योगी बाबा की व्याहारिक राजनीति (लेख) ~ मेवालाल

 

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के पंचुर गांव में जन्मे योगी आदित्यनाथ (5 जून 1972 से वर्तमान) ने गणित से स्नातक उत्तीर्ण की। लेकिन उनके जीवन को 1990 के दशक के राम मंदिर आंदोलन ने एक दिशा दी। 1993 में गुरु महंत अवैद्यनाथ (तत्कालीन महंत और सांसद) से गोरखपुर मठ में दीक्षा ली। 1994 में संन्यास लेकर अजय सिंह विष्ट से योगी आदित्यनाथ बनते है और आध्यात्मिक जीवन में पूरी तरह रम जाते हैं ‘उनका राजनीति में प्रवेश 1998 में एक स्थानीय झगड़े से प्रेरित था। गोरखपुर के इस विवाद में उन्होंने छात्रों का नेतृत्व किया और प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाई। इस घटना ने उन्हें जननायक के रूप में स्थापित कर दिया।(बीबीसी 5 जून 2019) इसके बाद गुरु अवैद्यनाथ ने राजनीति में आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया और 1998 के चुनाव में गोरखपुर से सांसद चुने गए। 1998 से 2017 तक पांच बार गोरखपुर से सांसद रहे। 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा के जीत के बाद उन्हें मुख्यमंत्री चुना गया।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के पूर्व इस राज्य में आये दिन दंगा होता रहता था। त्योहारों पर स्थिति अत्यंत गंभीर हो जाया करती थी। मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, सहारनपुर, बरेली, फैजाबाद, लखनऊ आदि स्थान दंगों का दंश काफी झेल चुके थे। सांप्रदायिक दंगे होते थे। कर्फ्यू बार–बार लगता था। ऐसी समस्याये कानून व्यवस्था से नहीं हल हो सकती थी। जागरूकता और संवाद से हल नहीं हो सकता था। हमारे अंदर धार्मिक सांस्कृतिक विविधता की दमित उन्माद है न कि सामाजिक सामंजस्य की और इसकी अभिव्यक्ति विकृत रूप में ही होती थी। इसका व्यावहारिक हल स्पष्ट रूप से यही है कि लात के आदमी बात से नहीं मानते हैं। या सुरक्षा संस्थाओं को अधिक छूट देना ही है। यह बात कहना सही नहीं होगा कि गेरुवा वस्त्र पहने बाबा को पूजा पाठ करना ही आता है। उनमें राजनीति की सैद्धांतिक और व्यावहारिक समझ भी है।

परिवारविहीन–रिश्तेदारविहीन एक संन्यासी आदमी जब सरकार बनाएगा तभी लोकतंत्र सफल होगा। समाज में सुरक्षा रहेगी। नि:स्वार्थ भाव से देश की सेवा होगी।

कुछ लोगों के द्वारा यह कहकर उनकी निंदा की जाती है कि बाबा संविधान के धर्मनिरपेक्षता का अनुसरण नहीं करते हैं। वे धर्म विशेष को बढ़ावा देते हैं। इसको समझने के लिए भारतीय परंपरा को समझना होगा। इतिहास में देखा जाए तो पता चलता है कि धर्म और राजनीतिक सदैव से जुड़ी रही हैं। सल्तनत काल और मुगल काल में धर्म और राजनीतिक आपस में जुड़ी हुई थी। उलेमा का शासन में हस्तक्षेप नहीं था, पर कानून व्यवस्था शरिया के अनुसार ही चलता था। आधुनिक काल में भी धर्म और राजनीति अलग-अलग नहीं हैं। आपस में जुड़े हुए हैं।

‘2017 से मुख्यमंत्री बनने पर योगी बाबा ने अपराधियों पर नकेल कसा है। 2017 के बाद पुलिस ने 1844 मुठभेड़ों को अंजाम दिया है। इन मुठभेड़ों में 4654 अपराधी गिरफ्तार किए गए हैं। 14 खूनख्वार अपराधी मारे गए है। (ABP 15 अप्रैल 2022)’

2025 के ताजा आंकड़ों पर नजर डाले तो पाते हैं कि पुलिस ने कुल 14741 मुठभेड़ की कार्रवाई की जिसमें 30293 अपराधियों को गिरफ्तार किया गया।एनकाउंटर की करवाई में 9202 अपराधी घायल हुए। अपराधियों से लोहा लेते हुए 18 पुलिसकर्मी बलिदान भी हो गए। पुलिस के 4183 कार्रवाई में मेरठ जोन प्रथम है। दूसरे स्थान पर आगरा है जहाँ 2288 एनकाउंटर की करवाई हुई। तीसरे स्थान पर वाराणसी रहा जहाँ 1041 एनकाउंटर कार्रवाई हुई।(दैनिक जागरण, 9 जनवरी 2025)

