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Showing posts from May, 2023

कौन है वो ~ नंदलाल भारती

कौन है वो जिसे आदमियत नहीं भाती मानवीय समानता रास नहीं आती बांटना चाहता है आदमी को खण्ड खण्ड कौन है वो कौन है वो...... कौन है वो दरिद्रता, अशिक्षा, छुआछूत वरदान लगती है  हाशिए के आदमी की तरक्की विनाश लगती है आदमी की बेबशी शान लगती है आदमी नहीं नरपिशाच है वो कौन है वो कौन है वो....... वो कौन है जिसे शील,समता पर फख्र नहीं कमजोर आदमी की उन्नति पसंद नहीं आती  मोहब्बत नहीं नफ़रत बोना आता है जिसे कर लो पहचान,रार नहीं  बहिष्कार करो ऐसे नरपिशाच का कौन है वो कौन है वो....... विष की खेती नहीं, समानता की धरा तैयार करो जाति-धर्म का विष बोने वाला कौन है कौन है नफ़रत का सौदागर पहचान करो कौन है वो कौन है वो....... तिरस्कार करो तिरस्कार करो दया,शील , समता और  राष्ट्रहित की बात करो......... नन्दलाल भारती 30/05/2023

जातिवाद का पहाड़ लघुकथा ~ नंदलाल भारती

जातिवाद का पहाड़ (लघुकथा) कौन सी याद में खोये हो मुकुन्द? यादें ही तो बीता हुआ जीवन हैं, कोई हंसाती है, कोई रुलाती है, कोई हौशला बढ़ाती हैं, कोई जज्बा जगाती है, कोई कहती है आगे बढ़ो तरक्की करो मुकुल भाई। सब तो सही है पर दोस्त रुलाने वाली यादों पर मांटी डाल दो मुकुल भाई बोले। कैसे भूला दूं ,चपरासी बार-बार अपमान किया मुकुन्द बोले? मुझे भी याद है,रईस चपरासी होकर भी तुमसे वरिष्ठ बनता था, चाय-पानी नहीं देता था।फाईल तुम्हारी टेबल पर पटक कर रखता। कहता था मैं मुकुन्द से पहले कम्पनी में आया हूं। मैं वरिष्ठ हूं ,भला रईस चपरासी एक क्लर्क से वरिष्ठ कैसे हो सकता है? सबको तुम्हारे खिलाफ भड़काता था कहता सवर्णों के बीच अछूत कहां से आ गया । मुकुल भाई मेरा दर्द तुम ढो रहे हो, इतने गहरे घाव उस रईस ने दिये हैं कैसे भूल जाऊं।भला हो खान साहब का जिसने रईस के जातिवादी नजरिए पर लगाम लगाया वरना नौकरी करना मुश्किल हो जाता मुकुंद बोले। तुम्हारे साथ भेदभाव रईस बंद तो कभी नहीं किया। दोस्त अच्छे लोगों को याद रखो और अच्छी यादों में जीओ ।रईस और उस जैसे दुष्टों की यादों पर मांटी डाल दो मुकुल बोले। कोशिश तो जारी है ...

चुल्लू भर पानी ~ नंदलाल भारती

 लघुकथा: चुल्लू भर पानी चतुर्थ वर्णव्यवस्था का शिकार उच्च शिक्षित पठनकुमार प्रबंधन की परीक्षा क्या पास कर लिया विरोधी खेमे में आग लग गई। बात और आगे बढ़ गई जब पठनकुमार ने अपनी नई शैक्षणिक उपलब्धि को व्यक्तिगत कार्यालयीन रिकॉर्ड में जोड़ने के साथ ही शैक्षणिक योग्यता एवं लम्बे अनुभव के आधार पर कैडर में बदलाव का आवेदन प्रस्तुत कर दिया। पठनकुमार के आवेदन को देखते ही विभागीय प्रमुख उच्च वर्णिक मि.अवध प्रकाश का चेहरा तमतमा उठा। वे पठनकुमार को तलब किये और पूछे तुमको नौकरी करनी है ? तुम्हारा कैडर नहीं बदल सकता। जी मैं पन्द्रह साल से कैडर में बदलाव की हर परीक्षा दे रहा हूं, उच्च शैक्षणिक योग्यता और लम्बे अनुभव के बाद हर परीक्षा में फेल कर दिया जाता हूं। मेरे साथ अन्याय क्यों ? मेरा कैडर क्यों नहीं बदल सकता क्योंकि मैं छोटी कौम से हूं। यही मेरी अयोग्यता है क्या ? पठनकुमार की बात सुनते ही मि. अवध प्रकाश के बदन में आग लग गई। वे बौखला कर बोले तुम अपनी बिरादरी वालों को देखो,तुम बाबू बने पंखे की हवा खा रहे वे क्या कर रहे हैं ? अगर इतना ही अफसर बनने का शौक है तो गले में अफसर की पट्टी बांध लो...

