जहाँगीर की कविताएँ


                   [1]

ए जहाँगीर को साहजहाँ जिन जग पर

कियो कर साह मरदानजाको

अपबल दियो एहाँ अपबल दियो

समपत संग मँगाई शिरमोर धोल

शिरसिंगी साँई पातसा किए बड़ाई

जग पर कियो कर सिमर सुरधुर ॥

तेरे कुल होते आए तिमरलिंग

अमर बाबर हिमाऊँ दीनदार 

जाके साह अकबर ताके साह

जहाँगीर  नरपति    नर ।

रावराने लागे डरन मोन दीन अधार

करनराज तेजकायथ दायमको तव अटर ॥

                        [2]

बनि बिन वनिता आईहै पिय मन भाई सौतन

मध खेलत लालभँवर मानो फूल फुलवारी ।

एकनसों नैन सैन एकनसों मीठे वैन एकनको

पाछेते अंक भरत अचानके छवि

भई दूनी दुले रागहिण्डोल मिल गाई ॥

उत्तम मधुरित फूली इत काकमी वेली

ऐसे पिय तिय दोउ भाँत एकदाई।

अति सुखदयो दोउ बिवसन राई 

सुलतान सलेम पिय रुसोहै मनाई ॥

                      [3]

अति छवि छाजत है ललना लोचन तिहारे ।

रंगरंगीले रसाल छवीले सोहत लजीले सोंहै खात जात

झुकोहै कछू उझको है एसे सोहन होत हमारे ॥

अदभुत रूप गोप बरनो न जाय कोटिक

काम द्युति सुध वुध विसारे ।

साह जहाँगीरजान बूझकर सकुचावत

इन नैननमें रैन विहारे ॥

                      [4]

भाज भाजरे गढ़पति शाह जहाँगीर शाह रिसानो ।

चहुँचक जाकी आन कबूल खुरासान लपक

झपक लीनी पग लागो राजा रानी।।


स्रोत : मुगल बादशाहों की हिन्दी कविता सं. मैनेजर पांडेय, राजकमल प्रकाशन पृष्ट 47–48

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