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जय प्रकाश नवेंदु ‘महर्षि’ का साक्षात्कार :– मेवालाल

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जय प्रकाश नवेंदु 'महर्षि' एक जाने माने दलित लेखक है  जिनकी रचनाओं की संख्या सौ से ऊपर है। इन्होंने कविता संग्रह, उपन्यास, कहानी और नाटक लिखे हैं और कई पुस्तकों का संपादन भी किया है। कामना , एकांत वीणा, घनी धूप के दिन, कविताएं 1991, नई रामायण, पूरब में अंधेरा, आर्य, देव चरित्र, ब्राह्मण की बेटी और अपनी अपनी जाति प्रमुख है। इनकी एक कविता है - असहमति की पाठ 'उसका एक अंश देखिए -  क्यों? कौन?  कैसा? ये भले ही  मामूली शब्द है।  पर संभावनाओ के रास्ते  इन्हीं से शुरू होकर                                                   समाधानों के विस्तृत मैदानों की ओर जाते हैं ।             (पृष्ठ 35, कविताएं 1991)  प्रश्न (1 ) आपकी व्यक्तिगत विशेषताएँ क्या है?  आपकी सोच, दृष्टिकोण और जीवन मूल्य पर क्या विचार है? एक आदर्श व्यक्ति में जीवन जीने के लिए जो सत्य,समानता, ईमानदारी, अहिंसा, सदभावना, प्रेम, क्षमाशी...

जहाँगीर की कविताएँ

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                   [1] ए जहाँगीर को साहजहाँ जिन जग पर कियो कर साह मरदानजाको अपबल दियो एहाँ अपबल दियो समपत संग मँगाई शिरमोर धोल शिरसिंगी साँई पातसा किए बड़ाई जग पर कियो कर सिमर सुरधुर ॥ तेरे कुल होते आए तिमरलिंग अमर बाबर हिमाऊँ दीनदार  जाके साह अकबर ताके साह जहाँगीर  नरपति    नर । रावराने लागे डरन मोन दीन अधार करनराज तेजकायथ दायमको तव अटर ॥                         [2] बनि बिन वनिता आईहै पिय मन भाई सौतन मध खेलत लालभँवर मानो फूल फुलवारी । एकनसों नैन सैन एकनसों मीठे वैन एकनको पाछेते अंक भरत अचानके छवि भई दूनी दुले रागहिण्डोल मिल गाई ॥ उत्तम मधुरित फूली इत काकमी वेली ऐसे पिय तिय दोउ भाँत एकदाई। अति सुखदयो दोउ बिवसन राई  सुलतान सलेम पिय रुसोहै मनाई ॥                       [3] अति छवि छाजत है ललना लोचन तिहारे । रंगरंगीले रसाल छवीले सोहत लजीले सोंहै खात जात झुकोहै कछू उझको है एसे सोहन होत हमारे ॥ अदभुत रूप ग...

राहुल गांधी के ‘संविधान बचाओ’ अभियान का निहितार्थ (संपादकीय) ~ मेवालाल

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लोकसभा चुनाव 2024 में दो प्रमुख गठबंधन पहला NDA का नारा था अबकी बार चार सौ पार दूसरा प्रमुख दल इंडिया के का नारा था संविधान बचाओ और लोकतंत्र बचाओ। इससे पहले लोकसभा चुनाव 2019 में सबका साथ सबका विकास, सबका विश्वास सबका प्रयास नारा दे चुकी थी। विकास की पहुंच उन्हीं दरवाजों तक है जिनके पास पैसा है। जो विकास में पीछे छूट जा रहे थे उनके साथ कांग्रेस खड़ी थी संविधान बचाओ और लोकतंत्र बचाओ का नारा लेकर। ताकि भाजपा की बहुमत की तानाशाही और देश का धन जो एक जगह केंद्रित हो रहा है उसको रोका जा सके। 2024 चुनाव में राहुल गांधी कितना सफल हो पाते है।  जबकि उन्होंने  पिछले दशक से ही कांग्रेस के किसी पद पर रहना स्वीकार नहीं किया है। 23 अगस्त 2018 दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में उन्होंने संविधान बचाओ की शुरुवात की थी। यह दलितों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ था। राहुल गांधी का उद्देश्य दलितों के मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर ऊंचा उठाना था। उसके बाद चंद्रशेखर आजाद रावण 2024 में यूपी के सिद्धार्थ नगर से संविधान बचाओ का अभियान की शुरुआत की थी। उसके बाद यह रैली हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश में हुआ। द...

