मेरे हाथों की रेखाएं (कविता) ~ मेवालाल
रेखाएं जीवन का नक्शा हर मोड पर एक कहानी हर टूटन संघर्ष को लेकर हमे किसी को नहीं सुनानी पत्तियां सारी गिरी हुई दिखती जैसे ठूठ वन। नहीं मिला हरी घास कहीं सुख गया है अपना मन। एक दूसरे को कटती तोड़ती कहीं बनाती है नक्षत्र टूटती जुड़ती नदियों का प्रवाह गिरती अंगुली बीच मुहाने पर। लंबे लंबे भ्रांश का विस्तार कुछ समतल कुछ पर्वत शिखर जहां नहीं है कोई उपवन आदिम सभ्यता जंगलीपन सभ्य संस्कृति पशुवत जीवन जैसे दोहराया जा रहा इतिहास पठनीय नहीं लिपि भाषा रेखाएं बनी कर्म का विश्वास आंतरिक बल फिर भी जड़ता पुरानी स्मृतियों की पुरानी गालियां जहां से हर आदमी है गुजरा। यहां कुछ छिपा हुआ है जिसे हमने नहीं समझा ब्रह्मांड के दूसरे हिस्से तक रेखाएं मन को दिशा बताती आत्मा का संतुलित संसार पड़ता जहां मन का प्रतिबिंब लोग करते है गलतियां इंसानों की कमजोरी मानकर सीखते सुधारते अपने जीवन से विकसित हुआ नया संसार किसी के लिए कला किसी के लिए शांति किसी के लिए खोज किसी के लिए प्रेम आप खुश तो सामने वाला खुश आप दुखी तो सामने वाला...