सर्वनाश लघुकथा ~ नंदलाल भारती

 लघुकथा: सर्वनाश  रिटायर हो गए क्या सज्जन बाबू? जी कम्पनी की नौकरी से रिटायर हुआ हूं पर पारिवारिक जिम्मेदारियों से कौन रिटायर हो पाता है ? बात तो सौ टका सही है। नौकरी का अनुभव कैसा रहा केवल बाबू पूछे। कम्पनी तो मां जैसी थी,पर कुछ जातिवादी हिटलरों ने नौकरी के बसन्त को पतझड़ बना दिया था,जिन अमानुषों को हिटलर की तरह भूलाया नहीं जा सकता सज्जन बाबू गमगीन मन से बोले। क्या कह रहे हो, श्रम की मंडी में जातिवाद का आतंक केवल बाबू पूछे। हां बाबू तथाकथित ऊंची कौम के लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता पर छोटी कौम के लोगों के सपनों की जड़ों में ये अमानुष जातिवादी खौलता पानी डाल देते हैं सज्जन बाबू नजरें उपर उठाते हुए बोले। क्या खौलता पानी केवल बाबू अचम्भित होकर पूछे? हां इतना अचम्भित क्यों हो रहे हो ? अचम्भित होने की बात है केवल बाबू बोले। छोटी कौम के लोगों का प्रमोशन बाधित हो जाता है। आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते है। सी.आर.खराब कर दी जाती है ताकि छोटी कौम वाला मूस मोटाय लोढ़ा ही बना रहे। सुना था कालेज, यूनिवर्सिटी में द्रोणाचार्य जिन्दा है पर बात और बहुत आगे बढ़ चुकी है केवल बाबू पसीना पोंछते हु...

डिग्रियां कविता ~ कुमार मंगलम रणवीर

 डिग्रियां ----------- हाँ,डिग्रियां!! भुखमरी के दिनों में सरकार और कॉरपोरेट के झूठे पत्तल चाटने का टिकट है जहाँ इंसान  झपट्टे मारता हुआ कुत्ते की अगली पीढ़ी लगता है, ज्ञान पागलों का  अजीबोगरीब करतब जिसे कुर्सी पर बैठे शिष्ट मुस्कुराकर अशिष्ट घोषित कर देते हैं।              कुमार मंगलम रणवीर

गज़ल ~ वरुण ‘विमला’

 उन्ही दिनों का नया साल हो जाना डूब के निकलना आफताब हो जाना हर्फ़-दर-हर्फ़ जुड़ती जा ज़िंदगी से तू मेरी पसंदीदा किताब हो जाना नाज़ है नूर है नज़ाकत, नज़ाफ़त है इतना काफी है बेमिसाल हो जाना खिंचा-तानी ,भागमभाग ,माथा-पच्ची उनकी बाहें औ दिन इतवार हो जाना सदियों तक छाप छोड़ना आसाँ है यहाँ बस इश्क़ करना औ इश्तिहार हो जाना सियासत इतनी ख्वाहिशमन्द है "वरुण" हर वक़्त चाहती है अख़बार हो जाना ©वरुण " विमला "  बस्ती,उत्तर प्रदेश

सर्वदा गलत है ~ कुमार मंगलम रणवीर

 सर्वदा गलत है... आस्था में डूबकर भक्त बनना गलत नहीं है...; सर्वदा गलत है आस्था के बहाने तिकड़म के रास्ते स्वार्थ सिद्धि हेतु मक्खियों की तरह भिनभिनाना।                 कुमार मंगलम रणवीर

बिक्रेता बनकर ~ कुमार मंगलम रणवीर

 बिक्रेता बनकर... दो चुटकी सिंदूर बॉस का मड़वा कलसुप,ओखली है लुप्त होने के कगार पर,है भी तो उन असभ्यों के बीच...!! पर सभ्य धंसे हैं डी.जे की धुनों में मोछ पर ताव देते हुये शौक के  लिये पुश्तों की श्रम से उपजे थाती की बिक्रेता बनकर...!!                कुमार मंगलम रणवीर

तकदीर बदलेंगे ~ कुमार मंगलम रणवीर

 तकदीर बदलेंगे... मुकद्दर तू इतना डराओ मत, डराओ गर मात खाओ मत। गुनाहों से रहा न वास्ता कभी, छूटा इश्क का न रास्ता कभी। खुद को परेशानियों में टांकते रहें, रख दर्दों-गम खुशियां बांटते रहें। ताज्जुब में है जमाना देख हँसी गले में मानो मीन की कांटे फंसी। दम है हौसला भी तस्वीर बदलेंगे थेथरई पर उतर तकदीर बदलेंगे।                             ~ कुमार मंगलम रणवीर 

