जय प्रकाश नवेंदु ‘महर्षि’ का साक्षात्कार :– मेवालाल

जय प्रकाश नवेंदु 'महर्षि' एक जाने माने दलित लेखक है  जिनकी रचनाओं की संख्या सौ से ऊपर है। इन्होंने कविता संग्रह, उपन्यास, कहानी और नाटक लिखे हैं और कई पुस्तकों का संपादन भी किया है। कामना , एकांत वीणा, घनी धूप के दिन, कविताएं 1991, नई रामायण, पूरब में अंधेरा, आर्य, देव चरित्र, ब्राह्मण की बेटी और अपनी अपनी जाति प्रमुख है। इनकी एक कविता है - असहमति की पाठ 'उसका एक अंश देखिए -


 क्यों?
कौन? 
कैसा?
ये भले ही 
मामूली शब्द है। 
पर संभावनाओ के रास्ते 
इन्हीं से शुरू होकर 
                                                 समाधानों के विस्तृत मैदानों की ओर जाते हैं ।             (पृष्ठ 35, कविताएं 1991) 

प्रश्न (1) आपकी व्यक्तिगत विशेषताएँ क्या है?  आपकी सोच, दृष्टिकोण और

जीवन मूल्य पर क्या विचार है?

एक आदर्श व्यक्ति में जीवन जीने के लिए जो सत्य,समानता, ईमानदारी, अहिंसा, सदभावना, प्रेम, क्षमाशीलता की जो व्यक्तिगत विशेषताएँ होनी चाहिए, वही सब मेरे भी जीवन की व्यक्तिगतविशेषताएँ हैं। जहाँ तक सोच का सवाल है, तो मैं हमेशा से सकारात्मक, विकासात्मक सोच का पक्षधर रहा हूँ। शिक्षा प्राप्ति और उच्च जीवन लक्ष्यों की प्राप्ति का ध्येय ही मेरी सोच रही है। अब रही जीवन मूल्यों की बात, तो प्रेम, सदाचार, सत्य समानता, दया, प्रेम करुणा ये ही मेरे जीवन मूल्य हैं।

प्रश्न (2)  आपके जीवन पर किसका प्रभाव और प्रेरणाएँ रही है?  जीवन की  किन घटनाओं का  आपके साहित्य पर प्रभाव पड़ा  ?

इस प्रश्न के उत्तर में मुझे ये ही कहना है कि मैं एक दलित गरीब परिवार में पैदा हुआ! जिस कारण शिक्षा प्राप्ति और जीवन में उपलब्धियाँ हासिल करके एक सुखी जीवन का ध्येय था। बचपन में माँ द्वारा की गई आत्महत्या से परिवार छिन्न भिन्न हो गया। यही मुख्य घटना संघर्ष करने की और जीवन में ऊपर उठने की रही। विभिन्न लेखकों के साहित्य से लिखने की प्रेरणा मिली। और कुछ जातिगत कटु अनुभवों ने मनोबल को मजबूत बनाया। 

प्रश्न (3) आप भाषा शैली और विषय का  चयन कैसे करते हैं?

भाषा मेरा समस्त साहित्य गद्य और पद्य दोनों ही सहज सरल भाषा शैली में लिखा गया है। मेरा अपना मानना है कि एक लेखक और एक कवि को क्लिष्ट शब्दों की बजाय आम बोलचाल के शब्दों का ही प्रयोग करना चाहिये। और आम बोलचाल की शैली ही अपनानी चाहिये। विषय के बारे में यही कहना है कि एक लेखक को सामाजिक यथार्थपूर्ण और उद्देश्यपूर्ण साहित्य का ही सृजन करना चाहिये। मनोरंजन मात्र नही।

प्रश्न ५ - अपने साहित्य के योगदान और महत्व के बारे में बताइए। कृति का पाठक और समाज पर क्या प्रभाव रहा ?

जहाँ तक साहित्यकार द्वारा समाज के लिए साहित्यिक योगदान का सवाल है। तो समाज का दर्पण साहित्य कहा जाता है। यानीकि साहित्य द्वारा ही किसी समाज को जाना जाता है। और समाज परिवर्तन की कोशिश भी होती है। यही एक साहित्य का महत्व है और साहित्यकार का योगदान है समाज के लिए।

प्रश्न 5- यदि आपके किसी कृति पर आलोचना और विवाद हुआ हो? तो बताइए । 

दलित विमर्श और दलित साहित्य का आविर्भाव एकदम नई और अछूती भाव भूमि पर हुआ है। दबे कुचले वर्ग ने अपने अनुभव दिये हैं। समाज के विरोधी मानसिकता वाले समाज ने समस्त दलित साहित्य के प्रति नकारात्मक और उपेक्षा का भाव ही रखा है। जहाँ तक मेरे व्यक्तिगत साहित्य और रचनाओं का सवाल है तो मेरी सभी विधाओं में रचनाएँ चर्चा के केन्द्र में रही हैं। खासकर मेरे प्रभूदय" ग्रन्थ को तो दलित साहित्य में एक सदी की सर्वोत्तम रचना माना गया है।

प्रश्न 6- यदि आपकी राजनीतिक विचारधारा या किसी  सामाजिक संगठन से जुड़ाव या सक्रियता रही हो ? उसके बारे में बताइए । 

मेहनतकश दबे कुचले वर्ग की पक्षधर राजनीति 'ही मेरी भी विचारधारा है। समाज में परिवर्तन और विकास आधारित राजनीति होनी चाहिए। शिक्षण. कार्य करने के कारण शिक्षा में योगदान ही मेरी सामाजिक और साहित्य द्वारा जन जागरण का विस्तार करना ही मेरी सामाजिकता है।

प्रश्न 7- आपकी कृति का भविष्य में प्रभाव और महत्व  को किस तरह देखा जायेगा ? क्या कोई रचना कालजयी हो पाएगी?

जहाँ तक साहित्यिक और साहित्य रचनाओं के भविष्यगत महत्व का सवाल है। तो यह तो भविष्य ही सिद्ध करता है। लेकिन जो साहित्य जमीन से जुड़ा होता है वह तो वर्तमान में भी और भविष्य में भी जीवन्त ही बना रहता है।

(लेखक एक रेटायर्ड अध्यापक हैं। वे  वर्तमान मे उत्तराखंड के देहरादून में अपने घर पर रहते हैं। ईमेल jaiprakashnavendu@yahoo.com)


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