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Showing posts from May, 2024

अलग (कविता ) ~ गौतम कुमार

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मेरी सुबह अलग  चौक पे मेरी चाय की कप  मेरी चुस्की  अलग! मेरी थाली  मेरा खाना  अलग! मेरी बस्ती  मेरा काम  मेरी तनख़्वाह  अलग! मुद्दे मेरे  और उनके लिए लड़ने वाले  अलग! मुझे हमेशा लगता था कि मैं अलग हूँ  देखो न  आज भी तुम सब मुझे देखने आए हो  तुम ज़िंदा हो  और मैं  देश की राजधानी में लटक रहा हूँ  एक पेड़ से अलग! तुम आँखें गड़ाए सिर्फ़ मुझे देख रहे हो  मुझे मालूम है  तुम एक आत्महत्या की तलाश कर रहे हो   मेरी थाली  मेरा खाना  मेरा काम  मेरा वेतन  बता रहा है कि यह एक हत्या है  पर तुमने आज सुबह  हरी सब्जियाँ ज़्यादा ख़रीद ली हैं शायद  भारी हो रही हैं  तुम नहीं चाहते इसके ऊपर  किसी भंगी की हत्या का बोझ!                                गौतम कुमार शोधार्थी जेएनयू 

पीएम मोदी का साक्षात्कार और जवाबदेही का प्रश्न (संपादकीय) ~ मेवालाल

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  पीएम नरेंद्र मोदी अब तक इंडिया टुडे, थानवी टीवी, न्यूज़ वीकली, TV9, न्यूज़ 18, टाइम्स आफ इंडिया, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान, फाइनेंशियल टाइम, टाइम्स नाउ, दैनिक जागरण और रिपब्लिक टीवी, एनटीवी, एबीपी, आज तक, एनडीटीवी सहित कुल सोलह साक्षात्कार दे चुके हैं पर उसमें स्वशासन का स्तंभ जवाबदेही कहीं पर दिखाई नहीं देता है। देखकर नही लगता कि वे जनता के प्रति जवाबदेह है बल्कि यह जनता पर प्रभाव बनाए रखने की रणनीति है। पीएम मोदी का साक्षात्कार उस समय पर हो रहा है जब चुनाव हो रहे है। अगर चुनाव न हो रहा होता तो जनता के प्रति जवाबदेह की आशा भी की जा सकती थी।  पर चुनाव के समय तो प्रमोशन की ही चिंता कही जा सकती हैं  उनके साक्षात्कार के कुछ अंश प्रश्न : फाइनेंशियल टाइम पूछा गया कि भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों का भविष्य क्या है ? उत्तर : मोदी जी ने कहा कि बात मुस्लिम अल्पसंख्यकों की नहीं है। पारसी भी अल्पसंख्यक है। देश ने उनको भी शरण दी है। सिर्फ मुसलमानों का संदर्भ नहीं है। आप इसी से भारत की सहिष्णुता से आप अंदाजा लगा सकते है।  प्रश्न : उत्तर टाइम्स नाउ में मोदी जी कांग्रेस के मु...

विकसित भारत पर गुरुदेव श्री श्री रविशंकर और विक्रांत मेसी का संवाद (रिपोर्टिंग) ~ मेवालाल

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  श्री श्री रविशंकर अध्यात्म में विशेषज्ञता रखते है। सामाजिक, धार्मिक सांस्कृतिक क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। उनका एक संगठन है आर्ट ऑफ लिविंग। विक्रांत मेसी जाने माने टीवी कलाकार और अभिनेता है। इन्होंने विकसित भारत पर बात किया । ये दोनो किसी बड़े सरकारी पद पर आसीन नही है । न ही बड़े अर्थशास्त्री है। सीधे सत्ता से जुड़े हुए नहीं दिखते है। पर सत्ता का जितना फैलाव है उसमे इनकी अच्छी जगह है। कार्यक्रम शुरू होने से पहले तीन चार धार्मिक गीत गाए जाए और जनता को मस्त मगन कर दिया गया। कार्यक्रम देर से शुरू हुआ।  १. विक्रांत मेसी : जो युवा है वह जानना चाहते हैं कि विकसित भारत क्या है ? नियति क्या है ? उद्देश्य क्या है? इसको कैसे प्राप्त किया जा सकता है?  श्री रविशंकर : जोश है तो होश है । विकसित भारत बन रहा है। जो हो रहा है दिख रहा है। वाराणसी की प्रगति कल्पनातीत है। आंखे बंद करके देखा जा सकता है। काशी आध्यात्मिक धरोहर है। काशी भारत वर्ष के समंदर के एक बूंद का अध्यात्म है। 2. विक्रांत मेसी : हमारे युवा प्रतिस्पर्धी है पर निराशा को झेल नहीं पा रहे है। आधुनिक समाज में सफलता का क्या मंत्...