इसमें विकास दुबे, टिंकू कपाला, मोती सिंह, हमजा, मनीष सिंह, विनोद कुमार सिंह, असद अहमद, अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी जैसे बड़े नाम भी शामिल हैं। इनमें हिंदू और मुसलमान दोनों हैं। इनको कोर्ट सजा नहीं दे सकती थी। कोर्ट में मामला पहुँचने से पहले ये सब मामला निपटा देते हैं। निर्णय सुनाने से पहले जज को भी मारते आए हैं। लोहा को लोहा ही काट सकता है और काटा भी। यह प्रदेश में माफियाराज के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति है। अपराधी डर गए। इससे रंगदारी भी खत्म हुई। प्रदेश में निवेश में निवेश आने लगा और उत्तर प्रदेश विकास के रास्ते पर चल पड़ा। यह कार्य कोई सन्यासी ही कर सकता था। संदेश यह है कि लोग राजनीति में आने के लिए गुंडागर्दी का रास्ता नहीं अपनाएं। ऐसे में राजनीति स्वच्छता की तरफ बढ़ रही है।

बाबा के बुलडोजर एक्शन पर बुद्धिजीवी द्वारा आलोचना हो रही है। कह रहे हैं कि सरकार न्याय नहीं कर सकती है, न्याय करने के लिए न्यायपालिका है। यदि व्यावहारिक ढंग से विचार किया जाए कि जब अपराध का मामला अदालत में पहुंचेगी तभी तो न्याय होगा और उसे अदालत तक कौन ले जाएगा? जो अवैध जमीन पर कब्जा करता है उसकी राजनीतिक शक्ति और पारिवारिक शक्ति बहुत मजबूत होती है। उसके खिलाफ एक आम आदमी कभी पुलिस थाने नहीं जा सकता है उसका समाज पर भयंकर दहशत रहता है। इसलिए अवैध निर्माण पर एक शक्तिशाली व्यक्ति ही एक्शन ले सकता है। बुलडोजर कर्म की वही निंदा कर रहे हैं जो सरकारी जमीन पर कब्जा करने के इच्छुक थे। इसके विपरीत देखा जाय तो हम पाते हैं कि बुलडोजर एक्शन से बहुसंख्यक आबादी खुश है जो राजनीति में रुचि नहीं रखती है।

प्रायः आपत्ति यह भी हैं कि एक संन्यासी को मुख्यमंत्री नहीं बनाना चाहिए। उन्हें मंदिरों में रहना चाहिए। पूजा–अर्चना करनी चाहिए। अब पुनः भारतीय संस्कृति को समझते हैं। जबलोपनिषद, ऋग्वेद और अथर्ववेद में चार आश्रम का वर्णन मिलता है – ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम। शिक्षा ग्रहण कर, घर बसाकर, संन्यास के लिए व्यक्ति घर छोड़ देता था। और वानप्रस्थ आश्रम में संन्यास के बाद ज्ञान प्राप्त हो जाने के बाद पुनः समाज में आकर उपदेश देता था। एक प्रकार वह समाज निर्माण का कार्य करता है। उदाहरण भगवान बुद्ध स्वयं हैं। यहाँ से राजनीति की रूपरेखा भी बदलती है कि व्यक्ति मात्र संन्यासी नहीं रहता है बल्कि राजनीति शक्ति भी हासिल करता है और मुख्यमंत्री (राजा) भी बनता है। यूपी में कंपनी आ रही है। निवेश बढ़ रहा है तो यह निवेशकों का विश्वास है। यूपी को इस विश्वास के लायक बाबा ने बनाया है। यूपी के संबंध में लोगों की धारणा बदली है।

इससे स्पष्ट होता है कि निर्णय सिद्धांतों के आधार पर नहीं लिए जाते हैं, बल्कि व्यावहारिक सोच और सामान्य बुद्धि के आधार पर भी लिए जाते रहे हैं। सन्यासी बनकर राजनीति में आकर देश/जनता की सेवा निष्काम भाव से की जा सकती है। यहाँ सेवा प्रमुख है राजनीति नहीं। ऐसे राजनीति में परिवार रिश्तेदार की परवाह नहीं करता है कि वे रूठेंगे या सम्मान करेंगे। ऐसा गुण जिनमें है उसका नेतृत्व को मजबूत होता है। वही बड़ा निर्णय ले जा सकता है। बाबा का मुख्य विषय धार्मिक–आध्यात्मिक मात्र नहीं है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र भी है।

यह सब एक नया ज्ञानोदय है। कई वर्षों बाद राजनीतिक कुर्सी हाथ में आई है, जो हजार वर्षों से हिंदू जनता प्रतीक्षा कर रही थी। बुलडोजर एक्शन आधुनिक समय का नवजागरण है। बुलडोजर निर्माण का प्रतीक है। बाबा ने स्वयं घोषणा की है कि इस अवैध जमीन पर स्कूल और अस्पताल बनेंगे। यह आश्चर्य से कम नहीं कि भारत में ऐसी भी राजनीति हो सकती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का संततिविहीन और और संपत्तिविहीन जीवन समाजवादी मूल्यों की संरक्षा और सुरक्षा का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

         ~ मेवालाल, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, ईमेल mevalal94@gmail.com

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