योगी बाबा की व्यावहारिक राजनीति ~ मेवालाल

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी के मुख्यमंत्री बनने के पूर्व यूपी में आते दिन दंगा होता रहता था। त्योहारों पर दंगे होते थे। मुजफ्फरपुर, मुरादाबाद, सहारनपुर, बरेली, फैजाबाद, लखनऊ आदि दंगों का दंश काफी झेल चुके थे। सांप्रदायिक दंगे होते थे। कर्फ्यू बार बार लगता था। ये समस्या कानून व्यवस्था से नहीं हल हो सकता था। जागरूकता और संवाद से हल नहीं हो सकता था। क्योंकि हमारे अंदर धार्मिक संस्कृति विविधता की दमित भावना है उसकी अभिव्यक्ति विकृत रूप में ही होगी। इसका व्यावहारिक हल यही है कि लात के आदमी बात से नहीं मानते हैं। यह बात कहना सही नहीं होगा कि गेरुवा वस्त्र पहने बाबा को पूजा पाठ करना ही आता है। उनको राजनीति की सैद्धांतिक और व्यावहारिक समझ भी है। परिवारविहीन रिश्तेदार विहीन एक सन्यासी आदमी जब सरकार बनाएगा तभी लोकतंत्र सफल होगा। समाज में सुरक्षा रहेगा। निस्वार्थ भाव से देश की सेवा होगा।  आपत्ति यह है कि बाबा संविधान के धर्मनिरपेक्षता का अनुसरण नहीं करते है। वे धर्म विशेष को बढ़ावा देते हैं। इसको समझने के लिए भारतीय परंपरा को समझना होगा। इतिहास में देखा जाए तो पता चलता है कि धर्म और...

हिन्दी विभाग, बीएचयू

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  24,25 oct, 2024, चाटुकारों को phd के गाइड पहले मिल गए, जो देर से आए उन्हें बचे खुचे प्रोफेसर मिले। जिनके शरण में वे जाना नहीं चाहते थे। विद्यार्थी इसलिए कतराते है कि उनके शरण में जाने से काम बहुत करना पड़ेगा। विषय ज्ञान और वक्ता  एक कवि जायसी के अवधी पर बीच बीच में ठीक हो जाता है 

ढिबरी जल रही है (कविता) ~ ओमप्रकाश वाल्मीकि

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एक ढिबरी जल रही है उस छोटे से मकान में जहां कई सांसे जाग रही हैं एक साथ । जबकि, बड़ी इमारत में जगमगाती दूधिया रोशनी में लोग सो चुके हैं सिर्फ पहरेदार कर रहा है रखवाली। सुबह होने तक ढिबरी बुझ जायेगी। अपने आसपास काली पर्तें बिखेरकर मुझे ढिबरी तक जाना है अपनी उंगलियों पर लिपटे खुरदरेपन का हाल जानने । दूधिया रोशनी आंखों में चुभती है दारुण उदासी भर देती है रग-रग में। ढिबरी बुझने से पहले मुझे वहां पहुँचना है दहशत भरे दौर की कहानी सुनने । कहानी : जो हमें बताती है उस जानवर के बारे में जो आज भी मंडरा रहा है हमारे आसपास ।      ~ ओमप्रकाश वाल्मीकि, दर्द का दस्तावेज , श्री नटराज प्रकाशन, पृ. 76

उपोत्पाद (कविता) ~ ओम प्रकाश वाल्मीकि

 पैदा हुए वैसे ही जैसे होते हैं पैदा गलियों में कुत्ते बिल्ली पैदा हुए वैसे ही जैसे होती है खेत में पैदा खर पतवार हरी दूब झाड़-झंखाड़ । पैदा हुए, वैसे ही जैसे खांड बनाने की प्रक्रिया से पैदा होता है शीरा पैट्रोल से तारकोल । पैदा हुए, वैसे ही जैसे जंगल में उगते हैं पेड़ पहाड़ पर पत्थर नदी में रेत, रेत में सीपियां सीप में मोती । मोती से बनती है माला जिसे गले में डालकर बैठते हैं वे राज सिहासन पर और, हम खो जाते हैं अंधेरे में वैसे ही जैसे पैदा हुए गुमनाम उपोत्पाद की तरह ।                   ओमप्रकाश वाल्मीकि, दर्द का दस्तावेज श्री नटराज प्रकाशन, पृ. 73.74