गरीबों के लिए नहीं है...

यह चुनाव हिंदू संस्कृति और लोकतंत्र के बीच की लड़ाई है। संस्कृति सत्ता पक्ष में है। लोकतंत्र वाले विपक्ष में। जीतेगा तो कोई एक ही पर दूसरा पराजित नहीं होगा। संस्कृति हमेशा गढ़ी जाती है चाहे वह हिंदूवादी हो या लोकतंत्रवादी।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि राहुल गांधी का संविधान बचाओ अभियान का उद्देश्य काफी बड़ा है देखना शेष है जनता इसको कितना समझती है। 

                                   ~ मेवालाल

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