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मेरे हाथों की रेखाएं (कविता) ~ मेवालाल

  ‎ रेखाएं जीवन का नक्शा ‎ हर मोड पर एक कहानी ‎ हर टूटन संघर्ष को लेकर ‎ हमे किसी को नहीं सुनानी  ‎ पत्तियां सारी गिरी हुई ‎ दिखती जैसे ठूठ वन। ‎ नहीं मिला हरी घास कहीं ‎ सुख गया है अपना मन। ‎ एक दूसरे को कटती तोड़ती ‎ कहीं बनाती है नक्षत्र  ‎ टूटती जुड़ती नदियों का प्रवाह ‎ गिरती अंगुली बीच मुहाने पर। ‎ लंबे लंबे भ्रांश का विस्तार ‎ कुछ समतल कुछ पर्वत शिखर ‎ जहां नहीं है कोई उपवन ‎ आदिम सभ्यता जंगलीपन ‎ सभ्य संस्कृति पशुवत जीवन ‎ जैसे दोहराया जा रहा इतिहास ‎ पठनीय नहीं लिपि भाषा ‎ रेखाएं बनी कर्म का विश्वास ‎ आंतरिक बल फिर भी जड़ता ‎ पुरानी स्मृतियों की पुरानी गालियां ‎ जहां से हर आदमी है गुजरा। ‎ यहां कुछ छिपा हुआ है ‎ जिसे हमने नहीं समझा ‎ ब्रह्मांड के दूसरे हिस्से तक ‎ रेखाएं मन को दिशा बताती ‎ आत्मा का संतुलित संसार ‎ पड़ता जहां मन का प्रतिबिंब ‎ लोग करते है गलतियां ‎ इंसानों की कमजोरी मानकर ‎ सीखते सुधारते अपने जीवन से ‎ विकसित हुआ नया संसार ‎ किसी के लिए कला ‎ किसी के लिए शांति ‎ किसी के लिए खोज ‎ किसी के लिए प्रेम ‎ आप खुश तो सामने वाला खुश ‎ आप दुखी तो सामने वाला...

सोच (कविता) ~ मेवालाल

 ‎ सोशल मीडिया पर विचरण करते ‎ देखते एक फोटो रहा गंभीर ‎ जिसने पलट दिया  ‎ मेरे विचारों का एक पृष्ठ ‎ दो अलग अलग परिवार ‎ बात करते अलग अलग देखा ‎ एक ही स्थिति पर ‎ यदि हो विचारों पर काम  ‎ तो बदल जाएगी जीवन रेखा। ‎ एक परिवार ‎ अपने एक लड़के के साथ ‎ सुबह सुबह घूमने निकला ‎ हाथों में लेके हाथ ‎ सड़क पर झाड़ू लगाते ‎ जब एक मेहतर देखा। ‎ पिता ने बेटे से बोला ‎ देखो बेटा अगर नहीं पढ़ोगे ‎ झाड़ू लगाओगे ‎ तुम भी मेहतर जैसा। ‎ एक दूसरा परिवार ‎ जब गई नजर मेहतर पर ‎ पिता ने कहा हाथ देकर ‎ देखो बेटा  ‎ पढ़ो तुम मन लगाकर ‎ ताकि झाड़ू लगाने वाले के लिए  ‎ कुछ कर सको बेहतर।      मेवालाल 

प्रेम और भक्ति (निबंध) ~ मेवालाल

  बहुधा हम जीवन में कई वस्तुओं को देखते हैं। उसका स्मृति पटल पर चित्र भी बनाते हैं जिन वस्तुओं या व्यक्तियों को हम गौर से देखते हैं जिनको अपने स्वभाव और संवेदना के अनुकूल पाते हैं। उनको हम पसंद करने लगते है। मानवीय भावों के साथ पसंदीदा वस्तुओं या व्यक्तियों के प्रति हमारा लगाव बढ़ता है। जब यह लगाव हृदय में तीव्र और स्थायी हो जाता है तो लोग उसे प्रेम कहते हैं। यह एक तरफा प्रेम है। जब भावनाएं दूसरे तरफ से भी आकर मिल जाती है तो इन्हीं संयुक्त भावनाओं को प्रेम कहते है। प्रेम मानव से हो सकता है मानवेतर प्राणियों से हो सकता है और अपने आप से भी। व्यक्ति के अंदर पहले से ही श्रद्धा होती है यह श्रद्धा किसी के प्रति हो सकती है। आदर्श व्यक्ति के प्रति और ईश्वर के प्रति भी। यदि ईश्वर के प्रति है तो फिर वह गुरु के शरण में जाता है फिर वह नाम जप करता है। शास्त्रों का अध्ययन करता है। निस्वार्थ भाव से अपने कर्मों को करता है। श्रद्धा का उद्देश्य ईश्वर के प्रति प्रेम व्यक्त करना होता है। व्यक्ति के अंदर ऐसे ही भक्ति का शुरुआत होती है। ‎साधारण जीवन में प्रेम के दो रूपों में अभ्यास किया जाता है - पहला व्...

