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Showing posts from February, 2023

जाग कमेरा ~ संदीप पटेल

जाग कमेरा :- तर्ज :- चारो ओरियाँ ताल तलइया घन बगिया के छाँव रे। भाव:- गीता वेद पुरान के तजके पढ़ले तू संविधान रे। कल्पित राम से सुन्दर बाड़े आपन भीम महान रे।। ना भटक तू मंदिर मस्जिद ना जप कण्ठी माला, रूखी सूखी खाके भेजा बचवन के पाठशाला, हर क्षेत्र में अधिकार दियवलें जराके मनुविधान रे। कल्पित राम से सुंदर बाड़े आपन भीम  महान रे।।1।। पाखण्ड के मिटावे खातिर तर्क ही हथियार बा, तर्क हौ दुधारी तलवार बाकी सब बेकार बा, फूले शाहू मनुवादिन कअ तोड़ दिहलें गुमान रे। कल्पित राम से सुन्दर बाड़े आपन भीम महान रे।।2।। बुद्ध जी के ज्ञान के आगे दुनिया शीश झुकावेला  ललई वर्मा कअ बतिया सन्दीप  खूब समझावेला, राह देखावे अर्जक संघ करले सही पहचान रे। कल्पित राम से सुन्दर बाड़े आपन भीम महान रे।।3।। गीता वेद पुरान के तजके पढ़ले तू संविधान रे। कल्पित राम से सुन्दर बाड़े आपन भीम महान  रे।। कल्पित राम से सुन्दर बाड़े आपन भीम महान रे।।                         ~संदीप पटेल शोधार्थी  हिंदी विभाग बीएचयू 

आधुनिक आस्था ~ रविन्द्र सिंह

 आधुनिक दौर में आज भी आस्था के दीप को जलाते देखा है। अंशों के चौखट पर अंश के सुख के लिए किसी नवविवाहित दंपत्ति को सिर पीटते देखा है। आस्था  आशाओं को बांधती है। उस संस्कृति को  सैलाबो में ढलते देखा है। कुंभ में स्नान करते कांपते नर को देखा है। उन पाषाण की मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठित करने वाली जनता को देखा है आधुनिकता के दौर में आज भी आस्था के दीप जलते देखा है। हां इसलिए मजहबों के नाम पर उस आराध्य को तिरपालो के नीचे कांपते देखा है वोटो के लालच ने भगवान को  उनके घर से बेबस बाहर रहते देखा है। आधुनिकता के दौर में आज भी आस्था के दीप जलते देखा है।                    ~ रविन्द्र सिंह बीएचयू 

लापरवाह नौकरशाह ~ मेवालाल

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  यह फोटो बीएचयू साइबर के रीडिंग रूम की है। जिसमे एक छात्र बाहर निराश खड़ा है। यह देरी से आया और उसे एक भी सीट नहीं मिली । इसलिए बाहर इंतजार कर रहा है की शायद कोई निकले और वह सीट मुझे मिल जाय। इस रीडिंग रूम में स्पेस काफी खाली रहती है। फिर भी पर्याप्त टेबल कुर्सी नही है। यह धूप थी इस वजह से एक विद्यार्थी बाहर खड़ा इंतजार कर रहा है अन्यथा विद्यार्थी लाइब्रेरी आकर छत पर बैठ कर पढ़ते है ।  रोज लाइब्रेरी के कुछ अधिकारी आते है रीडिंग रूम वैगराह देखकर चले जाते है और इधर ध्यान नहीं जाता है।        ~ मेवालाल 25/2/2023 शनिवार

दो कवियों का मिलन (कविता) ~ डॉ प्रभाकर सिंह सर

 अक्सर मैं सोचता हूं जब रहीम तुलसी से मिलने चित्रकूट गए होंगे महान अकबर से कहा होगा ‘ जहांपनाह कवि से मिलने जा रहा हूं। जिसके जमीन का कद इन महलों के  कंगूरों की ऊंचाई से  और  दरबारो की शान से  कहीं ज्यादा बड़ा है।’ दो महान कवियों के मिलन के साक्षी वह पेड़, पौधे , नदी, गुल्म और हवाएं क्या सोचती होंगी,कैसे प्रेम से निहार रही होंगी दोनों को तुलसी से मिल रहीम अवधी पर रीझे होंगे रहीम से मिल तुलसी का  मन ब्रज से दीप्त हो गया होगा तुलसी के राम, राम से  गरीबनवाज बन जाते है तुलसी के राम पर आसक्त हो रहीम के दोहों में रघुवीर समा जाते है तुलसी के महान स्मृति में महान अकबर ने ‘सियाराम मय सब जग जानी’ का सिक्का  ढलवाया  वह सिक्का जिस टकसाल में ढला वह भाषा की साझी विरासत का सबसे खूबसूरत  टकसाल था।                ~ डॉ प्रभाकर सिंह सर , प्रोफेसर, हिंदी विभाग बीएचयू 