मानुष प्रेम भएउ बैकुंठी (आलोचना) ~ अवधेश प्रधान

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  18 मई 2023 का आदरणीय अवधेश प्रधान सर का एकल व्याख्यान हुआ । सर ने 1.5 घंटे तक बोला। प्रेम भयउ बैकुंठी इसका सीधा मतलब है मनुष्य का प्रेम स्वर्गीय होता है । दिव्य होता है। जब रत्नसेन पद्मावती के लिए श्रीलंका जाते है। तब एक पहाड़ी पर रुकते है और वहां पर एक नाद सुनाई देता है – मानुष प्रेम भएउ बैकुंठी। महोदय ने बताया हे रतनसेन तू सही रास्ते पर है। संसार में अनेक कुंठाए है। प्रेम की शक्ति से मनुष्य कुंठा मुक्त हो जाता है। अनेक रूढ़ियों को तोड़ता है। संसार में रहते हुए संसार से मुक्त की कामना करता है।’ वास्तव में प्रेम ही एक ( अनेक नहीं) कुंठा है। और अभिव्यक्ति पर वह मिट जाती है। प्रेम में लोग संसार से मुक्त की कामना क्यों करते है क्योंकि संसार में रूढ़ियां बहुत है। नियम कायदे बहुत है। ऐसे में प्रेम का आध्यात्मिक हो जाना स्वाभाविक है। अगर ये रूढ़ियां न होती तो प्रेम इहलौकिक होता और कल्याणकारी होता । और प्रेम का रूप कितना सुंदर होता। शायद ही कोई समय निकाल कर सोचे। और अवधेश प्रधान सर का मतलब इन्ही रूढ़ियों से मुक्त हो जाना और आध्यात्मिक हो जाना कुंठा से मुक्ति है। मतलब प्रेम स्वर्ग प्राप...

स्त्री कविता ~ डॉ. प्रभाकर सिंह

 स्त्री भाव पढ़ने में कुशल है यह कह पुरुष रोपता रहा उस पर अपना भाव स्त्री ने जब अपना भाव  रोपना शुरू किया तब भाव के बाजार में पता चला पुरुष  कितना भावहीन है                        ~  डॉ. प्रभाकर सिंह, प्रोफेसर हिन्दी विभाग बीएचयू

नागरिक कविता डॉ. प्रभाकर सिंह

 मैं सामान्य नागरिक देश के बारे में नहीं जानता भूख के बारे में जानता हूं मैं कम होते जंगल के बारे में चिंतित होता हूं  मैं पत्तियों पर पड़ी बूंदों को देर तक निहारता हूं भोजन लादे बिलों में जाती चिटियों को देखना पसंद है मुझे मेरे घर का दरवाजा  हरदम खुला रहता है वहां पक्षियों को आते  डर नहीं लगता मेरा खुलापन देख कर आकाश मुझसे रक्स करता है मैं नदी में अपने पूर्वजों का चेहरा देख सकता हूं और देर तक नदी के साथ समय बिता सकता हूं एक सामान्य नागरिक को भला और क्या चाहिए ?                              डॉ. प्रभाकर सिंह, प्रोफेसर हिन्दी विभाग बीएचयू

जयशंकर प्रसाद का घर (फोटो) ~ मेवालाल

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                          अखबार में मैं भी  6 मई 2023 को हम सभी सामूहिक रूप से हिंदी विभाग से जय शंकर प्रसाद के घर गए। यह एक औपचारिक मेला जैसे था। वहां जाकर एक नया एहसास मिला। प्रसाद जी अच्छे घराने से थे। उनकी नई पीढ़ी में कविता जी से बात हुई और मैंने प्रसाद जी के पहनावे पर पूंछा तब पता चला कि उनका परिवार उस समय जमींदार था। घर का सुपरस्ट्रक्चर देखकर लगा कि वे आर्थिक रूप से संपन्न थे। मकान पक्के थे। उजाले की पर्याप्त व्यवस्था रही होगी। पढ़ने के लिए माहोल रहा होगा। लिखने के लिए उस समय उनके पास मेज जैसे कुछ चीजे रही होंगी। उनको विरासत में आर्थिक असुरक्षा नहीं मिली थी। चारो तरफ से सब व्यवस्थित था। खाने पीने की कमी नहीं थी। वे श्रम से सीधे नहीं जुड़े थे। घर का काम करने के लिए या घर की व्यवस्था देखने के लिए नौकर चाकर भी रहे होंगे। आय का स्त्रोत निश्चित और गठित था। उनको किसी चीज की यहां तक कि जीविका की चिंता नहीं करनी थी। समाज में उनका काफी सम्मान रहा होगा। इस सब चीजों ने उन्हें ज्ञान पर अधिकार दिलाया। उनकी द्वारा बोली ग...