अखिलेश यादव के मंदिर प्रवेश पर (लेख) ~ मेवालाल

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  Pic credit: times of india, kanauj हाल ही में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कनौज के सिद्धेश्वर मंदिर में गए। यह शिव पार्वती का मंदिर है। वहां उनके जाने के बाद उस मंदिर को गंगा जल से धुलवाया गया। भले वे चुनावी माहौल में गए हो पर यह उनकी अपनी रणनीति है। और यह उनका अपना अधिकार भी है। मै तो सोचता था कि ये हादसा सिर्फ एसी एसटी लोगों के साथ होता है। लेकिन यह ओबीसी के साथ भी को रहा है। अब लोग कह सकते है कि हमे मंदिर क्यों जाना ? तो जवाब है कि जब वह मंदिर बना होगा तो क्या एक ही समुदाय के लोगों ने अपना पैसा और श्रम खर्च किया होगा? समाज के सभी लोगों यथास्थितिनुसार चंदा दिया होगा। मंदिर को पूरा करवाने में अपना अमूल्य श्रम भी दिया होगा। फिर ऐसा कृत्य क्यों ? अंबेडकर ने भी मंदिर के लिए सत्याग्रह किया था। कि हमे मानव होने का अधिकार मिले। मंदिर जाने से दाल चावल का खर्चा नहीं निकलेगा पर जो संस्कृति से सदियों से जुड़ा है। जो हमारे मन मस्तिष्क में रचा बसा है उसके द्वार जाकर सुकून तो मिलता ही है। इसलिए मंदिर जाना भी जरूरी है सुकून के लिए नहीं तो मानवाधिकार के लिए जरूरी है। देवालय भगवान का घर है भग...

बदहाली (कविता) ~ गौतम कुमार

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 दिहाड़ी करने  मज़दूर पांडे अपने घर से निकल रहे हैं  पूरी मज़दूरी आज भी नहीं मिली  घर लौट रहे हैं  अकेले नहीं किसी के साथ  एक निराशा उनके साथ चली आ रही है  जिसे वह घर नहीं ले जा सकते  घर पे बच्चे हैं!  कल फिर शाम होगी  काम ख़त्म होगा  परिंदे नशेमन को लौटेंगे दिन भर का थका आफ़ताब  दरिया में डूबेगा उसकी हथेली पे फिर आधी मज़दूरी होगी  यह निराशा तब किसी अनजान कोने से वापिस निकलेगी  मज़दूर पांडे के साथ चल पड़ने को पसीना बहता जाएगा  निराशा बढ़ती जाएगी  खाने को कुछ पैसे मांगने पर  सड़क पे खड़े भिखारी शर्मा को डाँट पड़ी है- "अच्छे-ख़ासे हो देह-शरीर से" "कुछ काम क्यों नहीं करते" "मेहनत क्यों नहीं करते" बड़े जतन से जूता सिल रहे हैं मोची मिश्रा  यह उनका पुश्तैनी काम है  यही काम उन्हें बेहतर आता है  राष्ट्र-निर्माताओं-महात्माओं का मानना है  कि उन्हें यही काम और निष्ठा से करना चाहिए  मोक्ष पाने का यह सरल तरीका है  बेगार सिंह के घर में आमद नहीं है उनकी ज़मीन छीन ली गयी  अब वह अपनी ही ज़मीन पर बेगा...