वे दिन ~ रविन्द्र सिंह

 अंधेरे दिल के कमरे में तुम्हारा अचानक से आना  जैसे बंजारे को कोई घर मिलना था। आज भी याद है वे दिन खी खी सी मुस्कान  कैसे शून्य पड़े हृदय में सांसों का ऑक्सीजन बन गई आज भी याद है वे दिन तुम्हारा आना जैसे पतझड़ पौधो को बसंत की चंचल बात से पर्णहरित कर देना। आज भी याद है वे दिन लगता उस सुदूर दिखाते किनारे से  जरूर मेरा कोई नाता है। शायद सुख इसलिए मेरे पास नहीं आता। टीले की तरह ठहराव का बनना तुम्हारा आज भी याद है वे दिन। गुलाबो को देख उनकी पंखुड़ियों को किसी के लिए सहेजता  वह माली आज भी याद है वे दिन।                      ~रविन्द सिंह बीएचयू १७/२/२०१९

एक अटपटा अभिव्यक्ति ~ मेवालाल

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  यह बीएचयू के हिंदी विभाग पर लगा प्रो आनंद कुमार सर के प्रोग्राम का एक चित्र है। 10 फरवरी 2023 को लगाया गया था। 13 फरवरी को उनका  सामाजिक विज्ञान विभाग  में प्रोग्राम था। वे जेएनयू से थे। उनके नाम के बाद कोष्ठक में जेएनयू लिखा था। और उस जेएनयू शब्द को फाड़ दिया गया। यह दो चीजों को स्पष्ट करता है– अभिव्यक्ति के अधिकार उसके प्रति अज्ञानता और उस अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान न करना  दूसरा  बाह्य रूप में भरे गए नफरत अभिव्यक्ति। मेवालाल  मेवालाल , 12/2/2023 

महा शिवरात्रि पर ~ मेवालाल

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  ये बीएचयू के विश्वनाथ मंदिर पर  महाशिवरात्रि के दिन , शाम के समय का एक चित्र है।   इस दिन इस मंदिर पर काफी भीड़ इकट्ठा हुई। सुबह से शाम तक जलार्पण हुआ। सड़क पर एक एंबुलेंस की व्यवस्था की गई। यह एक अच्छा कदम है कि आस्था रखने वालो का सरकार ख्याल कर रही है।  मेवालाल शनिवार, 18/2/2023 

प्रेम प्रवृत्ति ~ राहुल कुमार सहाय

 प्रेम सर्वत्र है आकार है, साकार है प्रकृति का उपहार है जाने बहार है गुलिस्ताँ है विचार है जगत तो मिथ्याचार है आने वाला कल और भी बेकार है जीवन का सरोकार है व्यभिचार का आचार नहीं  पावन है सुन्दर है मदमस्त केवल पैबंद नहीं                     ~ राहुल कुमार सहाय शोधार्थी बीएचयू 

गजल 2 ~ आशीर्वाद त्रिपाठी

 हंसते हंसते ढल जाता हूँ मैं किरदारों में । मेरा रोना भी उनको ,अदाकारी लगती है।।  रूठ गया हूँ मैं दुनिया की ,हर जिम्मेदारी से। कुछ न करना भी अब ,जिम्मेदारी लगती है।।  ये कुचक्र , ये राजनीति, ये सैन्य प्रदर्शन। किसी जंग की ये कोई तैयारी लगती है।। बैठे बैठे खो जाता हूँ तेरे ख़यालों में। मुझे इश्क़ की ये कोई बीमारी लगती है।। अक्सर मुझसे वादे करना, और मुकर जाना। यार तेरी नीयत भी अब सरकारी लगती है।। देख आचरण इन शहरातू बालाओं के। मुझे गांव की हर लड़की संस्कारी लगती है।।                     आशीर्वाद त्रिपाठी

नई राह ~राहुल कुमार सहाय जी

 तथ्य की कमी थी आपके और मेरे पास वाद विवाद होता खैर झगड़ा हो गया सब्र की कमी थी तुम्हारे पास मेरे पास फिर देखो बात क्या, गली में हल्ला हो गया  क्या मेरी जमीन मुझसे रूठ गयी है या मिल्कियत कहीं मेरा छूट गया है आमने कभी सामने मेरे भोंकता कुत्ता  लपकता कभी झपकता मुझे दौडता कुत्ता ये जो राष्ट्रवाद के बीज देखो बोए है मैंने अपने ही सगे संबंधित इसमें खोए है मैंने रोउं गाउँ कहाँ जाउं खोया कैसे पाऊँ मैं मित्रता, प्रेम और सोहाद्र कैसे पाऊँ मैं ये जो नवजीवन का भ्रम अच्छा पाला है मैंने  ये जो शिक्षित संसार कोईअपना डाला है मैने,  कोई मार्ग,वीथी या गलियारा नहीं सूझता अब,  और संबंध ये वैमनस्य का भी नहीं टूटता अब  जरा हाथ से मेरे छूट गया है पगला पागलपन,  जाने कौन राह चलेगा अब अलबेला पगला मन । ~ राहुल कुमार सहाय 