देह बचाओ (निबंध) ~ मेवालाल

देह को कभी नश्वर वस्तु, कभी आत्मा का निवास, कभी प्रकृति का विकार कभी कभी योग साधना का उपकरण मन गया। कुल मिलकर आध्यात्म ही प्रधान रहा। शरीर को नश्वर मानकर उसे यथार्थ मे पहचानने की कोशिश नही की गयी भारतीय चिंतन परंपरा मे शरीर को उतना महत्व नही दिया गया जितना मन और आत्मा को आत्मा मन परमात्मा आदि का विचार शरीर के अंदर ही निवास करते है। कोई बात नहीं आज देह के बारे में एक गहरे चिंतन की आवश्यकता है तो चिंतन किया जा सकता है और ज्ञान का उत्पादन भी किया जा सकता है और लाभ उठाया जा सकता है। लेकिन महत्त्वपूर्ण शरीर है। आत्मा परमात्मा, पृथ्वी, समाज, परिवार और देश आदि अपना शरीर न रहने पर सब व्यर्थ है। पहले लोग कृषि करके जीवन यापन करते थे। पहले कृषि के समय में श्रम और जीविका दोनों एक दूसरे से जुड़े थे। लोग मेहनत करके फसल उगाते और खाते थे। निरोग रहते थे। लंबा जीते थे। तभी खेती जीविका का सबसे उत्तम साधन था।                                                        ...

बीएचयू प्राचार्यो पर (दोहा) – मेवालाल

  प्रेम यस उमर बाढ़े, बाते नव सोच अमेल। जहां परंपरा रूढ़ि हावी, शोभे प्रियंका झा अकेल।। संत स्वभाव ज्ञानी विनम्र, सहृदय सिंहासन श्रृंग। मुस्कान साझा छात्र मित्र, अद्भुत प्रभाकर सिंह।। पहिचाने धर्महि कर्महि जोड़े,अदमियत समताहि एक रूप। जौ नी के सब पहिने कहि, जनेऊ त्यागे वशिष्ठ अनूप।। स्वायत्तहि सोच व्यक्त, हित समता संवादए मेल। कहां बंजरहि फूल सम, किंगसन सिंह पटेल।। जाने सब विचार बनावे, मानवता प्रस्थिति बड़ राखी वादहि सत्यहि शक्ति सब, वाल्टेयर आशीष त्रिपाठी।। मंद गति निश्चित अव्यस्त, चले व्यवस्थापक एक दीदार। बाते अगर्व प्राप्ति अपरिग्राही, सामाजिक सदानंद साही सर।। जेहि सम्मुख वजूद रहे मान, न पदय मनोदृष्टि नेक। जीवन शैली संभ्रांत विरोधे, विंध्यांचल यादव एक। समताहि त्यागे रीति परंपरा, औ श्रेष्ठहि विचार। जन देशवाद परिपेक्ष्य मंह, राणा कुमार झा तैयार। मेवालाल शोधार्थी हिंदी विभाग बीएचयू वाराणसी यूपी पिन 221005, 7753019742

मुझसे तेरा नाम बड़ा है (गीत) ~ मेवालाल

  मेरी हैसियत क्या योग्यता कुछ नहीं उसके आगे कुदरत ने करिश्मा से उसे लम्बे समय में गढ़ा है। न सुनने और कहने के बीच मन दुविधा में बहुत है अन्दर है सृजन कला यह जीवन का बसंत ऋतु है। दिल को दिल से न जाने यहाँ उमर सिर पे चढ़ा है।/मुझसे तेरा नाम बड़ा है। मेरी उपस्थिति मे गर वह अपनी मूल्य जान पाये भावनाओं से सम्मानित करे मुझे अपनी पहचान बताये दिल के पास जुवान नहीं है लेकिन समर्पण को अड़ा है। मुझसे तेरा नाम बड़ा है। ताज लगाके सिहांसन बिठाऊं जो कही न कर दे अपना निरादर  दिल में जो है कह देता हूँ पर सच कहने से लागे डर। मेरा यश सम्मान राज खो न जाये कहीं आकर्षण जो पल पल मुझमें बढ़चढ़ा है।/मुझसे तेरा नाम बड़ा है। बड़े लोग शक्ति संपन्न नौकर चाकर की कहां कमी सब कुछ पहले से उपलब्ध उनकी चाहत में विलासिता रमी। एक बात मन में ख़लती  उनके पास राजाओं की कमी चमचमाते दुनिया में स्वयं होकर एक स्थिर फीका दूर खड़ा है।/ मुझसे तेरा नाम बड़ा है।   मेवालाल

मेरी मां को धूप लगती है (कविता ) ~ मेवालाल

  घर से निकलते हुए चोट में काम करते हुए अब मेरी माँ को धूप लगती है आखों से बराबर देख नहीं पाती कान जलने लगते है त्वचा फटने लगती है। अब बोझा सिर को बर्दाश्त नहीं पैर लड़खड़ाने लगते हड्‌डी टूटने लगती अन्दर ही अन्दर खुद को संभालने में असमर्थ फिर भी  परिवार के बारे में सोचती रहती व्यवस्था कही टूट न जाये विरासत अपना जो छूट रहा है मुझसे आखिर जायेगा कहाँ कहीं अधिक बोझा न हो बेटे के सिर पर फिर भी  जिम्मेदारी संभालते हुए चिंता करती रहती माथे पर हाथ रखकर उम्र ने छीन ली उनकी सहनशीलता कमजोर पाकर सूरज कर रहा अत्याचार मेरे जीवन के सूरज को जला रहा सूरज मेरा कितना धूप सा संघर्ष समय ने कितना बदल दिया  बर्दाश्त नहीं हो रहा परिवर्तन जानता हूं ताकत अपना समय अति बलवान कोई लड़ने को कैसे सोचे। समय के एकरेखीय चाल से  बगल खड़ा करूं मां  उसे मिलेगी चुनौती मुझसे अनुशासन शरीर में है  प्राथमिकता मस्तिष्क में समय बलवान है तो क्या पूर्वक्रिया दूर दृष्टि अपनी भी है ताकतवर कलम की स्याही स्याही से उत्पादन मिली चुनौती  समय को मुझसे              ...