जेएनयू पर (कविता) ~ मेवालाल
सबकी अपनी निजता है
है सबकी अपनी पहचान।
सर झुकाने की प्रथा नहीं
है असहमति का सम्मान।
आशा करे कर्म के साथ
बंधन बिन इच्छा की स्थापना।
प्रथम रास्ते में है गति अमंद
यहां अनुशासन स्वतंत्रता का संबंध।
जितना चाहे देख सकते
उतना तुम सुन सकते।
सामाजिक मुद्दों को
विविध रंग भरी शैली में।
गुरु शिष्य की परंपरा नहीं
अनोखा है मित्रवत व्यवहार।
शिक्षक को हाय बाय बोलना
यह जेएनयू का समताचार।
कोई मुकाबला क्या करेगा
लेकर अपनी झूठी शान।
निवेश और उत्पादकता देखो
यहां अधिकार कर्तव्य का स्थान।
मानव विभाजन स्वीकार नहीं
क्यों न हो विश्वविद्यालय खुशहाल।
जहां शिक्षक पिता से रखते
विद्यार्थी के अपेक्षाओं का ख्याल।
संवाद विचार विमर्श का जिला
देख लो तुम आंखे खोल।
मिलेगा नहीं कहीं ऐसा कहीं
शांतिमय वातारण का माहौल।
बिना किसी पूर्वाग्रह पक्षपात के
समिष्ट में व्यष्टि का महत्त्व।
जीवन की कुशल बनाती जहां
आलोचनात्मक सोच सृजन के तत्त्व।
प्रकृति संस्कृति का संबंध
अंतरानुशासनत्मक ज्ञान प्रक्रिया।
सामाजिकता सम्मान अलग
परिचय भिन्न प्रदर्शन क्रिया।
खुलकर रहना खुलकर बोलना
न डर, डरना न डराना न।
जेएनयू सिखाता आत्मविश्वास
आंख संपर्क कर बात करना।
जेएनयू की नाइट लाइफ
इच्छा पूरी हो मन की।
समय बाढ़ें उन्नति होय
अकुंठित विद्यार्थी जीवन की।
नियम अनुशासन बंधन कम
संकीर्णता दास चित्तवृत्ति को हारता।
करता मानसिक क्षमता का विस्तार
यह जेएनयूइष्ट की आत्मनिर्भरता।
हिंदुस्तान में एकमात्र है
स्वतंत्रता समता बंधुत्व का आंदोलन।
संविधान जिसका आदर्श है
ऐसे जेएनयू को शत शत नमन।
~ मेवालाल
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