गजल 1 आशीर्वाद त्रिपाठी

 जिस तरह उस व्यथा का वहन हो रहा है।। क्या बताऊँ की कैसे सहन हो रहा है। मांग थी जिनको सिद्दत से जनतंत्र की। भूख से आज उनका दमन हो रहा है।। थी जरूरत अयोध्या को अभिषेक की। किन्तु रघुवर का वन को गमन हो रहा है।। कल खड़े थे सड़क पर जो मत मांगते। आज संसद में उनका शयन हो रहा है।। लिप्त थे वे अभी तक भजन कर्म में। अब व्यभिचार का अनुगमन हो रहा है।। जिस जगह पर रावण दहन कल हुआ। आज वहीं पर ही सीताहरन हो रहा है।।                  ~आशीर्वाद त्रिपाठी बीएचयू

प्रेम साधना ~राहुल कुमार सहाय

 मैं साधक हूँ,  तुम हो साध्य।  प्रेम केवल बीच का मार्ग!  तुम हमेशा उपस्थित मेरे सम्मुख पर, मैं कायर न कर सका  खुद को प्रस्तुत।  यही प्रेम है यही है जीवन  संगम?  बड़ी निर्मम प्रकृति न मिलीं तुम  न मैं  न बच सका  हम।       – राहुल कुमार सहाय शोधार्थी बीएचयू हिंदी विभाग 

दिल ? आशीर्वाद त्रिपाठी

 दिल? सामान्यतः दिल फ़ारसी भाषा का शब्द है, यह वही वस्तु है, जिसको हम अंग्रेजी मे हार्ट , और हिंदी में हृदय नाम से जानते आये हैं । परंतु व्यवहार में ये दोनों एक दूसरे से ज्यादा निकटता नही प्रकट करते । क्योंकि आधुनिक डाक्टरों के अनुसार हृदय या हार्ट वह वस्तु है , जो मनुष्य के दाहिने अलिंद में स्थित ए वी नोड से नियंत्रित होती है , और आमतौर पर धड़कने का कार्य करती है । धड़कन वही जो सामान्य रूप में बहत्तर और अस्वस्थ होने पर समस्यानुकूल रूप से कम या ज्यादा हो जाती है।  अब धड़कन कोई क्रिया है या स्थान बोधक संज्ञा , इसमें मुझे तनिक संदेह है। और वह इसलिए कि प्राचीन काल की किसी प्रसिद्ध फ़िल्म के प्रसिद्घ गीतकार ने अपनी कल्पना प्रबुद्धता या कहें उच्चकोटि की वैज्ञानिकता के वसीभूत हो , अपने नायक से कहलवा दिया है - तुम दिल की धड़कन में रहते हो , रहते हो। अब रहने को लेकर नायिका को भ्रम न हो जाये इसीलिए रहने की क्रिया को दोहराकर संकेत कर दिया गया है। अब इस संदर्भ में कोई अन्य प्रसंग न मिलने के कारण मैं तो अब इसे स्थान बोधक संज्ञा ही समझूँगा। और यह भी यह कोई सुरम्य स्थान ही होगा, जो हृदय नामक...

प्रेमालाप 2 ~ राहुल कुमार सहाय

 लगाव  बुरी वस्तु है  बेहद अमानवीय,  बेहद क्रूर, तड़पाता है  हृदय जलता है, सिसकता  न ही ठीक मार्ग मार्ग पर जाता है?  प्रकृति प्रेमी रहा मैं, अब केवल तुम्हारा  मुझको चाहे स्वीकार करो तुम या करो किनारा निकल चुका हूँ, पथ पर एकल सोचा तुमको भी लेलूँ राह कठिन है, मार्ग है असंभव, जीवन बीता जाता फिर भी मैं जीवन जगत का पंछी, सावन भादों जानूं अगर मिलोगी तुम मेरी नैय्या पार लगाओ, तुम ही दैवीय प्रेरणा हो आखिर  या मुझको साध लो तुम, साधन जो हो सो ले लो मति नास, बुद्धि नास, नास नास जीवन ढैय्या मै तो जीवन का पापी खोजूं अपनी नैय्या राह कठिन है, मार्ग है कष्टमय न प्रकाश न पुंज है आओ  मुझे संभालो तुम केवल तुम तुम। राहुल कुमार सहाय शोधार्थी बीएचयू 

प्रेमालाप ~ राहुल कुमार सहाय

 पढ़ने बैठा हूँ जब से, याद तुम्हारी आती है एक प्यारी कोमल मुस्कान, मन बह जाती है लगाव हुआ है क्या या , प्रेम आमंत्रण मानूँ जितना डाँटू मन को, उतनी ज्यादा उलझन पाऊँ पा कर स्नेह संसर्ग तुम्हारा, प्रेम विजेता कहलाऊँ या फिर मन को कोस कोस अपना हिय जलाऊं देर रात तक नींद न आवे, दिन में पीड़ा पाऊँ अगर चली आओ मुझ तक तो ही कृपा पाऊँ जब से देखा बातें की तुमसे, हुई सुखद अनुभूति फिर अकेला रहा तड़पने, हिय को कैसे समझाऊं न तो भावत भात व्यंजन, न ही मिष्ठी ठंडाई दिन रात चले है मनवा, नही ठौर कोउ पाऊँ तुम तो जानत सब भली भाँतिन फिर का तुमे सुझाऊँ मेरो मनवा भागत जाबे, कैसे इसे ठीक ठहराऊँ तुम जो हँसके बतिया जाती हो, मन ही मन मुस्काऊं अपनो भेद न प्रकट करोंगो, चाहे मिलो न मिलाऊ  जग में होगी खूब हंसाई, फिर कैसे किसको मुँह दिखाऊ परवाह नहीं आलोचना का , स्वागत है यौवन का               – राहुल कुमार सहाय शोधार्थी बीएचयू 

गंतव्य कविता ~ राहुल कुमार सहाय

 जाना था मुझे  उस पार वहां,  स्मृति विहीन सृष्टि जहां ताकती है मुझे,  लालायित, आतुर और निर्भय आत्मचेतस हूँ मैं?  अपनी यात्रा में!  नदियाँ, पहाड़, निर्झर, ग्राम,नगर कूल किनारा और समंदर अखिल विश्व और बृह्मांड हो गए मेरे चलित मार्ग देखता क्या केवल मैं? झरोखा, ताला और दरवाजा सिमट गया हूँ मैं हाँ, ठिठक गया हूँ मैं!                           — राहुल कुमार सहाय शोधार्थी बीएचयू 

नसीहत कविता ~ संदीप पटेल

 नसीहत:- तर्ज:-कुसुम रंग सड़िया राजा जी। भाव:- जा ताड़अ छोड़के बखरिया, जाके करिहा गउवां शहरिया, बुद्ध कअ जिकीरिया राजा जी। संविधान कअ फिकीरिया राजा जी।। त्रिशरण पंचशील कअ बतिया बताई, अष्टांगिक मार्ग देई दुःखवा मेटाई, धम्म क धरिहा डगरिया, संघ से ही बची जमिरिया, बुद्ध कअ जिकीरिया राजा जी। संविधान कअ फिकीरिया राजा जी।। पढ़ लिख शिक्षित भइलअ बदला समाज हो, शोषण से मुक्त करा देशवा के आज हो, संदीप करे हथजोरिया, खोलके रखिहा आपन नजरिया, बुद्ध कअ जिकीरिया राजा जी। संविधान कअ फिकीरिया राजा जी।। बुद्ध कअ जिकीरिया राजा जी। संविधान कअ फिकीरिया राजा जी।। संदीप पटेल शोधार्थी  हिंदी विभाग बीएचयू 

आत्मविवेचन कविता ~ संदीप पटेल

 आत्मविवेचन:- क्यों हैं परेशान साहब? ईश्वर जो कुछ करता है, अच्छा ही करता है। आप कोरोना पॉजिटिव हैं तो अच्छा है, नहीं हैं तो भी अच्छा है। जो भी है सब अच्छा है और अच्छा ही होगा। उसकी मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं हिलता, जो कुछ हो रहा है सब वही तो कर रहा है। फिर ये ऐतिहातिक ढोंग? बैक्सीन,मास्क,सेनेटाइजर,भौतिक दूरी। आखिर हम होते कौन हैं? उसकी मर्जी में टांग अड़ाने वाले। होगा वही,जो लिखा होगा। फिर उसे मिटाने की कोशिश? कहीं इस बखान से हुजूर! आप क्रोधाग्नि में झुलस तो नहीं गये? खैर छोड़िये,मैं तो आस्तिक हूँ, मेरा इन सब बातों से कोई ताल्लुक नहीं। ये विचार तो नास्तिकों के हैं। ~संदीप पटेल परास्नातक,प्रथम वर्ष,बीएचयू,वाराणसी पता-पश्चिमपुर (अहरक),जमालपुर,वाराणसी। मो. 7524843975